राहुल राज और राहुल गाँधी की मुंबई यात्रा में इतना फर्क क्यों ?
राहुल गाँधी की हालिया मुंबई यात्रा मीडिया की सुर्ख़ियों में छाई रही .ठीक उसी दिन देश में बेलगाम महगाई को लेकर कांग्रेस कमिटी की हंगामेदार बैठक हो रही थी .ऐसी दर्जनों खबरे जिनका सरोकार आम आदमी से था ,खबरों की चर्चा से नदारद थी . सिर्फ राहुल गाँधी और उनकी मुंबई यात्रा .मानो राहुल गाँधी पुर्तगालियों की चंगुल से मुंबई को आज़ाद करने निकले हो. राहुल गाँधी ट्रेन में ,राहुल गाँधी स्कूल में ,राहुल गाँधी ट्रेफिक में ......यानि जय हो राहुल गाँधी ! किसिने कहा शिव सेना के गढ़ में सेंध ,किसिने कहा किला फतह ,किसिने कहा बुढ़ा शेर पस्त और कांग्रेस का युवराज मस्त !दिन भर का मिडिया प्रायोजित यह यात्रा समाप्त हुई लेकिन अपने साथ ढेरों सवाल छोड़ गयी . कांग्रेस के मिडिया मेनेजर कहते है कि इस यात्रा का उद्देश्य आम आदमी में भरोसा बढ़ाने से था ,एक मेनेजर ने कहा कि इस यात्रा ने शिव सेना के घमंड को चकना चूर कर दिया है .मुंबई सबके लिए है यही बात राहुल गांधी यहाँ बताने आये थे .अँधेरी के लोकल ट्रेन की यात्रा हो या मुंबई के दुसरी जगहों की यात्रा खुद इसकी सुरक्षा की कमान मुख्या मंत्री संभाले हुए थे .राहुल के चप्पल उठाने के लिए खुद गृह राज्य मंत्री तैयार खड़े थे .सुरक्षा घेरा ऐसा कि परिदा भी पर नहीं मार सके . लेकिन कहा गया कि राहुल गाँधी ने बेखौफ लोगों से मिलकर उनकी हौसलाफजाई की. कुछ महीने पहले इसी जज्वात से बिहार का एक नौजवान राहुल राज ने मुंबई की यात्रा की थी ताकि यह दुनिया को यह बता सके कि मुंबई सबका है .लेकिन वह मारा गया था .शायद आप राहुल राज को भूल गए होंगे ?
क्या राहुल राज पागल था , या फिर बिहार की स्मिता के लिए राहुल राज शहीद हो गया था ? बिहार का एक भावुक नौजवान वह सब कर गया, जो सत्ता में बैठे हुए लोगों को बहुत पहले ही करना चाहिए था . शारुख खान और मुकेश अम्बानी को मिले शिव सैनिकों की धमकी को राहुल गांधी ने चुनौती के तौर पर लिया लेकिन बिहारी के मामले मे कांग्रेस पूरी तरह से खामोश रही .राहुल राज की निर्मम हत्या के ठीक दूसरे दिन एक दूसरे एनकाउंटर में उसी महाराष्ट्र में पब्लिक के एनकाउंटर में गोरखपुर का एक मजदूर मारा गया था । धर्मदेव राय मजदूरी करके वापस लौट रहा था कुछ तथाकथित मराठी मानुस ने उसकी जान ले ली ।
मुंबई पुलिस का दावा था कि पटना से आया राहुल राज ने एक बस को हैजक कर लिया था और वह राज ठाकरे को मारने आया था । राज्य के गृह मंत्री पुलिसिया बयां को सही बता रहे थे ..शिव सेना ने बिहारी अंदाज में उसे मार गिराने के लिए मुंबई पुलिस को बधाई दी थी ..