जेहादी शबीर मालिक को सलाम !


शबीर अहमद मालिक । एक आम कश्मीरी ,एक साधारण किसान का बेटा ,लेकिन जज़्बात के मामले में कुछ अलग । श्रीनगर के पास के एक गाँव दूब का रहने वाला शबीर में ऐसा क्या था कि उसके मरने पर हजारों की तादाद में लोग मातम मानाने ,उन्हें श्रधांजलि देने उसके घर पहुंचे । माहोल ऐसा मनो जमी रो रही थी आसमा रो रहा था । पिछले ३० वर्षों में कश्मीर के लोग शायद ही ऐसे मातमी नज़ारे देखे हों । शायद ही ऐसी तड़प लोगों की आंखों में पहले देखा गया हो । जाहिर है जहाँ मौत का सिलसिला वर्षों से जारी हो वहां एक शख्स की मौत से हजारों लोगों को जज्वाती होना एक अनहोनी सी बात थी । पिछले वर्षों तक कश्मीर में मारे गए आतंकवादी के लिए मातमी जलूस निकल ते थे , जहाँ नारे तकबीर और अल्लाह ओ अकबर के नारे लगते थे और इस नारे में जिले जिले पाकिस्तान होता था । लेकिन शबीर मालिक के जनाजे में शामिल हजारों भीड़ का भी वही नारा था नारे तकबीर ,अल्लाह ओ अकबर ,लेकिन जिले जिले पाकिस्तान की जगह आजाद हिंदुस्तान की गूंज थी । कुपवारा के घने जंगलों में लश्कर ऐ तोइबा के दहशतगर्दों के साथ एक मुठभेड़ में मेजर मोहित शर्मा ,काम्मान्दो शबीर मालिक सहित आठ जवान मारे गए थे , लेकिन इन बहादुर सेनानियों ने लश्कर के २५ दहशतगर्दों को मार गिराया ।
शबीर मालिक का एक दोस्त तनवीर शबीर की मौत को कुछ इस तरह बयां करता है "उसने दो तरह की शहादत दी है ,एक तो अपने कौम के लिए शहादत दी है जिसे यह कौम क़यामत तक याद रखेगा और एक अपने देश के लिए अपने वतन के लिए जेहाद किया है । हमें उस पर नाज है । शबीर का बचपन से शौक था कमांडो बनकर नाम निहाद जेहादियों से मुकाबला करने का और वह अपने मिशन में कामयाब रहा "
श्रीनगर का एक नौजवान यासीन कहता है " शाबिर ने कश्मीर में हीरो का दर्जा पा लिया है हम भी शाबिर जैसा हीरो का दर्जा चाहते है । हम भी देश के लिए कुर्बान होना चाहते है , हम भी ऐसी मौत चाहते है कि लोग हम पर नाज़ कर सकें ।
५५ साल पुरा कर चुके शौकत अहमद कहते है कि "अपनी जिंदगी में मैंने ऐसा जनाज़ा पहले कभी नही देखा था .लोगों की आँखों में ऐसा फक्र पहले कभी नही देखा "
शाबिर की शहादत पर लोगों की उमड़ी भीड़ से हैरान कुछ मिडिया कर्मी इसे शिया लोगों के भारत के प्रति पुराने लगाव का नतीजा मानते है । उनका मानना है कि चूँकि आतंकवादी ज्यादा सुन्नी तबके से हैं ,ज्यादा तर अलगाववादी नेता सुन्नी है इसलिए जनाजे में शिया लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है । मैं उनकी समझ को तौहीन नही कर सकता लेकिन उनकी जानकारी के लिए यह जरूर बतादें की दर्जनों बटालियन आर्मी के और जम्मू कश्मीर पुलिस में हजारों की तादादा में स्थानीय muslim हैं जो शिया -सुन्नी से अलग देश के जवान है ।
लेकिन यह फर्क जब मिडिया के अलावे कोई सरकार करती है तो मामला अफ्शोश्नक जरूर हो जाता है । शहीद शाबिर मालिक के परिजनों को देने के लिए जम्मू कश्मीर सरकार के पास कुछ भी नही है । पंजाब का एक जबान शहीद होता है तो उसके परिवार वालों को १५ लाख का मुआबजा मिलता है । उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य भी अपने शहीद के लिए १० लाख रूपये से ज्यादा मुआबजा देते हैं । लेकिन जम्मू कश्मीर सरकार के लिए ऐसी कोई निधि नही है जो फौज के जवानों के ताई कृतज्ञता जाहिर कर सके । अपना आज कुर्वान कर के रियासत के कल को सवारने में लगे फौज की बलिदान का क्या जम्मू कश्मीर में कोई क़द्र नहीं है ? यह एक बड़ा सवाल है ।
शबिर मालिक की शहादत सिर्फ़ एक फौज की शहादत नही है बल्कि अपने मुल्क के लिए अपना सर्वस्वा नियोछाबर करने वाले नौजवान की कहानी है । इन नौजवानों के लिए अपना मुल्क ही मजहब है ,अपने मुल्क की संप्रभुता की हिफाज़त ही जिहाद है । चुनावी माहोल में नेता सत्ता पर काबिज़ होने के लिए "जय हो "," भय हो "का नारा लगा रहे हैं । मजहब के नाम पर तो जाती के नाम पर वोटरों को गोलबंद कर रहे है, इनके लिए देश महज एक शतरंज की बिशात है । इसलिये कभी कोई नौजवान सिम्मी से जुड़ जाता है तो कभी इंडियन मुजाहिद्दीन बनकर अपने लोगों के ख़िलाफ़ शाजिस करता है । कभी सरहद पार के शाजिशों का हिस्सा बन जाता है । शबिर ने इस देश को अपना समझा उसके लिए कुर्बानी दी । fir kyon kuchh log is desh ko paraya samjhte hai ,unhe samjhne kee jaroorat hai siyasat karne kee nahi।



टिप्पणियाँ

vaishali ने कहा…
बहुत अच्छा लिखा है , वाकई जरुरत है समझाने की आर्मी के चौकसी और शहादत की की वजह से ही हमारे मुल्क की न सिर्फ़ सरहद सुरक्षित है बल्कि उनकी कुर्बानिया देश पर आने वाले हर नापाक मनसूबे को बिफल करते है । शब्बीर की सहादत कश्मीरी लोगो के लिए भले ही आज मिशल बन गई है लेकिन इस तरह की कुर्बानिया देश के दुसरे हिस्से में उपद्रबी से लड़ रहे सैनिको और सुरक्षाबलों को क्यों नही मिलती । क्यों नही उनकी ख़बर भी उसी तरह बन पाती है । आप जैसे ब्लॉग राईटर को कश्मीर पर शब्बीर की शहादत एक मिशाल नज़र आती है । लेकिन क्या नक्सालियो से और दुसरे अलगओंवादी तत्वों से लोहा लेते हुए मरने वाले सैनिक क्या इस शहादत के हक़दार नही है । क्या आप जैसे ब्लोगिस्ट को उनपर लिखने का हक हासिल नही है ?
निशाचर ने कहा…
वतन पर जानिसार करने वालों को मेरा सलाम. शब्बीर आज कश्मीर की नई पीढी के हीरो हैं यह सुनकर ख़ुशी होती है. लेकिन अलगाववाद की आग पर रोटियां सेंकने वाली कश्मीर की सरकार के पास मारे गए आतंकवादियों के परिवारजनों को पेंशन देने के लिए पैसा और दिल दोनों है लेकिन वतन के लिए मरने वालों के लिए उनके खजाने और दिल दोनों खाली हैं. इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है?

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