लाल सलाम और पाकिस्तान का तालिबान


परेशान रात सारी है ,सितारे तुम तो सो जाओ" । पाकिस्तान में एक शायर का यह दर्द उस समय फुटा जब एक १६ साल की लड़की "चाँद "तालिबान के ३६ कोडे खा कर कराह रही थी और पाकिस्तान का समाज भीष्म पितामह की तरह मजबूर रोता रहा लेकिन तालिबान के ख़िलाफ़ एक शब्द नही निकाल पाया । यह कौन सी मजबूरी है पाकिस्तान की सैकडों लड़किया सरे आम तालिबान के हाथो पिटती रही है ,सैकडो का सर कलम कर दिया गया है लेकिन पाकिस्तानी समाज चुप है । क्या शरिया कानून के लिए पाकिस्तानी समाज इतना लालायित है कि वह तालिबान के हर उल्टे सीधे फैसले को स्वीकार कर रहा है । क्या वाकई मजहब की ताकत पर तालिबान ने पुरे सिस्टम को बौना बना दिया है और संसद से लेकर सेना तक घुटने टेक कर तालिबान के सामने खड़ा है । दरअसल यह तालिबान का सिर्फ़ मजहबी ताकत नही है बल्कि पाकिस्तान में बढ़ते लाल सलाम के प्रभाव का नतीजा है ।
कभी अफगानिस्तान में कम्युनिस्ट को खदेड़ने के लिए लिए पाकिस्तान और अमेरिका ने तालिबान को खड़ा किया था। पाकिस्तान के मदरसों का साथ लेकर सी आई ने तालिब को मुजाहिद्दीन बना दिया था । आज वही मदरसा और उसके तालिब अमेरिका के पीछे पड़ा हुआ है और तालिबान माओ और लेनिन की ओर झाँक रहा है । नॉर्थ वेस्ट फ़्रोन्तियेर प्रोविंस और फाटा रेजिओन से बाहर निकल कर तालिबान आज सिंध ,पंजाब और बलोचिस्तान में अपना आधार मजबूत कर रहा है तो यह सिर्फ़ शरिया और इस्लाम की ताकत नही है । बल्कि तालिबान ने जमींदारों पर सीधा निशाना कर के गरीब और पिछडों को अपने साथ कर लिया है । पाकिस्तान के संसाधनों पर ५ फीसद लोगों के कब्जा ने आज बहुमत को तालिबान का हितैषी बना दिया है । फाटा और स्वात में तमाम संसाधनों से जमींदारों को बेदखल कर तालिबान ने पाकिस्तान के शोषित तबके में यह भरोसा बढाया कि जमींदारों से मुक्ति अब दूर नही है । बंधुआ प्रथा आज भी पुरे पाकिस्तान में लागू है । जमींदारों के मजदूरों की हालत गुलामों से बदतर है । ऐसी हालत में तालिबान को एक बड़े समूह का समर्थन बैठे बिठाये मिलगया है जो वर्षों से मुक्ति के लिए छट पटा रहा था ।
मजहब के नाम पर पाकिस्तान बनाने वाले जमींदारों को यह आभास हो गया था कि आज़ादी के बाद हिंदुस्तान में उनकी जमींदारी छीन जायेगी । कांग्रेस में समाजवादियों के बढ़ते प्रभाव ने उन्हें डरा दिया था । यही वजह थी कि पाकिस्तान ने मजहब का नारा दिया और लोगों को बताया कि आजाद हिंदुस्तान में उनका अस्तित्वा ही खतरे में पड़ जायेंगे । मजहब के नाम पर इतना बड़ा कत्ले- आम इतिहास में शायद ही कभी हुआ हो लेकिन फ़िर भी पाकिस्तान एक नही रह सका और दुबारा उसका विभाजन बांग्लादेश के रूप में हुआ । तो जाहिर है पाकिस्तान के जमींदारों ने लोगों के साथ धोखा किया था ।
जिस मजहब का हथियार बनाकर जमींदारों ने अपनी रोटी सेकी उसी मजहब को तालिबान ने अपना हथियार बनाकर आज तालिबान ने तमाम फयूडल लॉर्ड्स की नींद हराम कर दी है । आज यह तालिबान इस्लामाबाद तक पहुच चुका है तो इन लॉर्ड्स को लगने लगा है उनकी सत्ता जल्द ही जाने वाली है । यही वजह है कि आर्मी चीफ अशफाक कियानी तालिबान को दायरे से आगे न बढ़ने के लिए धमका रहे है । यानि पानी अब सर से ऊपर निकल चुका है । मजहबी पाकिस्तान में लाल सलाम का प्रयोग नही चलेगा तो तालिबान ही सही । यानि निशाना लग चुका है ।
