कौन चाहता है कश्मीर मसले का हल ?
कौन चाहता है कश्मीर मसले का हल ? ये सवाल सुनने मे भले ही हल्का लगे ,लेकिन इसका जवाब उतना ही जटिल है . १९४८ से लेकर आजतक कश्मीर मसले को लेकर भारत पाकिस्तान के बीच सैकड़ो मर्तबा बातचीत हो चुकी है लेकिन मामला जस का तस है . सबसे अहम् बात यह है कि इस मसले मे ६० साल पहले भी कश्मीर के लोगों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी ,और आज भी उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है .फिर भी कश्मीर को एक बड़ा मसला बताया जा रहा है .
जाहिर है आखिर वे कौन लोग है जो इसे मसला मान रहे है . बात साफ़ है जिनका इस मसले से निजी या सियासी फ़ायदा है उन्होंने हर दौर मे इस मसले को जिदा रखने की कोशिश कि है और वे काफी हद तक कामयाब हुए है . कश्मीर के सबसे बड़े अलगाववादी नेता सैद अली शाह गिलानी से मैंने यही सवाल पूछा था ,उनका जवाब था क्या कश्मीर की हालत ७० के दशक मे ऐसी थी . गिलानी साहब खुद दो बार अस्सेम्ब्ली का चुनाव जीत कर आवाम की नुमैन्दगी कि है . कश्मीर के सबसे बड़े आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के सरबरा सैद शलाहुद्दीन ने खुद अस्सेम्ब्ली चुनाव मे अपना सिक्का आजमाया था . शलाहुद्दीन को जितने नहीं दिया गया तो वह पाकिस्तान के पास चला गया . पाकिस्तान ने नेता बनने के लिए उसे बन्दूक का रास्ता दिखा दिया . हमें याद रखना चाहिए कि ये वही कश्मीर के लोग थे जिन्होंने १९४८ मे पाकिस्तान के गुरिल्ला फौज को खदेड़ने मे भारतीय फौज के साथ कंधे से कन्धा मिलकर जंग जीती थी . हजारों लोगों ने पाकिस्तान के इस आक्रमण मे अपनी कुरबानिया दी थी . लेकिन ऐसा क्या हुआ कि बाद के दौर मे कुछ नौजवानों की टोली जीवे जीवे पाकिस्तान का नारा लगाने लगे ? सैकड़ो नौजवान सरहद पार करके पाकिस्तान चले गए और आतंक का चोगा पहनकर कत्लोगारद का एक नया दौर शुरू किया . आखिर कौन थे ये लोग और क्यों उन्होंने बन्दूक उठाई ये भी एक बड़ा सवाल है .
कश्मीर मामले को लेकर पाकिस्तान की सियासत ने भी सत्ता पर कविज रहने का एक फ़ॉर्मूला बनाया . जिन्ना से लेकर भुट्टो तक जेनरल जिया से लेकर मुशर्रफ़ तक कश्मीर उनके सियासी अजेंडे मे सबसे ऊपर था . कश्मीर मसले को लेकर पाकिस्तान ने तीन जंगे लड़ी हर बार वह पराजित हुए ,लेकिन राजनयिक तौर पर पाकिस्तान का पलड़ा १९४८ से लेकर आजतक हर जंग के बाद भारी रहा . चाहे वह मामला १९४८ मे जंग बंदी का हो या बार बार पाकिस्तान को अभयदान देने की ,हर बार भारत ने खुले हाथों से पकिस्तान को दिया लेकिन बदले मे कुछ नहीं माँगा .
बार बार जंग मे शिकस्त खाने के बाद जनरल जिया ने ब्लीडिंग इंडिया बाय थौसंड्स कट्स की निति बंनायी,जो कमोवेश आजभी जारी है . पाकिस्तान की फौज का एक विंग आई एस आई ने मुल्ला -मिलिट्री का गठजोड़ बनाकर लश्करे तोइबा ,जैसे मोहम्मद ,हरकत ,अल बद्र जैसे दर्जनों आतंकवादी संगठन खड़ा किया .कहते है कि पकिस्तान की सियासत में बस तीन नाम ही चलते है - अल्लाह ,आर्मी और अमेरिका . अल्लाह के नाम पर मुल्लाओं ने मदरसों के भोले भाले तालिब को जेहादी बना दिया . आर्मी ने इस दहशत गर्द सियाशत की कमान अपने हाथों मे लेकर पाकिस्तान की सियासी समाजी जिन्दगी को अपने कब्जे मे ले लिया . अमेरिका पाकिस्तान के लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बनी . कल सोवियत रूस के खिलाफ जेहाद लड़ने के लिए पकिस्तान ने अमेरिका से अरबों डॉलर बटोरे आज उसी अफगानिस्तान और तालिबान के नाम अरबों डालर वसूल रहा है . पैसे के इस खेल मे पाकिस्तान के मुल्ला से लेकर मिलिट्री तक मालामाल हुए लेकिन अवाम कल भी गरीब था और आज भी गरीब है . अमेरिका से लूट मे मिले इस पैसे का पाकिस्तान ने भारत मे हिंसा फैलाने के लिए किया . पाकिस्तान की पैरवी करने वाले कश्मीरी अलगाववादी लीडरों पर मानो धन वर्षा हुई . कल तक गाँव मे रहने वाले इन लीडरों ने श्रीनगर मे आलिशान महल बनाया .इनके बच्चो ने उची तालीम ली . कई के बच्चे सरकारी मह्कामे मे ऊँचे दर्जे के पद पर है .लेकिन उनके घर मे कोई आतंकवाद की पैरवी कर रहा या पाकिस्तान का इससे सरकार को क्या फर्क पड़ता है ?