और केन्द्र की सरकार ने महाराष्ट्र की सरकार से रिपोर्ट मांगने की बात करके इस पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ ली । राहुल राज के लिए बिहार कोई खास वर्ग और जाती नहीं था बल्कि उसके सामने बिहार एक अस्मिता का सवाल था । काम की तलाश में मुंबई आए लोग उसके नाते रिश्तेदार नहीं थे बल्कि वे उसके गौराब्शाली बिहार का एक हिस्सा थे । राहुल राज मारा गया ,धर्म देव राय मारे गए ,पूर्वांचल के हजारों लोग रात दिन राज ठाकरे की सेना के हाथों जलील होते रहे ,लेकिन तब न तो राहुल गाँधी की नींद खुली न ही उनकी महाराष्ट्र सरकार ने कभी राज ठाकरे और उनके गुंडों पर कोई करवाई की .वजह लालू यादव के शब्दों मे " राज ठाकरे कांग्रेस की नाजायज औलाद है '. कांग्रेस का यह प्रयोग सफल रहा और शिव सेना महाराष्ट्र के चुनाव में तीसरे नंबर पर रही .यानि जो कांग्रेस सत्ता तो दूर महाराष्ट्र में कुछ सीट बचाने की हालत में नहीं थी .वह दुबारा सत्ता पागयी .सत्ता का यह खेल कांग्रेस ने पंजाब से लेकर नोर्थ इस्ट तक आजमाया है .इसका नुकसान भले ही इस देश को लम्बे दौर तक झेलना पड़ा हो लेकिन सत्ता में बने रहने की यह कांग्रेस की पूरानी रिवायत रही है .दिल्ली के बाटला हाउस इन्कोन्टर का मामला लोगों के सामने है .जिसे आज भी कांग्रेस के मेनेजर फर्जी इन्कोउन्टर बता रहे है . लेकिन राहुल राज का फर्जी इन्कोउन्टर कांग्रेस के लिए कोई मामला नहीं होता है .
शायद इसलिए की कांग्रेस देश की बांटों और राज करो की सियासत अंग्रेजों से सीखी है और उसका अनुपालन भी कर रही है । कांग्रेस के मीडिया मेनेजर राहुल गाँधी को भारत भ्रमण करा रहे है .नेहरु जी के बाद राहुल पहले कांग्रेसी है जो भारत की खोज पर निकले है वे आईडिया ऑफ़ इंडिया की तलाश कर रहे है .इसलिए उनकी बिहार यात्रा महिला कॉलेज में करायी जाती है .जहाँ लडकिय उनसे कोई पर्सनल सवाल नहीं पूछ सकती थी ,लेकिन हर के सवाल में देश की समस्या की चिंता कम राहुल का फिक्र ज्यादा था .राहुल जी की यात्रा एयर पोर्ट से लेकर महिला कॉलेज तक ख़तम हो जाती है लेकिन इस यात्रा में वो सारे गाँव पीछे छूट जाते है जो इसी भारत का हिस्सा है .शायद राहुल गाँधी की भारत की खोज मे समस्या दिखाने की मनाही है .ये अलग बात है कि राहुल जी सुरक्षा घेरा तोड़कर कभी कभी दलितों के घर जरूर पहुच जाते है .
आज जो कुछ मुंबई में हो रहा है ,या फिर हैदराबाद को लेकर आँध्रप्रदेश मे आन्दोलन तेज है .कल वह बेंगलूरू में भी हो सकता है परसों मद्रास में भी हो सकता है । केन्द्र की मेहेर्वानी के कारण आज उत्तर- दक्षिण का आर्थिक संतुलन पूरी तरह से बिगड़ चुका है , सेज और दूसरी किन्द्रीय योजनाओं के कारण देश का दक्षिणी राज्य समृधि होते गए जबकि उत्तर के राज्यों की आर्थिक गतिबिधि सिकुड़ती गई । ज्यादा दिन दूर नही की दक्षिण से एक अलग मुल्क बनाने की मांग बढेगी ॥