गाँधी के भारत में अन्तिम व्यक्ति तक पहुचने का संकल्प जोर शोर से शुरू हुआ लेकिन यह संकल्प आधे रास्ते चलते ही दम तोड़ गया । लैंड रेफोर्म की बड़ी बड़ी बातें करने वाले शीर्ष नेताओं ने बड़ी चालाकी से अन्तिम व्यक्ति को पीछे छोड़ दिया । ६० के दशक में जब नक्सल वारी से बन्दूक के जोर पर सत्ता पाने का प्रयोग माओवादियों ने कोलकत्ता से शुरू किया तो पहली बार सत्ता में बैठे लोगों को लगा की अन्तिम व्यक्ति की लड़ाई अभी बांकी है । पश्चिम बंगाल में भले ही इस आन्दोलन को दावा दिया गया लेकिन बिहार से लेकर झारखण्ड तक उड़ीसा से लेकर छतीसगढ़ तक ,देश के ९ राज्यों में नक्सालियों ने यह दिखाया है कि उनका आन्दोलन ख़तम नही हुआ है । पाकिस्तान में शरिया कोर्ट को तालिबान फौरी न्याय के लिए लोकप्रिय बना रहे है तो नक्सालियों ने कंगारू कोर्ट को लोकप्रिय बनाया । सरकार जहा लैंड रेफोर्म लागु नही कर सकी नक्सालियों उन जगहों पर जबरन जमीन का हक मजदूरों को दिलाने कि कोशिश की । जंगलों में आदिवासी के शोषण से उन्हें मुक्ति दिलाने की कोशिश की । नक्सल के कारन पहलीबार किसी आदिवासी को लगा यह धरती उनकी है और यह असमान भी उनका । लेकिन यह सब सिर्फ़ नक्सालियों का दिखाबा था । नक्सालियों का मकसद था लोगों में भरोसा पैदा कर उनका समर्थन हासिल करना । छतीसगढ़ के अबुझ्मेद के जंगल के लगभग ४००० सकुअर किलो मीटर को नक्सालियों ने लिबेरेतेद ज़ोन घोषित कर रखा है । यानि यहाँ सिर्फ़ उनकी हुकूमत चलती है । इन लिबेरेतेद ज़ोन में आम लोगों की कमोवेश वही हालत है जो तालिबान निजाम में लोगों का पाकिस्तान में है । नक्सालियों से बरामद हथियार और असलाह यह बताता है कि तालिबान और नक्सालियों में एक अदृश्य रिश्ता कायम है । फर्क यह है कि तालिबान का आधार मजहब है ,नक्सल मजहब को खारिज करता है । भारतीय समाज में मजहब की बुनियाद मध्यम बर्ग में मजबूत है लेकिन पाकिस्तान में मजहब की बुनियाद पिछडे समाज पर निर्भर है जो तालिबान का आधार है । भारत में नक्सल वहां मजबूत है जहा विकास कोसो दूर है लेकिन पाकिस्तान में तालिबान के लिए हर जगह हरियाली जमीन है ।
भारत में नक्सल को अबतक इसलिए परास्त नही किया जा सका है क्योंकि सरकारों की गंभीरता कम है राजनीती ज्यादा । केन्द्र सरकार की अपनी दलील है कि कानून व्यवस्था राज्य की है इसलिए नक्सल मेनास को ख़तम करने के लिए राज्य सरकार को पहल करनी होगी । सियासत इतनी कि आज सबसे ज्यादा पुलिस और अर्द्धसैनिक ,नक्सल प्रभावित राज्यों में मारे जा रहे है (कश्मीर से कई गुना ज्यादा ) लेकिन सरकारी पहल के मामले में खामोशी । भारत का शहरी इलाका आतंकवाद से प्रभावित है तो गाँव नक्सल से । शहरी समाज नक्सल की पीडा से वाकिफ नही और इसे मुद्दा नही मानता तो ग्रामीण समुदाय के सामने आतंकवाद कोई मसला नही है । यह आतंकवाद आज अपना निशाना फाइव स्टार होटलों और इलीट क्लबों को बना लिया है तो देश के सामने बड़ा खतरा बताया जाता है । लेकिन नक्सल के खतरे से आँख चुरायी जाती है ।लाख कोशिशों के वाबजूद इस चुनाव में आतंकवाद मुद्दा नही बन सका ।
भारतीय लोकतंत्र में सीधे अवाम से राबिता बनाकर सत्ता में ऐसे कई लोग पहुंचे है जिनका सरोकार गरीबी से रहा है । इसलिए इस देश में नक्सली बन्दूक के जोर पर कभी सत्ता में नही आ सकते है । सत्ता और सियासत का फार्मूला बने तालिबान पर पाकिस्तान अंकुश लगा पायेगा यह कहना मुश्किल है । लेकिन भारत में नक्सल को परास्त करने के लिए महज राजनितिक इच्छाशक्ति की जरूरी है । आज श्रीलंका ३० साल के एल टी टी ई आतंक को ख़तम कर सकता है तो क्या भारत तमाम आतंक की पौध को परस्त नही कर सकता ? लेकिन इसके लिए हमें राज्य से ऊपर देश को तरजीह देना होगा ,क्योंकि देश की मजबूत बुनियाद पर ही राज्यों का अस्तित्वा है ।


टिप्पणियाँ

आप की बात से सहमति है लेकिन केवल राजनैतिक इच्छा शक्ति से काम नहीं चलेगा। नंगे, भूखे लोग जिन के जंगल, खेत उन से छीने जा चुके हैं जो तालिबान या कथित माओवादियों की शरण में गए हैं उन को वास्तव में राहत पहुँचाने और उन्हें रोजगार के साधन मुहैया कराने की जरूरत है। तभी इन समस्याओं से मुकाबला किया जा सकता है। हमें देश में असमानता को तेजी से समाप्त करने की दिशा में बढ़ना होगा। वरना .......
मुनीश ( munish ) ने कहा…
Thanx for this indepth analysis Mishra ji . Hope u r keeping fine sir!

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