पिछले वर्षों मे कश्मीर मे विकास के नाम पर पुनर्वास के नाम भारत सरकार की ओर से अरबो नहीं खरबों के पकेज मिले है .लेकिन इन पैसों की हकीकत कश्मीर जा कर ही पता चलता है कि इन पैसों का इस्तेमाल कहाँ हुआ ?यानी हर जगह पैसा ,पैसा नहीं तो सियाशत नहीं .यह पैसे का ही खेल है कि महबूबा जब सत्ता मे होती है तो उनका नजरिया कुछ और होता है लेकिन सत्ता से बाहर होते ही उनका सुर बदल जाता है . पैसे के खेल ने यहाँ हर महकमे को प्रभावित किया है .सरकारी या मिलिट्री पोस्टिंग कश्मीर मे आकर्षण से भरी है जाहिर है देश सेवा के अलावा भी कई आकर्षण है . मैंने सैयद अली शाह गिलानी से एक बार पूछा था कि आप बात चित के लिए तैयार क्यों नहीं होते है . उनका जवाब था जिन्होंने ने भारत सरकार से बात की है उन्होंने क्या हासिल किया है . उनका मानना है कि कांग्रेस की सरकार कभी भी बात चित के मामले को लेकर गंभीर नहीं रही है . एक दौर ऐसा भी था जब गिलानी को पाकिस्तान ने दूध की मक्खी की तरह बाहर निकाल फेंका था . तब भी उनसे बात चित की कोई कोशिश नहीं हुई .
कश्मीर मे एक बड़े ओहदे से सेवा निवृत अधिकारी से मैंने पूछा था आखिर इस मसले का क्या हल है ,उनका जवाब था कश्मीर मसले का हल कोई नहीं चाहता है ,न ही भारत न ही पाकिस्तान . न ही वहा की फौज न ही यहाँ की फौज . न ही यहाँ के अधिकारी न ही वहा के अधिकारी . कश्मीर मसले का हल सिर्फ वो माँ चाहती है जिसका बच्चा इस शाजिस का शिकार हुआ है .
जाहिर है आखिर वे कौन लोग है जो इसे मसला मान रहे है . बात साफ़ है जिनका इस मसले से निजी या सियासी फ़ायदा है उन्होंने हर दौर मे इस मसले को जिदा रखने की कोशिश कि है और वे काफी हद तक कामयाब हुए है . कश्मीर के सबसे बड़े अलगाववादी नेता सैद अली शाह गिलानी से मैंने यही सवाल पूछा था ,उनका जवाब था क्या कश्मीर की हालत ७० के दशक मे ऐसी थी . गिलानी साहब खुद दो बार अस्सेम्ब्ली का चुनाव जीत कर आवाम की नुमैन्दगी कि है . कश्मीर के सबसे बड़े आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के सरबरा सैद शलाहुद्दीन ने खुद अस्सेम्ब्ली चुनाव मे अपना सिक्का आजमाया था . शलाहुद्दीन को जितने नहीं दिया गया तो वह पाकिस्तान के पास चला गया . पाकिस्तान ने नेता बनने के लिए उसे बन्दूक का रास्ता दिखा दिया . हमें याद रखना चाहिए कि ये वही कश्मीर के लोग थे जिन्होंने १९४८ मे पाकिस्तान के गुरिल्ला फौज को खदेड़ने मे भारतीय फौज के साथ कंधे से कन्धा मिलकर जंग जीती थी . हजारों लोगों ने पाकिस्तान के इस आक्रमण मे अपनी कुरबानिया दी थी . लेकिन ऐसा क्या हुआ कि बाद के दौर मे कुछ नौजवानों की टोली जीवे जीवे पाकिस्तान का नारा लगाने लगे ? सैकड़ो नौजवान सरहद पार करके पाकिस्तान चले गए और आतंक का चोगा पहनकर कत्लोगारद का एक नया दौर शुरू किया . आखिर कौन थे ये लोग और क्यों उन्होंने बन्दूक उठाई ये भी एक बड़ा सवाल है .
