कोसी के कहर और सुनामी के प्रलय में इतना फर्क क्यों



भारत सरकार की ओर से कोसी के प्रलय से प्रभावित ३० लाख लोगों के लिए १००० करोड़ रूपये की मदद दी गई है। पिछले १० दिनों की यह सबसे बड़ी ख़बर है । भारत सरकार के मंत्री (लालू जी , रामविलास पासवान जी ) बाढ़ प्रभावित इलाकों में घूम घूम कर बता रहे हैं कि भारत सरकार दिलखोल कर यहाँ धन वर्षा कर रही है । लोगों को इस बड़ी ख़बर पर यकीन कराने के लिए लालू जी अपने बटुए से पॉँच पाँच सौ के नोट निकाल के यह भी बताते हैं नोट बिल्कुल ऐसा ही होगा । रेलवे मंत्रालय के स्टोल लगे हुए हैं ,स्टील मंत्रालय के स्टोल लगे हुए हैं जहाँ कोई भी जाके रेल मंत्रालय और स्टील मंत्रालय के उपलब्धियों से अवगत हो सकता है । यहाँ आर जे डी के राहत कैम्प लगे हुए है लोजपा के कैम्प लगे हुए है जहाँ एक टाइम के भोजन के साथ चुनाव प्रचार की सामग्री भी मुफ्त बांटी जाती है ।
भारत के लोगों की जेहन में आज भी सन २००४ के प्रलयंकारी सुनामी की तस्वीर मौजूद होगी । भारत सरकार के डिसास्टर मैनेजमेंट पहली बार अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल तमिलनाडू और आन्ध्र प्रदेश के सुनामी प्रभावित इलाकों में किया था । केन्द्र सरकार की ओर से 15000 करोड रूपये से ज्यादा रिहाबिलाटेशन में खर्च किए गए । राज्य सरकार की ओर से प्रभावित परिवारों को २-२ लाख रूपये दिए गए । विवेक ओबेरॉय जैसे कई फिल्मी हस्तियां और औद्योगिग घराने ने १०० से ज्यादा गावं गोद लेकर प्रति परिवार को घर मुहैया कराया था । कई नामी गिरामी अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं ने दिल खोल कर मदद की थी । हर हाथ को काम हर की रोजी रोटी की व्यवस्था सुनिश्चित की गई । साल भर में जिन्दगी पटरी पर लौट आई थी । क्या यही नजारा कोसी प्रभावित इलाकों में है ? क्या मदद के नाम पर वहां सिर्फ़ सियासत नहीं हो रही है ? भारत के सुपर पावेर होने का दावा कोसी के प्रभावित इलाके में धरासायी नही हो रहा है ?
पुरनिया ,सुपोल ,मधेपुरा ,सहरसा , कटिहार , जैसे आधे दर्जन जिले के ३० लाख लोगों के पास आज रहने के लिए घर नहीं है , खाने के लिए दो जून की रोटी नही है । अगले १ साल तक उन्हें राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर होना पर सकता है । लेकिन रहत कम उन्हें सियासत की रोटी ज्यादा खानी पड़ रही है । इस सियासत का बिहार वर्षों से शिकार रहा है । पुरे देश में बिहार सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित राज्य है । हर साल बिहार में आने वाली बाढ़ से करोड़ों रूपये का नुकसान होता है । सैकडों की तादाद में लोग मारे जाते हैं । लेकिन उपेक्षित बिहार हर बार सियासत का ही शिकार होता है ।
१९५६ में केन्द्र सरकार ने एक योजना बनाई थी , जिसमें बराहक्षेत्र में १०० करोड़ रूपये की लागत से एक डैम बनाया जाना था । इस बाँध के बन जाने से उत्तर बिहार के २० लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जा सकता था साथ ही ४००० के करीब बिजली भी पैदा कीजा सकती थी । लेकिन भारत सरकार के सामने प्राथमिकता भाकरा नंगल डैम थी ,क्योंकि इसका नेतृत्वा प्रताप सिंह कैरों कर रहे थे । पैसे की तंगी बहाना बना और बिहार की लाखों आवादी भूख , अशिक्षा, और बेरोजगारी के दल दल में लगा तार फंसती रही । आज जिस भूमि से फसल उपजा कर पंजाब ने समृद्ध राज्यों की बराबरी का दर्जा पा लिया है , उस श्रेणी में बिहार भी आ सकता था । आज इसकी चर्चा एक बार फ़िर तेज हुई है की भीमनगर के बैरेज की अनदेखी की गई , नदी की सफाई नही हुई , बाँध पर मिट्टी नहीं डाली गई , लेकिन इस चर्चा में यह बात पीछे छुट जाती है की कितनी बार नेपाल सरकार को इस दिशा में मदद के लिए आग्रह किया गया , क्योंकि बगैर नेपाल की मदद से न तो डैम पर काम किया जा सकता है न ही बाढ़ की स्थति पर नियंत्रण पाया जा सकता है । यह तभी हो सकता है जब उपेक्षित बिहार की हालत में तबदीली के लिए भारत सरकार मजबूत इछ्शक्ति दिखावे और यह तभी हो सकता है जब बिहार से भी कोई प्रताप सिंह कैरो पैदा ले जिसके दिलो दिमाग सिर्फ़ सियासत न हो बल्कि खुशहाल बिहार का सपना हो । नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड अपनी पहले दौरे पर भारत आ रहे हैं , नई उम्मीद और उर्जा से भरे पुष्प कमल दहल प्रचंड से अगर भारत चाहे तो हाई डैम बनने की पहल तेज कर सकता है । शायद अब बिहार को लेकर केन्द्र को ५००-१००० करोड़ खर्च करने में परेशानी न हो । क्योंकि आने वाले वक्त में यह भी एक चुनावी मुद्दा हो सकता है ।

टिप्पणियाँ

vaishali ने कहा…
आपने बिल्कुल ठीक लिखा है। बिहार की सबसे बरी बिडम्बना यही है की यहाँ के नेता कम कम और राजनीती ज्यादा करते है । बिहार के पिछरेपन के लिए हमारे यही राजनेता जिम्मेदार है जिन्होंने आपनी राजनितीक रोटी सेकने के लिए लोगो की जान को भी दाव पैर लगाने से बाज नही आते । यही उत्तर और दक्षिण में अन्तर है । यही कारन है की बिहार को फंड के नाम पर सियासत मिल रहा है ।

अमित कुमार

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