यहाँ हर पार्टी में है ओबामा और जूनियर ओबामा

अमेरिका के नए राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा १९६१ के जिस दौर में पैदा लिए थे उस समय अमेरिका में अफ्रीकन -अमेरिकन को वोट देने का अधिकार नहीं था । १९६४ में पहलीबार नागरिक कानून के तहत अमेरिका में तमाम लोगों वोट का अधिकार दिया गया । यहाँ तक कि ७० के दशक तक गोरे और काले के वैवाहिक संबंधों को कानूनी मान्यता नही मिली थी । लेकिन महज ३०-३५ वर्षों में ऐसा क्या चमत्कार हुआ कि एक अफ्रीकन -अमेरिकन बराक ओबामा अमेरिका का सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता बनकर व्हाइट हाउस पहुँच गए । दुनिया के लोग इसे ओबामा का चमत्कार मान रहे हैं , राजनितिक पंडित इसे अमेरिका के हालत से जोड़ रहे हैं । लेकिन ओबामा के शपत ग्रहण समारोह में ४० लाख से ज्यादा लोगों की उमड़ी भीड़ ने दुनिया को बता दिया की ओबामा आम अमेरिकी के नेता है और वो लोगों के उम्मीदों के प्रतिनिधित्वा करते है । ओबामा ने लोगो को भरोसा दिया" वी कैन "और लोगों ने इसे साबित करने के लिए उन्हें मौका दिया ।
बराक ओबामा के इस चमत्कार को आजमाने की कबायद भारत में भी तेज हुई और हर पार्टी से एक ओबामा को सामने लाया जा रहा है । हमारे सियासी लीडरों में पहले तथाकथित दलित और पिछडे के स्वनाम धन्य लीडरों ने अपने को भारत का ओबामा बनने का बीड़ा उठाया , इस क्रम में मायावती, रामविलाश पासवान ,लालू प्रसाद ,मुलायम जैसे दर्जनों लीडर सामने आए और कहा वी कैन ।
कांग्रेस और बीजेपी भला इस दौर से अपने को कहाँ अलग कर पाती । लाल कृष्ण अडवाणी बीजेपी के ओबामा बने तो कांग्रेस ने राहुल गाँधी में ओबामा की छबी देखी । बीजेपी के प्रधान मंत्री पद के दबेदार अडवाणी जी ने बाकायदा देश के उत्साही नौजवानों से नेट चाटिंग भी शरू कर दी है । और लोगों को बता रहे हैं की वे दिलो दिमाग से स्वस्थ है और जवान है । राहुल गाँधी बाकायदा ओबामा के ट्रिक समझने के लिए मनाज्मेंट गुरुओं से शिक्षा ले रहे है । यानि इन नेताओं को भरोसा है कि एलोक्ट्रोनिक गजेट से लैस देश के शहरी नौजवान उन्हें ओबामा बना देंगे । लेकिन शायद हम भूल जाते है की भारत अमेरिका नही है । इस देश में पिछले २० वर्षों से लोगों ने प्रधान मंत्री नहीं चुना है बल्कि कुछ लीडरों ने सिंडिकेट बना कर प्रधान मंत्री चुना है तो कभी आलाकमान ने अपने खास विश्वासपात्र को देश की बागडोर सौप दी है । राजीव गाँधी के बाद पहला प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हुए जिन्होंने लोगों से देश का नेतृत्वा माँगा ।बांकी सभी डार्क हौर्स ही साबित हुए हैं ।

राष्ट्रीय पार्टी इस दौर में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ कदम मिलकर चलने की कोशिश कर रही है ,यानि राष्ट्रीय मुद्दे गौण हो गए है लेकिन हम राष्ट्रीय नेतृत्वा का सपना देख रहे हैं । क्षेत्रीय पार्टियों के सामने पहले उनका परिवार है फ़िर जातीय मुद्दे । इस तरह तमाम ओबामा के जूनियर ओबामा भी तैयार बैठे है । इस हालत में राष्ट्रीय स्तर पर ओबामा बन्ने वालों के सामने कडा मुकाबला है ।
अमेरिका में आज नेतृत्वा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका के प्रभुत्वा और उसके शोर्य को बहाल और बरक़रार रखने का है । अमेरिका की आर्थिक शक्ति इस दौर में छीन हो गई है । अमेरिकी समाज जी जान से पुनर्निर्माण में लगा हुआ है और इसके लिए उसने उर्जावान नेता ओबामा को चुना है । हमारी व्यवस्था ने हमें मौजूदा हालत में जीने के लिए अभ्यस्त बना दिया है । पिछले वर्षों में सिर्फ़ आतंकवाद ने हमारे २०००० से ज्यादा मासूमों की जान ले ली है । लेकिन आतंकवाद से लड़ने का हमने कोई अदम्य इछ्शक्ति नही दिखाई है । सामाजिक असमानता इतनी ज्यादा है कि इसी देश में दुनिया के सबसे ज्यादा करोड़पति है , तो इसी देश में सबसे ज्यादा बच्चे भूखे सो रहे हैं । सुबिधा को हड़पने की कबायद देश के आला मंत्रियों से लेकर नेताओं , अफसर और बाबू में इस कदर होड़ है कि देश के खजाने का अधिकांश हिस्सा इन पर लूटाया जा रहा है । अधिक से अधिक सुबिधा पाने की ललक ने देश और समाज की अवधारणा को ही ख़त्म कर दिया है और भ्रष्टाचार सर चढ़ कर अपनी करिश्मा दिखा रहा है । इस हालत में भारत में ओबामा जैसे राष्ट्रीय नेतृत्वा का सपना शायद हमारा खुबसूरत ख्वाब ही हो सकता है ।

टिप्पणियाँ

Udan Tashtari ने कहा…
फिर भी एक उम्मीद है कि कमबख्त, नहीं जाती.

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