सियासत में आर्मी को मोहरा बनाने से बाज आयें
कश्मीर के बोमई मामले में आर्मी के कोर्ट ऑफ़ इन्कुइरी का फ़ैसला आ चुका है । इस फैसले में एक जूनियर कमांडिंग ऑफिसर समेत दो जवानों को दो नागरिकों के कथित हत्या के लिए दोषी करार दिया गया है । हालाँकि आर्मी के इस फैसले से पहले रियासत की हुकूमत की एक कमिटी ने इन हत्या के लिए फौज को दोषी करार दिया था । ठीक लोकसभा चुनाव के पहले सोपोर के इस वाकये ने ओमर अब्दुल्लाह सरकार को बैकफ़ुट पर ला दिया था । फौज को कश्मीर से बहार खदेड़ने को चुनावी मुद्दा बनाकर पीडीपी ने एन सी को लगभग हासिये पर ला दिया था ।
सोपोर में स्कूल बंद थे । आर्मी कैंप को हटाने के लिए जोरदार प्रदर्शन जारी था । हड़बड़ी में ओमर अब्दुल्लाह ने रियासत से आर्म्स फाॅर्स स्पेशल पॉवर एक्ट को ख़तम करने की अपनी मांग तेज कर दी, वही डिफेन्स मिनिस्टर से लेकर होम मिनिस्टर पर यह दवाब बनाते रहे की आर्मी के खिलाफ करवाई जरुरी है । ओर हुआ यही एक हफ्ते के अंदर परमिलिट्री फाॅर्स से लेकर आर्मी के जवानों विभिन् मामलों में दोषी करार दिया गया । कई जवान मुअत्तल किए गए । लाव ऑफ़ लैंड को लागु करना हुकूमत की जिम्मेदारी है ,पीडितों को न्याय दिलाना भी हुकूमत की जिम्मेवारी है । लोगों यह बताना भी जरुरी है फौज लोगों की हिफाजत के लिए है न की मासूमों पर अत्याचार के लिए । मानवाधिकार की हर हाल में रक्षा होनी चाहिए । लेकिन जिस जल्द्वाजी में ये तमाम फैसले लिए गए उसमें सियासत की बू आना स्वाभविक है ।
स्थानीय लोग भी बताते हैं कि सोपोर के निवासी अमिन तान्तरे ओर जावेद अहमद दार पहले आतंकवादी गतिविधि में सरगर्म था बाद में वह स्थानीय पुलिस का मुखबिर बन गया । सोपोर ९० के दशक के बाद से आतंकवादी वारदातों का मरकज रहा है। कह सकते है कि पिछले १५ वर्षों से सोपोर न केबल हिजबुल मुजाहिद्दीन का गढ़ बना हुआ है बल्कि आतंकवादियों के लाइफ लाइन को भी बरक़रार रखा है । स्थानीय पुलिस को जब यह लगा कि तन्त्रे और दार उसकी पहुँच और पकड़ से बाहर हो रहा है और वे हिज्ब के लिए भी काम कर रहा है तो उन्हें निबटाने की जदोजहद तेज हुई । लोग बताते हैं कि सियासी मजबूरी के कारण पुलिस यह काम नही कर सकती थी इसलिए उसे आतंकवादी बता कर आर्मी को उसके छुपे होने की ख़बर दी । आर्मी ने क्रैक डॉन लगाया ,आस पास शोर शराबे हुए और आर्मी ने फायर खोल दी । कुछ लोगों का मानना है तन्त्रे के तीन साथी पहले से ही पुलिस के लिए काम कर रहे थे । किसी बात को लेकर इनमें अनबन हुई और एक बन्दा उठकर आर्मी कैंप चला गया और आर्मी को आतंकवादी के छुपे होने की सुचना दी । फौज ने उसकी ख़बर पर धावा बोला तो घबराहट में अन्दर से दोनों नौजवान ने प्रतिरोध किया और फौज को गोली चलानी पड़ी ।
लेकिन सियासत ऐसी कि पिछले एक पखवाडे से सोपोर को सुलगाने के कोई कसर छोड़ी नही गई है । मानो कश्मीर का आमजीवन पीडीपी और एन सी के सियासी संघर्ष का हिस्सा बन गया हो ।