कश्मीर मामले को लेकर पाकिस्तान की सियासत ने भी सत्ता पर कविज रहने का एक फ़ॉर्मूला बनाया . जिन्ना से लेकर भुट्टो तक जेनरल जिया से लेकर मुशर्रफ़ तक कश्मीर उनके सियासी अजेंडे मे सबसे ऊपर था . कश्मीर मसले को लेकर पाकिस्तान ने तीन जंगे लड़ी हर बार वह पराजित हुए ,लेकिन राजनयिक तौर पर पाकिस्तान का पलड़ा १९४८ से लेकर आजतक हर जंग के बाद भारी रहा . चाहे वह मामला १९४८ मे जंग बंदी का हो या बार बार पाकिस्तान को अभयदान देने की ,हर बार भारत ने खुले हाथों से पकिस्तान को दिया लेकिन बदले मे कुछ नहीं माँगा .
बार बार जंग मे शिकस्त खाने के बाद जनरल जिया ने ब्लीडिंग इंडिया बाय थौसंड्स कट्स की निति बंनायी,जो कमोवेश आजभी जारी है . पाकिस्तान की फौज का एक विंग आई एस आई ने मुल्ला -मिलिट्री का गठजोड़ बनाकर लश्करे तोइबा ,जैसे मोहम्मद ,हरकत ,अल बद्र जैसे दर्जनों आतंकवादी संगठन खड़ा किया .कहते है कि पकिस्तान की सियासत में बस तीन नाम ही चलते है - अल्लाह ,आर्मी और अमेरिका . अल्लाह के नाम पर मुल्लाओं ने मदरसों के भोले भाले तालिब को जेहादी बना दिया . आर्मी ने इस दहशत गर्द सियाशत की कमान अपने हाथों मे लेकर पाकिस्तान की सियासी समाजी जिन्दगी को अपने कब्जे मे ले लिया . अमेरिका पाकिस्तान के लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बनी . कल सोवियत रूस के खिलाफ जेहाद लड़ने के लिए पकिस्तान ने अमेरिका से अरबों डॉलर बटोरे आज उसी अफगानिस्तान और तालिबान के नाम अरबों डालर वसूल रहा है . पैसे के इस खेल मे पाकिस्तान के मुल्ला से लेकर मिलिट्री तक मालामाल हुए लेकिन अवाम कल भी गरीब था और आज भी गरीब है . अमेरिका से लूट मे मिले इस पैसे का पाकिस्तान ने भारत मे हिंसा फैलाने के लिए किया . पाकिस्तान की पैरवी करने वाले कश्मीरी अलगाववादी लीडरों पर मानो धन वर्षा हुई . कल तक गाँव मे रहने वाले इन लीडरों ने श्रीनगर मे आलिशान महल बनाया .इनके बच्चो ने उची तालीम ली . कई के बच्चे सरकारी मह्कामे मे ऊँचे दर्जे के पद पर है .लेकिन उनके घर मे कोई आतंकवाद की पैरवी कर रहा या पाकिस्तान का इससे सरकार को क्या फर्क पड़ता है ?
पिछले वर्षों मे कश्मीर मे विकास के नाम पर पुनर्वास के नाम भारत सरकार की ओर से अरबो नहीं खरबों के पकेज मिले है .लेकिन इन पैसों की हकीकत कश्मीर जा कर ही पता चलता है कि इन पैसों का इस्तेमाल कहाँ हुआ ?यानी हर जगह पैसा ,पैसा नहीं तो सियाशत नहीं .यह पैसे का ही खेल है कि महबूबा जब सत्ता मे होती है तो उनका नजरिया कुछ और होता है लेकिन सत्ता से बाहर होते ही उनका सुर बदल जाता है . पैसे के खेल ने यहाँ हर महकमे को प्रभावित किया है .सरकारी या मिलिट्री पोस्टिंग कश्मीर मे आकर्षण से भरी है जाहिर है देश सेवा के अलावा भी कई आकर्षण है . मैंने सैयद अली शाह गिलानी से एक बार पूछा था कि आप बात चित के लिए तैयार क्यों नहीं होते है . उनका जवाब था जिन्होंने ने भारत सरकार से बात की है उन्होंने क्या हासिल किया है . उनका मानना है कि कांग्रेस की सरकार कभी भी बात चित के मामले को लेकर गंभीर नहीं रही है . एक दौर ऐसा भी था जब गिलानी को पाकिस्तान ने दूध की मक्खी की तरह बाहर निकाल फेंका था . तब भी उनसे बात चित की कोई कोशिश नहीं हुई .
कश्मीर मे एक बड़े ओहदे से सेवा निवृत अधिकारी से मैंने पूछा था आखिर इस मसले का क्या हल है ,उनका जवाब था कश्मीर मसले का हल कोई नहीं चाहता है ,न ही भारत न ही पाकिस्तान . न ही वहा की फौज न ही यहाँ की फौज . न ही यहाँ के अधिकारी न ही वहा के अधिकारी . कश्मीर मसले का हल सिर्फ वो माँ चाहती है जिसका बच्चा इस शाजिस का शिकार हुआ है .
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