कश्मीर :पैकेज नहीं सियासी पहल की जरूरत है
प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का कश्मीर दौरा कई मामले में शानदार उपलब्धि के तौर पर शुमार किया जा सकता है ।११ हजार करोड़ की लगत से बनी ४०० मेगावाट की बिजली परियोजना का शुभारम्भ प्रधानमंत्री ने अपने इस दौरे में किया है। जिससे राज्य को ९०० करोड़ रूपये की अतरिक्त आमदनी हो सकती है । कश्मीर में रेल जिसे विज्ञान का चमत्कार ही कहा जा सकता है , आज यह रेल सिटी बजाती हुई वादी के ग्रामीण अंचलों में नई उम्मीद जगाई है । कंट्रोल लाइन के दोनों ओउर आवाजाही के साथ साथ कारोबार को आसान बना दिया गया है । रियासत के विकास के लिए ६७ परियोजना पर काम चल रहे है जिस पर २४ हजार करोड़ रूपये खर्च किए जा रहे हैं । श्रीनगर के मुनिसिपल से लेकर डललेक की सफाई पर करोडो रूपये खर्च किए जा रहे है । लेकिन कश्मीर में जब देश के प्रधानमंत्री का दौरा होता है तो लोग हड़ताल पर होते है , बाज़ार बंद होते हैं , गलियां वीरान पड़ी होती है । प्रधानमंत्री का स्वागत कुछ इस तरह होता है कि अगर हिफाजत में थोडी सी ढील दी जाय तो उत्साही नौजवान प्रधानमंत्री के सामने आकर कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा लगा सकता है । आप इसे कामयाबी माने या नाकामयाबी प्रधानमंत्री का कश्मीर दौरे के समय पुरे कश्मीर में कर्फु लागू किया गया था ।
पिछले पाँच वर्षों में भारत सरकार का ३० हजार करोड़ से ज्यादा खर्च शायद इस भ्रम में किया गया की विकास की रफ़्तार के सामने में अलगाववाद की आवाज धीमी पड़ जायेगी । लेकिन ऐसा नही हुआ । पैसे की बौछार से कश्मीर में रियल स्टेट में बूम है । कस्बाई इलाके में भी शोपिंग मौल खुल गए हैं । लेकिन जब भारत और पाकिस्तान का मामला सामने आता है तो वादी में जीवे जीवे पाकिस्तान की आवाज सबसे ज्यादा गूंजती है.... । क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश कि क्या पैसा कश्मीर मसले का समाधान है ? हमें यह याद रखना चाहिए कि बिहार में आज २० लाख से ज्यादा लोग कोसी की बाढ़ के कारन घर से बेघर है । इसका समाधान महज २०० -४०० करोड़ रूपये खर्च करके ढूंढा जा सकता है ,कोसी पर बाँध और बराज बनाने से मिथिलांचल में विकास की रफ्तार तेज की जा सकती है ,लेकिन ऐसा नही हो रहा है ।
कश्मीर की इन राजनितिक पेचदीगियो पर राज्य के वर्तमान राज्यपाल एन एन वोहरा पिछले १० वर्षों नज़र रखे हुए है लेकिन कामयाबी के नाम पर उन्होंने जम्मू कश्मीर की मौजूदा सूरते हाल को देश को तोहफे के तौर पर दिया है । यही हाल कमोवेश पीएमओ और गृहमंत्रालय की भी है ।