देश के दस फीसद आवादी वाला राज्य बिहार की प्रति व्यक्ति आय आज भी देश के ११ हजार के मुकाबले महज ४००० रूपये है ,देश में जहां गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या २६ फीसद है वहीँ बिहार में यह तादाद ४२ प्रतिशत है । देश में साक्षरों के तादाद ६५ फीसद है वही बिहार में यह तादाद ४७ फीसद है । देश में जहां प्राईमरी क्लास मे नामांकन लेने वाले की तादाद ८४ फीसद है वही बिहार में यह तादाद ६० फीसद है । इन आंकडों से बिहार की हालत को बेहतर समझा जा सकता है ।ये अलग बात है कि इस दौर मे आर्थिक प्रगति का नया ग्राफ दिखाया जा रहा है .लेकिन यह तथाकथित ११ फिसद का जी दी पी तब तक कायम है जब तक बिहार में मोनेयोर्देर इकोनोमी का श्रोत कायम है . लेकिन मजदूरों का पलायन जहाँ आज भी सबसे बड़ा चिंता का विषय है क्या उस राज्य की तरक्की का गुणगान किया जा सकता है ? जाहिर है काम की तलाश में रोजी रोटी की जुगाड़ में बिहारिओं को घर से पलायन नियति बन गई है । लेकिन इसके लिए बिहारियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है ।पंजाब में आज मजदूर नहीं मिल रहे है तो वहां की हुकूमत बिहार सरकार से लोगों यहाँ भेजने की अपील करती है , रेल मंत्रालय को स्पेशल ट्रेन चलाने की मांग करती हैं । वजह साफ है की अगर आज बिहार में मजदूरों को काम मिल रहें हैं तो वह दो पैसे कम में अपने घर में ही गुजारा करना चाहता है । बिहार से हर साल लाखों की संख्या में स्टुडेंट इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई के लिए महाराष्ट्र और दक्षिण के राज्यों में जाते है और वहां के शिक्षा माफिया को मालामाल कर रहे है , लेकिन इन छात्रों से वहां के नेताओं को कोई परेशानी नहीं है क्यों कि ये उनके लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है , लेकिन मजदूरों से उन्हें परहेज है । लेकिन पुणे के अंगूर उद्योग मे लगे बिहारी मजदूरों से शिव सेना को कोई परेशानी नहीं है ,क्योंकि वह सारा कारोबार बिहारी मजदूरों के बगैर बंद हो सकता है .कभी बंगाली सियासतदानो ने भी बिहारी भगाओ अभियान के तहत बंगाल के ताममं उद्योग पर ताले जर दिए .नतीजा आपके सामने है .उद्योग के लिए चर्चित कोलकत्ता आज एक छोटे उद्योग के लिए तरस रहा है .
बिहार के भूमि पुत्र जिनके पास १० से पन्द्रह एकड़ जमीन है वे शहरों में २००० से ३००० रूपये की नौकरी के लिए जिल्लत की जिंदगी जी रहे है , इसके लिए कौन कसूरवार हो सकता है ? यह सब इस लिए हो रहा है क्योंकि बिहार में आजतक कोई भी चुनाव विकास के मुद्दे पर नही लड़ा गया . जाती ,धर्म में बटा समाज इन जिल्लत भरी जिंदगी के वाबजूद विकास को तरजीह देना नही चाहता
शायद .अगली बार राहुल गाँधी अपनी भारत की खोज यात्रा में बिहार के इन पिछड़े इलाके की यात्रा करेंगे ....उनके खानदान को बिहार के लोगों ने ४० साल तक सिर्फ दिया है लेकिन लिया कुछ भी नहीं है .बिहार के लोग सियासत के अलावा कुछ भी लेने को तैयार है .
