अमर सिंह एंड कंपनी
कहते हैं कि हर की जिन्दगी में एक दिन खास होता है लेकिन कुछ लोग खास होते हैं जिनका हर दिन खास होता है । इन लोगों का एक खास तजुर्बा यह है कि हिंग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा । अपने अमर सिंह ऐसे लोगों में ही शुमार किए जाते हैं । इन दिनों अमर सिंह जी मनमोहन सिंह सरकार के संकट मोचन की भूमिका में हैं। सरकार बचाने में जितनी सरदर्दी कांग्रेस के लीडर नही ले रहे उससे ज्यादा अपने अमर सिंह ले रहे हैं। अगर आपने कारन पूछ दिया तो ये एक ऐसा यक्ष प्रश्न है ,जिसका उत्तर मेरे पास नहीं हैं । मुलायम सिंह के साथ अमर सिंह कब जुड़े यह बात भले ही इतिहास में दर्ज न हो लेकिन मुलायम सिंह के ठेठ समाजवाद और अखाडे कि राजनीती को अमर सिंह ने कैसे कारपोरेट घराने और बॉलीवुड की चकाचौंध में फसाया यह बात इतिहास में जरूर दर्ज होगी । लोहिया के लोग यानि बाबू बेनी प्रसाद , जनेश्वर मिश्रा और राज बब्बर जैसे लोग कैसे हासिये पर चले गए और अमर सिंह फिल्मी सितारों के लिए समाजवादी पार्टी को एक प्रयोगशाला बना दिया । बिंदास सियासत के लिए मशहूर अमर सिंह समाजवादी पार्टी की पहचान बन गए । सत्ता में जोड़ तोड़ का खेल भारतीय राजनीती में जबसे तेज हुआ है अमर सिंह जैसे लोगों ने अपने लिए खास जगह बनाई है । ये बात मुलायम सिंह भी जानते हैं कि बड़े बड़े ठाकुर महासभा कराकर भी अमर सिंह ठाकुरों का एक फीसद वोट समाजवादी पार्टी को नहीं दिलवापाये लेकिन समाजवादी पार्टी को सत्ता में दुवारा वापस लाने में अमर सिंह के कौशल को समाजवादी कभी भुला नही सकते । आज अगर मुलायम सिंह यादव की अकूत धन दौलत सियासी हलकों में चर्चा का विषय है और देश कि प्रमुख जाँच एजेन्सी सी बी आई आँखे तरेर रही है , इस मुकाम पर लोहिया के लोग को लाने वाले अमर सिंह ही है। ये अलग बात है कि आय से अधिक सम्पति अर्जित करने के मामले मे सी बी आई के निशाने पर आज मुलायम नहीं हैं बल्कि निशाने पर मायावती आगई हैं । यह अमर सिंह की प्रवंधन कला है कि जो मायावती मुलायम सिंह के नाकों चने चब्बा रही थी आज ख़ुद सी बी आई के हालिया पहल के बाद बचते फ़िर रही है। संकटमोचन अमर सिंह एक साथ कांग्रेस को संकट से उबार रहे हैं वही अम्बानी बंधुओं के बीच छिडी जंग में पञ्च की भूमिका में प्रधान मंत्री को उतार रहें हैं । जैसे ही अमर सिंह संकट मोचन की भूमिका में आए पहले दिन से ही भारत सरकार के प्रमुख सचिवों से लेकर वरिष्ठ मंत्री उन्हें हर मामले में सफाई पेश कर रहें हैं । अगर हम थोड़ा सब्र करें तो ऐसा भी हो सकता है कि इन्फ्लेशन ४ फीसद पर आ जाय और विकास कि रफ्तार ११ के आंकडे को पर कर जाय । हो सकता है कि अमर सिंह की बढ़ी सक्रियता को थर्ड फ्रंट और लेफ्ट पार्टी जम कर कोशें लेकिन उन्हें सियासत में इस एथिक्स को समझाना होगा कि राजनीती में कोई किसी का दोस्त और किसीका दुश्मन नही होता । यानि सत्ता के खेल में पूंजी की भूमिका को नजरंदाज नही किया जा सकता । ऐसा नही है कि सत्ता के खेल में कारपोरेट कि भूमिका पहले नही रही है , लेकिन अमर सिंघ ने इसे एक संस्था का रूप दिया है। लोकतंत्र में अमर singhके बारे में यह यह पूछा जा सकता है कि जिसने आज तक कोई चुनाव नहीं लड़ा वो आम लोगों के नेतृत्व कि बात कैसे कर सकता है । लेकिन आज कोई भी पार्टी इन पी आर लीडर के बगैर चल नहीं सकती । बी जे पी के अरुण जेटली कभी चुनाव नहीं लड़ा , लेकिन सरकार मध्य प्रदेश में आए या गुजरात में आए या कर्नाटका मे श्रेय अरुण जेटली को दिया जाता है । राजीव शुक्ला साप्ताहिक स्तम्भ लिखकर कांग्रेस के जनाधार बढ़ाने का दावा कर सकते हैं । ठीक इसी तर्ज पर प्रेमचंद गुप्ता लालू प्रसाद यादव को कारपोरेट संस्कृति में ढाल रहे हैं । इस तरह अमर सिंघ एंड कंपनी का बोलबाला सत्ता के खेल में बढ़ रहा है । लेकिन लोक तंत्र और देश इस खेल में असहाय दिख रहा है ।
टिप्पणियाँ
country is facing a turmoil
we the people at large as the guard of democracy r responsible for the same
we have to think something above than religion or caste-- we have think about nationhood, two party system and of course for dictatorship too for some time
its a time to revolt in the country in favor of the present existing system-- in fact in the light of the absolute collapse of multi party system in india
i salute for the big efforts made here to pen down some revolutionary jottings to mr vinod mishra