ममता दीदी ,माओवादी दादा और लालगढ़
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३० साल के वामपंथी शाशन की कामयाबी के रहस्यों से लालगढ़ ने परदा उठा दिया है । यानि लोगों ने बुद्धदेव सरकार के फ्रेंचैजे पॉलिसी को नकार दिया है । और इस फैसले में लोगों का साथ दिया है नक्सालियों ने । नरेगा में किस आदमी को काम मिलेगा ,किसको पैसे मिलेंगे किसे घर मिलेगा, किसे राशन कार्ड मिलेंगे किसे नही ये सरकारी कर्मचारी तय नही करते बल्कि ये फ़ैसला वाम दल के कार्यकर्त्ता लेते है । नदीग्राम से लेकर लालगढ़ तक लोगों के गुस्से को ममता ने हवा दी तो नक्सालियों ने ममता की झोली में वोट डाल कर अपने लिए दूसरा लिबेरेतेद जोने बना लिया । यह सियासी लेन देन का सौदा है ।
नाक्साल्वादी में अपनी हार से उपेक्षित मओवादिओं को ३० साल बाद बंगाल में अपना आधार मजबूत करने का मौका मिला है । माओवादी की विचारधारा आज भी वही है जो ३० साल पहले कनु सान्याल और चारू मजुमदार ने दिया था । लेकिन वाम दल भले ही ऑफिस में लेनिन और माओ की तस्वीर लगाते हों लेकिन व्यवहार में उनका रबैया किसी सामंती से कम नही है । सत्ता और सरकार पाने और बनाये रखने के लिए वामपंथी सरकार ने बंगाल से लेकर केरल तक जो हथकंडे अपनाए वही प्रयोग आज दूसरी जमात भी दुहरा रही है ।
देश के ७ राज्यों के १८० जिलो में आज नक्सालियों का दबदबा है । आदवासी इलाके के हजारो किलो मीटर इलाके में नक्सालियों का कब्जा है, या यु कहे की उनकी सामानांतर सरकार है । पशुपति से लेकर तिरुपति तक रेड कोरिडोर बनाने में नक्सालियों को अब कुछ ही इलाके में परेशानिओं का सामना करना पड़ सकता है । आन्ध्र से नाक्साली खदेडे गए तो उन्होंने छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में अपना आधार मजबूत कर लिया । झारखण्ड में वे जहाँ चाहे जब चाहे हमला कर सकते है और सरकार पर अपना प्रभाव छोड़ सकते है । हार्डकोर नाक्साली कामेश्वर बैठा आज झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की टिकेट पर संसद पहुच सकता है तो आने वाले असेम्बली चुनाव की परिकल्पना की जा सकती है ।
३२ साल पहले नाक्साली सामंती विरोध का नारा देकर अपने लिए सत्ता पाने का आसन तरीका खोजा था । बन्दूक से सत्ता पाने का यह तरीका लोगों ने पसंद नही किया और नाक्साली आन्दोलन की भ्रूण हत्या हो गई । लेकिन इस दौर में भ्रस्टाचार ,सरकारों की ऑर से आम आदमी की लगातार उपेक्षा ने नक्सालियों को फिनिक्स बना दिया है । जंगल से आदिवासी खदेडे गए ,सुविधा से लोगों को बंचित किया गया । जनकल्याण के करोड़ों अरबो रूपये सरकारी बाबू से लेकर नेता तक डकारते रहे और पिछडे इलाके के लोग भूख से तड़पते रहे । बिहार से लेकर झारखण्ड तक पश्चिम बंगाल से लेकर छत्तीसगढ़ तक आंध्र से लेकर उड़ीसा तक लूट और भ्रष्टाचार ने नक्सालियों को दुबारा सियासी जमीन दिलाया । नेताओं और भ्रष्ट सरकारी अधिकारीयों ने नक्सालियों को खुला ऑफर दिया और नाक्साली इस खुले ऑफर को गले लगाया ।
मौजूदा सरकार अब बन्दूक का जवाब बन्दूक से देने का मन बनाया है । लेकिन दिक्कत यह है कि हर राज्य सरकार को केन्द्र की बन्दूक चाहिए ,उनके पास या तो बन्दूक नही है या फ़िर उसमें जंग लगी हुई है । पिछले वर्षों में पुलिस आधुनिकीकरण के नाम पर राज्य सरकारों को करोडो रूपये मिले लेकिन अधिकतर राज्यों में बन्दूक और असलहे फाइलों में ही निबट गई ,पुलिस लाल सेना के हाथों पिटतीरही । एक बार मैंने एक आला पुलिस अधिकारी से पूछा था कि उनके तथाकथित मुठभेड़ में सिर्फ़ पुलिस बल मारे जाते है तो इसे मुठभेड़ कहने के बजाय आत्महत्या क्यों नही कहा जा रहा है । केन्द्र सरकार नाक्सालियो के खिलाफ मुठभेड़ करने पर आमादा है लेकिन यह वाकई मे मुठभेड़ होगा ? यह सब कुछ राजनितिक इछ्शक्ति पर निर्भर करता है ।
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