क्या राहुल राज पागल था , या फिर बिहार की स्मिता के लिए राहुल राज शहीद हो गया था ? बिहार का एक भावुक नौजवान वह सब कर गया, जो सत्ता में बैठे हुए लोगों को बहुत पहले ही करना चाहिए था . शारुख खान और मुकेश अम्बानी को मिले शिव सैनिकों की धमकी को राहुल गांधी ने चुनौती के तौर पर लिया लेकिन बिहारी के मामले मे कांग्रेस पूरी तरह से खामोश रही .राहुल राज की निर्मम हत्या के ठीक दूसरे दिन एक दूसरे एनकाउंटर में उसी महाराष्ट्र में पब्लिक के एनकाउंटर में गोरखपुर का एक मजदूर मारा गया था । धर्मदेव राय मजदूरी करके वापस लौट रहा था कुछ तथाकथित मराठी मानुस ने उसकी जान ले ली ।
मुंबई पुलिस का दावा था कि पटना से आया राहुल राज ने एक बस को हैजक कर लिया था और वह राज ठाकरे को मारने आया था । राज्य के गृह मंत्री पुलिसिया बयां को सही बता रहे थे ..शिव सेना ने बिहारी अंदाज में उसे मार गिराने के लिए मुंबई पुलिस को बधाई दी थी ..और केन्द्र की सरकार ने महाराष्ट्र की सरकार से रिपोर्ट मांगने की बात करके इस पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ ली । राहुल राज के लिए बिहार कोई खास वर्ग और जाती नहीं था बल्कि उसके सामने बिहार एक अस्मिता का सवाल था । काम की तलाश में मुंबई आए लोग उसके नाते रिश्तेदार नहीं थे बल्कि वे उसके गौराब्शाली बिहार का एक हिस्सा थे । राहुल राज मारा गया ,धर्म देव राय मारे गए ,पूर्वांचल के हजारों लोग रात दिन राज ठाकरे की सेना के हाथों जलील होते रहे ,लेकिन तब न तो राहुल गाँधी की नींद खुली न ही उनकी महाराष्ट्र सरकार ने कभी राज ठाकरे और उनके गुंडों पर कोई करवाई की .वजह लालू यादव के शब्दों मे " राज ठाकरे कांग्रेस की नाजायज औलाद है '. कांग्रेस का यह प्रयोग सफल रहा और शिव सेना महाराष्ट्र के चुनाव में तीसरे नंबर पर रही .यानि जो कांग्रेस सत्ता तो दूर महाराष्ट्र में कुछ सीट बचाने की हालत में नहीं थी .वह दुबारा सत्ता पागयी .सत्ता का यह खेल कांग्रेस ने पंजाब से लेकर नोर्थ इस्ट तक आजमाया है .इसका नुकसान भले ही इस देश को लम्बे दौर तक झेलना पड़ा हो लेकिन सत्ता में बने रहने की यह कांग्रेस की पूरानी रिवायत रही है .दिल्ली के बाटला हाउस इन्कोन्टर का मामला लोगों के सामने है .जिसे आज भी कांग्रेस के मेनेजर फर्जी इन्कोउन्टर बता रहे है . लेकिन राहुल राज का फर्जी इन्कोउन्टर कांग्रेस के लिए कोई मामला नहीं होता है .
शायद इसलिए की कांग्रेस देश की बांटों और राज करो की सियासत अंग्रेजों से सीखी है और उसका अनुपालन भी कर रही है । कांग्रेस के मीडिया मेनेजर राहुल गाँधी को भारत भ्रमण करा रहे है .नेहरु जी के बाद राहुल पहले कांग्रेसी है जो भारत की खोज पर निकले है वे आईडिया ऑफ़ इंडिया की तलाश कर रहे है .इसलिए उनकी बिहार यात्रा महिला कॉलेज में करायी जाती है .जहाँ लडकिय उनसे कोई पर्सनल सवाल नहीं पूछ सकती थी ,लेकिन हर के सवाल में देश की समस्या की चिंता कम राहुल का फिक्र ज्यादा था .राहुल जी की यात्रा एयर पोर्ट से लेकर महिला कॉलेज तक ख़तम हो जाती है लेकिन इस यात्रा में वो सारे गाँव पीछे छूट जाते है जो इसी भारत का हिस्सा है .शायद राहुल गाँधी की भारत की खोज मे समस्या दिखाने की मनाही है .ये अलग बात है कि राहुल जी सुरक्षा घेरा तोड़कर कभी कभी दलितों के घर जरूर पहुच जाते है .