कभी इन्ही दो पार्टियों के सियासी संघर्ष के कारण मेजर रहमान पर कोर्ट मार्शल हुआ था और उन्हें नाप दिया गया था । मेजर रहमान को हंदवारा के एक मासूम के बलात्कार के मामले में फसाया गया था । ये अलग बात है कि उस समय मुफ्ती मोहम्मद मुक्यमंत्री थे और ओमर अब्दुल्लाह विपक्षी नेता । इसमें कोई दो राय नही कि पद और पदक के लोभ में आर्मी समेत रियासत की पुलिस ने कई फेक एनकाउंटर किए है । ख़ुद मुफ्ती साहब ने दर्जनों कांस्टेबल को ऑफिसर बनाया है दर्जनों छोटे दर्जे के ऑफिसर ने रातों रात बड़ा दर्जा पा लिया । इस तरह पुलिस महकमा भी एन सी और पीडीपी के कैंप में बता हुआ है ।
सवाल यह है की ठीक चुनाव की सरगर्मी से पहले कोई न कोई हादसा क्यों होता है ? क्यों हर बार टूरिजम के पीक सीज़न में कोई न कोई आतंकवादी वारदात क्यों होता है ? क्यों आम जीवन अमन की जिन्दगी जीने की अभ्यस्त होने लगती है अचानक एक बड़ा हादसा bhहो जाता है । कौन है ये लोग इन्हें पहचानने की जरूरत है । कहा जाता है कि कश्मीर में तीन बन्दूक मौजूद है । पुलिस ,आतंकवादी के अलावे भी एक अदृश्य बन्दूक है जिस पर न तो आर्मी का कंट्रोल है न ही पुलिस का इस बन्दूक को सियासत का संरक्षण प्राप्त है ।
फौज ने अपने हजारों जबानों की बलि देकर कश्मीर में ऐसा माहोल बनाया है कि सीयासी नेताओं के पो बारह हैं । आम लोगों की गाढी कमाई आज अरबों में कश्मीर झोका जा रहा है , वहां लीडरों को फंड जुटाने की चिंता नही है बल्कि उन्हें फंड को ठिकाने लगाने की जदोजहद है । आतंकवादी और अलगावादी का खेल कश्मीर में लगभग ख़त्म हो चुका है अब आतंकवाद और अलगावबाद की आड़ में एक नई सियासी पैतरेबाजी की शुरुआत हुई है । इस पैत्र्बजी में आर्मी को भी जबरदस्ती शामिल किया जा रहा है । चुनाव आयुक्त को सियासी पद नही देने के लिए बहस का सिलसिला जारी है बेहतर यह है कि हम इस बहस को आगे बढाएं और और आर्मी चीफ या जेनरल को गोवेर्नोर या दुसरे सियासी पद देने से रोकें । बरना देश की अखंडता और अस्मिता की रक्षा करने वाले हमारी फौज नेताओं के पिछलगू ही बन कर रह जायेंगे ।
सोपोर में स्कूल बंद थे । आर्मी कैंप को हटाने के लिए जोरदार प्रदर्शन जारी था । हड़बड़ी में ओमर अब्दुल्लाह ने रियासत से आर्म्स फाॅर्स स्पेशल पॉवर एक्ट को ख़तम करने की अपनी मांग तेज कर दी, वही डिफेन्स मिनिस्टर से लेकर होम मिनिस्टर पर यह दवाब बनाते रहे की आर्मी के खिलाफ करवाई जरुरी है । ओर हुआ यही एक हफ्ते के अंदर परमिलिट्री फाॅर्स से लेकर आर्मी के जवानों विभिन् मामलों में दोषी करार दिया गया । कई जवान मुअत्तल किए गए । लाव ऑफ़ लैंड को लागु करना हुकूमत की जिम्मेदारी है ,पीडितों को न्याय दिलाना भी हुकूमत की जिम्मेवारी है । लोगों यह बताना भी जरुरी है फौज लोगों की हिफाजत के लिए है न की मासूमों पर अत्याचार के लिए । मानवाधिकार की हर हाल में रक्षा होनी चाहिए । लेकिन जिस जल्द्वाजी में ये तमाम फैसले लिए गए उसमें सियासत की बू आना स्वाभविक है ।