कश्मीर का अलगाववाद मजहब के वजूद पर खड़ा है । हुर्रियत लीडर सैयेद अली शाह गिलानी का अपना तर्क है , मुसलमान होने के नाते कश्मीर सिर्फ़ पाकिस्तान का ही अंग हो सकता है । गिलानी की इस दलील को थोड़ा संशोधन करके ओमर फारूक और यासीन मालिक कश्मीर की आजादी की मांग करते है । यानि हिंदुस्तान से पैसा आ रहा है उन्हें कोई परहेज नहीं है लेकिन कश्मीर में हिंदुस्तान की सियासत नहीं चलनी चाहिए । कश्मीर में भारत की सियासत भी अजीब है , नेहरू जी के लिए कश्मीर का मतलब सिर्फ़ शेख अबुल्लाह से था , शेख साहब ने कहा हमें धारा ३७० चाहिए ,नेहरू जी ने कहा तथास्तु । शेख साहब की जिद थी कि पाकिस्तान कब्जे वाला कश्मीर पाकिस्तान के पास ही रहे , नेहरू जी ने कभी उस कश्मीर का दुबारा नाम नही लिया । शेख अब्दुलाह के बाद फारूक अब्दुल्लाह सामने आए । केन्द्र की सरकार जोड़ तोड़ करके फारूक को सिंहासन सौपती रही । फारूक से जी भरा तो मुफ्ती साहब सामने आए । आज उनकी बेटी पाकिस्तान के सद्र के इस बयान की आलोचना करती है की जरदारी साहब ने कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों को दहशतगर्द कहा । महबूबा के लिए भी ये दहशतगर्द नही है ये जेहादी नहीं हैं । ये स्वतंत्रता सेनानी है । महबूबा सांसद है , जम्मू कश्मीर में अगले मुख्या मंत्री के दावेदार हैं । सोनिया जी से इसके लिए पैरवी भी कर रही है । तो फ़िर कश्मीर की आजादी मांगने वालों के बीच से क्यों न मुख्यमंत्री का दावेदार ढूंढा जाय । पुराने चेहरे को सामने लाकर कश्मीरियों को चिढाने के वजाय क्या यह जरूरी नहीं है कि नए चेहरे को सामने लाया जाय । याद रहे कश्मीर में अलगावाद का जनक माने जाने वाले गिलानी साहब तीन बार एम् एल ऐ रह चुके है । हिजबुल मुजाहिद्दीन के सरबरा सलाहुद्दीन असेम्बली के चुनाव लड़ चुके हैं । ये अलग बात है कि फारूक अब्दुल्लाह के कारन उसे एम् एल ऐ नहीं बनने दिया गया । आज जरुरत है सियासी पहल की , पैकेज को भूल कर हमें एक सर्ब्मान्य लीडर खोजने होंगे जिसका कश्मीर के आम लोगों में पहुच हो । हमें इस गलती को भी सुधारने होंगे कि कश्मीर का मतलब सिर्फ़ वादी नहीं है , जम्मू का अपना अस्तित्वा है लदाख में भी लोग रहते है जो विशुद्ध भारतीय हैं । लेकिन केन्द्र सरकार कि ग़लत राजनीतिक फैसले ने कश्मीरी पंडित को सियासी धारा से अलग कर दिया , कश्मीर के गुर्ज्जर ,जम्मू की बड़ी आवादी , लदाख और कारगिल के लोग इस धारा काट दिए गए । यही वजह है की महज २० फीसद सुन्नी muslim की आवाज न केवल सियासी धारा को अपने साथ ले गई बल्कि भारत से आने वाले पैसे का जमकर लुत्फ़ उठाया । कश्मीर को अपना फ़ैसला करने का हक है , उन्हें अपनी तरक्की के लिए ख़ुद अपना बुनियाद खड़ा करने दीजिये .