आज जो कुछ मुंबई में हो रहा है ,या फिर हैदराबाद को लेकर आँध्रप्रदेश मे आन्दोलन तेज है .कल वह बेंगलूरू में भी हो सकता है परसों मद्रास में भी हो सकता है । केन्द्र की मेहेर्वानी के कारण आज उत्तर- दक्षिण का आर्थिक संतुलन पूरी तरह से बिगड़ चुका है , सेज और दूसरी किन्द्रीय योजनाओं के कारण देश का दक्षिणी राज्य समृधि होते गए जबकि उत्तर के राज्यों की आर्थिक गतिबिधि सिकुड़ती गई । ज्यादा दिन दूर नही की दक्षिण से एक अलग मुल्क बनाने की मांग बढेगी ॥देश के दस फीसद आवादी वाला राज्य बिहार की प्रति व्यक्ति आय आज भी देश के ११ हजार के मुकाबले महज ४००० रूपये है ,देश में जहां गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या २६ फीसद है वहीँ बिहार में यह तादाद ४२ प्रतिशत है । देश में साक्षरों के तादाद ६५ फीसद है वही बिहार में यह तादाद ४७ फीसद है । देश में जहां प्राईमरी क्लास मे नामांकन लेने वाले की तादाद ८४ फीसद है वही बिहार में यह तादाद ६० फीसद है । इन आंकडों से बिहार की हालत को बेहतर समझा जा सकता है ।ये अलग बात है कि इस दौर मे आर्थिक प्रगति का नया ग्राफ दिखाया जा रहा है .लेकिन यह तथाकथित ११ फिसद का जी दी पी तब तक कायम है जब तक बिहार में मोनेयोर्देर इकोनोमी का श्रोत कायम है . लेकिन मजदूरों का पलायन जहाँ आज भी सबसे बड़ा चिंता का विषय है क्या उस राज्य की तरक्की का गुणगान किया जा सकता है ? जाहिर है काम की तलाश में रोजी रोटी की जुगाड़ में बिहारिओं को घर से पलायन नियति बन गई है । लेकिन इसके लिए बिहारियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है ।पंजाब में आज मजदूर नहीं मिल रहे है तो वहां की हुकूमत बिहार सरकार से लोगों यहाँ भेजने की अपील करती है , रेल मंत्रालय को स्पेशल ट्रेन चलाने की मांग करती हैं । वजह साफ है की अगर आज बिहार में मजदूरों को काम मिल रहें हैं तो वह दो पैसे कम में अपने घर में ही गुजारा करना चाहता है । बिहार से हर साल लाखों की संख्या में स्टुडेंट इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई के लिए महाराष्ट्र और दक्षिण के राज्यों में जाते है और वहां के शिक्षा माफिया को मालामाल कर रहे है , लेकिन इन छात्रों से वहां के नेताओं को कोई परेशानी नहीं है क्यों कि ये उनके लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है , लेकिन मजदूरों से उन्हें परहेज है । लेकिन पुणे के अंगूर उद्योग मे लगे बिहारी मजदूरों से शिव सेना को कोई परेशानी नहीं है ,क्योंकि वह सारा कारोबार बिहारी मजदूरों के बगैर बंद हो सकता है .कभी बंगाली सियासतदानो ने भी बिहारी भगाओ अभियान के तहत बंगाल के ताममं उद्योग पर ताले जर दिए .नतीजा आपके सामने है .उद्योग के लिए चर्चित कोलकत्ता आज एक छोटे उद्योग के लिए तरस रहा है .
बिहार के भूमि पुत्र जिनके पास १० से पन्द्रह एकड़ जमीन है वे शहरों में २००० से ३००० रूपये की नौकरी के लिए जिल्लत की जिंदगी जी रहे है , इसके लिए कौन कसूरवार हो सकता है ? यह सब इस लिए हो रहा है क्योंकि बिहार में आजतक कोई भी चुनाव विकास के मुद्दे पर नही लड़ा गया . जाती ,धर्म में बटा समाज इन जिल्लत भरी जिंदगी के वाबजूद विकास को तरजीह देना नही चाहता
शायद .अगली बार राहुल गाँधी अपनी भारत की खोज यात्रा में बिहार के इन पिछड़े इलाके की यात्रा करेंगे ....उनके खानदान को बिहार के लोगों ने ४० साल तक सिर्फ दिया है लेकिन लिया कुछ भी नहीं है .बिहार के लोग सियासत के अलावा कुछ भी लेने को तैयार है .
टिप्पणियाँ
dukhti rug per hath rakha hai apne....
rahul ghandi srif natak ker rehe hai
abhi tak kagresh chup ky hai