आओ सरकार सरकार खेलें

सरकार- सरकार के खेल में हर कोई मशगूल है । सत्ता में बैठी कांग्रेस vipaksh में बैठी भाजपा ,सरकार को समर्थन दे रहे वाम दल हर कोई इस खेल में अपनी बाजी जीतने की पूरी जदोजहद कर रहे हैं । महगाई के मुद्दे पर वाम दल कांग्रेस के आमने सामने खड़े हैं। परमाणु मुद्दे पर उन्हें कांग्रेस से सख्त विरोध है। यानि कांग्रेस के साथ सत्ता का सुख भोगती वाम पार्टियाँ vipaksh की भी भूमिका में अपने को बरक़रार रखना चाहती हैं । पिछले कुछ दिनों से महगाई के नाम पर वाम दल संसद को चलने नहीं दे रहें हैं । सरकार से समर्थन वापस लेने के मुदे पर उनका टका सा जवाब होता है सरकार का समर्थन भी देते रहेंगे और आलोचना भी करेंगे। बीएसपी की अलग कहानी है । कोंग्रेस की ओर से मायावती जी को जब कभी भी तीखी प्रतिक्रिया झेलनी पड़ती है, मायावती सरकार से सीधे समर्थन वापस लेने के मुद्दे पर विचार करने लगती है । जहाजरानी मंत्री टी आर बालू को लेकर संसद मे मचा घमासान संसद के अन्दर और बाहर हंगामा मचा रखा है ,लेकिन सरकार की ओर से कोई जवाब नही है । साफ है , इसका निर्णय करूणानिधि को लेना है । प्रधानमंत्री डी एम् के जैसे मजबूत घटक को नाराज नहीं कर सकते । सत्ता का यह खेल निराला है आने वाले कुछ महीनों मे कई राज्यों के विधान सभा से लेकर लोक सभा के चुनाव कभी भी हो सकते है । कहते है की सियासत मे दोस्ती और् दुश्मनी स्थायी नहीं होती । यहाँ मोका ही गठजोड़ तय करता है । कांग्रेस के घोर विरोधी समाजवादी पार्टी इन दिनों सोनिया जी के ,राहुल जी के तारीफ के पुल बाँध रहे है । मनो कल तक जो लोगो ने सुना वह एक धोखा था । लाल कृष्ण आडवानी जी अपने को सेकुलर साबित करने के लिए चर्च का उद्घाटन कर रहे है । हर मीटिंग मे जिन्ना को सेकुलर बता रहें हैं । यानि सरकार सरकार के इस खेल में विचारधारा , सिधांत सब चीजें बेमानी साबित हो रही हैं । कांग्रेस एम् पी, एम् के सुब्बा नेपाल के एक भागोरे हैं लेकिन इस मुल्क के कानून बनाने में पुरा योगदान दे रहे हैं ओर इसकी कीमत भी वसूल रहे हैं। कांग्रेस के आसाम का यह फंड मेनेजर की ताकत का आप अंदाजा लगा सकते है की मीडिया ने पूरे सबूत के साथ यह बता दिया है कीये नेपाली है लेकिन फ़िर भी बने हुए हैं । हो सकता है की subba को अलग thalag करने की कोशिश हो लेकिन subba को हर के आँगन का chor darvaja maloom है ।
सरकार सरकार के इस खेल में जो सबसे बेचारगी की हालत है वह आम लोगों की है । ओ यह समझ नही पा रहे हैं की राहुल गाँधी को क्यों दलित ओर जनजाति लोगों के यहाँ रात गुजारनी पड़ रही है । ये दलित प्रेम राहुल का इतने दिनों के बाद क्यों जगा है ?अगर ये सिर्फ़ चुनाव के लिये है जाहिर है चुनाव बीत जाने के बाद ख़त्म भी हो जाएगा । राहुल बाबा आज जहाँ कहीं भी दौरे के लिए निकलते हैं उनके साथ मीडिया की एक बडी फौज होती है । कुछ लोकल मीडिया पहले से माहौल बनाये रखते है। इस तरह सरकार- सरकार के खेल में मीडिया भी अपनी भूमिका बना रहे हैं । इसी भूमिका की खोज मे कई नामी गिरामी बिल्डर , सत्ता से बेदखल हुए लोग टी वी चैनल खोल रहे हैं । हमे उस दिन का इंतजार रहेगा जब इस खेल में इस देश का आम आदमी अपनी भमिका तलाशेगा ।

टिप्पणियाँ

मुनीश ( munish ) ने कहा…
Hello sir,
O vat a pleasant and lovely surprise to have u here on Blogvani ! dats really very exciting . i hope we meet here frequently . thanx for sharing ur views , i agree with u.
munish.
Unknown ने कहा…
This article truly exposes the motto of our politicians, irrespective of which party they are associated with. However, if we look at the mood (in general) of the people of this country, it is hardly any different. Most of us want to take benefit of the situation without bothering how short lived is that benefit.

Although media (especially, electronic media) has played its role in spreading awareness among the people of our country; it has a much bigger role to play. Unfortunately, the proliferation of TV news channels has yielded no result in that direction so far, as most of them are busy showing non-sense breaking news to attract the viewers’ attention. Here again, I believe it is the viewers, who are responsible for watching those news channels and helping them improve their TRPs thereby, encouraging them to show rubbish news and again.

There is an urgent need to have quality consciousness in all spheres of life as only this will promote and encourage the professional culture in whatever we do. It is pity that there is a dearth of visionary politicians, who are actually interested in the development of the country; leaving us no option but to send those politicians to Parliament, who are only interested in "Aao Sarkar-Sarkar Khelen".

Arya

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