पिछले पाँच वर्षों में भारत सरकार का ३० हजार करोड़ से ज्यादा खर्च शायद इस भ्रम में किया गया की विकास की रफ़्तार के सामने में अलगाववाद की आवाज धीमी पड़ जायेगी । लेकिन ऐसा नही हुआ । पैसे की बौछार से कश्मीर में रियल स्टेट में बूम है । कस्बाई इलाके में भी शोपिंग मौल खुल गए हैं । लेकिन जब भारत और पाकिस्तान का मामला सामने आता है तो वादी में जीवे जीवे पाकिस्तान की आवाज सबसे ज्यादा गूंजती है.... । क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश कि क्या पैसा कश्मीर मसले का समाधान है ? हमें यह याद रखना चाहिए कि बिहार में आज २० लाख से ज्यादा लोग कोसी की बाढ़ के कारन घर से बेघर है । इसका समाधान महज २०० -४०० करोड़ रूपये खर्च करके ढूंढा जा सकता है ,कोसी पर बाँध और बराज बनाने से मिथिलांचल में विकास की रफ्तार तेज की जा सकती है ,लेकिन ऐसा नही हो रहा है ।
कश्मीर की इन राजनितिक पेचदीगियो पर राज्य के वर्तमान राज्यपाल एन एन वोहरा पिछले १० वर्षों नज़र रखे हुए है लेकिन कामयाबी के नाम पर उन्होंने जम्मू कश्मीर की मौजूदा सूरते हाल को देश को तोहफे के तौर पर दिया है । यही हाल कमोवेश पीएमओ और गृहमंत्रालय की भी है ।
कश्मीर का अलगाववाद मजहब के वजूद पर खड़ा है । हुर्रियत लीडर सैयेद अली शाह गिलानी का अपना तर्क है , मुसलमान होने के नाते कश्मीर सिर्फ़ पाकिस्तान का ही अंग हो सकता है । गिलानी की इस दलील को थोड़ा संशोधन करके ओमर फारूक और यासीन मालिक कश्मीर की आजादी की मांग करते है । यानि हिंदुस्तान से पैसा आ रहा है उन्हें कोई परहेज नहीं है लेकिन कश्मीर में हिंदुस्तान की सियासत नहीं चलनी चाहिए । कश्मीर में भारत की सियासत भी अजीब है , नेहरू जी के लिए कश्मीर का मतलब सिर्फ़ शेख अबुल्लाह से था , शेख साहब ने कहा हमें धारा ३७० चाहिए ,नेहरू जी ने कहा तथास्तु । शेख साहब की जिद थी कि पाकिस्तान कब्जे वाला कश्मीर पाकिस्तान के पास ही रहे , नेहरू जी ने कभी उस कश्मीर का दुबारा नाम नही लिया । शेख अब्दुलाह के बाद फारूक अब्दुल्लाह सामने आए । केन्द्र की सरकार जोड़ तोड़ करके फारूक को सिंहासन सौपती रही । फारूक से जी भरा तो मुफ्ती साहब सामने आए । आज उनकी बेटी पाकिस्तान के सद्र के इस बयान की आलोचना करती है की जरदारी साहब ने कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों को दहशतगर्द कहा । महबूबा के लिए भी ये दहशतगर्द नही है ये जेहादी नहीं हैं । ये स्वतंत्रता सेनानी है । महबूबा सांसद है , जम्मू कश्मीर में अगले मुख्या मंत्री के दावेदार हैं । सोनिया जी से इसके लिए पैरवी भी कर रही है । तो फ़िर कश्मीर की आजादी मांगने वालों के बीच से क्यों न मुख्यमंत्री का दावेदार ढूंढा जाय । पुराने चेहरे को सामने लाकर कश्मीरियों को चिढाने के वजाय क्या यह जरूरी नहीं है कि नए चेहरे को सामने लाया जाय । याद रहे कश्मीर में अलगावाद का जनक माने जाने वाले गिलानी साहब तीन बार एम् एल ऐ रह चुके है । हिजबुल मुजाहिद्दीन के सरबरा सलाहुद्दीन असेम्बली के चुनाव लड़ चुके हैं । ये अलग बात है कि फारूक अब्दुल्लाह के कारन उसे एम् एल ऐ नहीं बनने दिया गया । आज जरुरत है सियासी पहल की , पैकेज को भूल कर हमें एक सर्ब्मान्य लीडर खोजने होंगे जिसका कश्मीर के आम लोगों में पहुच हो । हमें इस गलती को भी सुधारने होंगे कि कश्मीर का मतलब सिर्फ़ वादी नहीं है , जम्मू का अपना अस्तित्वा है लदाख में भी लोग रहते है जो विशुद्ध भारतीय हैं । लेकिन केन्द्र सरकार कि ग़लत राजनीतिक फैसले ने कश्मीरी पंडित को सियासी धारा से अलग कर दिया , कश्मीर के गुर्ज्जर ,जम्मू की बड़ी आवादी , लदाख और कारगिल के लोग इस धारा काट दिए गए । यही वजह है की महज २० फीसद सुन्नी muslim की आवाज न केवल सियासी धारा को अपने साथ ले गई बल्कि भारत से आने वाले पैसे का जमकर लुत्फ़ उठाया । कश्मीर को अपना फ़ैसला करने का हक है , उन्हें अपनी तरक्की के लिए ख़ुद अपना बुनियाद खड़ा करने दीजिये .
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