स्थानीय लोग भी बताते हैं कि सोपोर के निवासी अमिन तान्तरे ओर जावेद अहमद दार पहले आतंकवादी गतिविधि में सरगर्म था बाद में वह स्थानीय पुलिस का मुखबिर बन गया । सोपोर ९० के दशक के बाद से आतंकवादी वारदातों का मरकज रहा है। कह सकते है कि पिछले १५ वर्षों से सोपोर न केबल हिजबुल मुजाहिद्दीन का गढ़ बना हुआ है बल्कि आतंकवादियों के लाइफ लाइन को भी बरक़रार रखा है । स्थानीय पुलिस को जब यह लगा कि तन्त्रे और दार उसकी पहुँच और पकड़ से बाहर हो रहा है और वे हिज्ब के लिए भी काम कर रहा है तो उन्हें निबटाने की जदोजहद तेज हुई । लोग बताते हैं कि सियासी मजबूरी के कारण पुलिस यह काम नही कर सकती थी इसलिए उसे आतंकवादी बता कर आर्मी को उसके छुपे होने की ख़बर दी । आर्मी ने क्रैक डॉन लगाया ,आस पास शोर शराबे हुए और आर्मी ने फायर खोल दी । कुछ लोगों का मानना है तन्त्रे के तीन साथी पहले से ही पुलिस के लिए काम कर रहे थे । किसी बात को लेकर इनमें अनबन हुई और एक बन्दा उठकर आर्मी कैंप चला गया और आर्मी को आतंकवादी के छुपे होने की सुचना दी । फौज ने उसकी ख़बर पर धावा बोला तो घबराहट में अन्दर से दोनों नौजवान ने प्रतिरोध किया और फौज को गोली चलानी पड़ी ।
लेकिन सियासत ऐसी कि पिछले एक पखवाडे से सोपोर को सुलगाने के कोई कसर छोड़ी नही गई है । मानो कश्मीर का आमजीवन पीडीपी और एन सी के सियासी संघर्ष का हिस्सा बन गया हो ।
कभी इन्ही दो पार्टियों के सियासी संघर्ष के कारण मेजर रहमान पर कोर्ट मार्शल हुआ था और उन्हें नाप दिया गया था । मेजर रहमान को हंदवारा के एक मासूम के बलात्कार के मामले में फसाया गया था । ये अलग बात है कि उस समय मुफ्ती मोहम्मद मुक्यमंत्री थे और ओमर अब्दुल्लाह विपक्षी नेता । इसमें कोई दो राय नही कि पद और पदक के लोभ में आर्मी समेत रियासत की पुलिस ने कई फेक एनकाउंटर किए है । ख़ुद मुफ्ती साहब ने दर्जनों कांस्टेबल को ऑफिसर बनाया है दर्जनों छोटे दर्जे के ऑफिसर ने रातों रात बड़ा दर्जा पा लिया । इस तरह पुलिस महकमा भी एन सी और पीडीपी के कैंप में बता हुआ है ।
सवाल यह है की ठीक चुनाव की सरगर्मी से पहले कोई न कोई हादसा क्यों होता है ? क्यों हर बार टूरिजम के पीक सीज़न में कोई न कोई आतंकवादी वारदात क्यों होता है ? क्यों आम जीवन अमन की जिन्दगी जीने की अभ्यस्त होने लगती है अचानक एक बड़ा हादसा bhहो जाता है । कौन है ये लोग इन्हें पहचानने की जरूरत है । कहा जाता है कि कश्मीर में तीन बन्दूक मौजूद है । पुलिस ,आतंकवादी के अलावे भी एक अदृश्य बन्दूक है जिस पर न तो आर्मी का कंट्रोल है न ही पुलिस का इस बन्दूक को सियासत का संरक्षण प्राप्त है ।
फौज ने अपने हजारों जबानों की बलि देकर कश्मीर में ऐसा माहोल बनाया है कि सीयासी नेताओं के पो बारह हैं । आम लोगों की गाढी कमाई आज अरबों में कश्मीर झोका जा रहा है , वहां लीडरों को फंड जुटाने की चिंता नही है बल्कि उन्हें फंड को ठिकाने लगाने की जदोजहद है । आतंकवादी और अलगावादी का खेल कश्मीर में लगभग ख़त्म हो चुका है अब आतंकवाद और अलगावबाद की आड़ में एक नई सियासी पैतरेबाजी की शुरुआत हुई है । इस पैत्र्बजी में आर्मी को भी जबरदस्ती शामिल किया जा रहा है । चुनाव आयुक्त को सियासी पद नही देने के लिए बहस का सिलसिला जारी है बेहतर यह है कि हम इस बहस को आगे बढाएं और और आर्मी चीफ या जेनरल को गोवेर्नोर या दुसरे सियासी पद देने से रोकें । बरना देश की अखंडता और अस्मिता की रक्षा करने वाले हमारी फौज नेताओं के पिछलगू ही बन कर रह जायेंगे ।
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