ओबामा ! ओबामा दगा नही देना
ओबामा !ओबामा, किसका ओबामा ? लेकिन फिर भी इस ओबामा की गूंज हर जगह है .एक उम्मीद हर जगह है मानो ओबामा कुछ करके जायेंगे ,कुछ देके जायेंगे .किसको ? यह नही पता .राजनीतिक पंडित कहते है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे का मकसद अमेरिका के लिए नए बाज़ार और अवसर तलाशने से है उनका तर्क है कि अगर वे भारत को कुछ देने आये है तो उनकी टीम मे २०० से ज्यादा अमेरिकी कंपनी के सी ई ओ क्या करने आये है ? लेकिन मेरे जैसे अज्ञानी यह उम्मीद लगा बैठे हैं कि ओबामा भारत मे कदम रखते ही यह ऐलान करेंगे कि 'पाकिस्तान भारत के खिलाफ जेहादियों को भेजना बंद करे बरना खैर नही "यह उम्मीद हमने ओबामा के चुनावी भाषण सुनकर जगाई थी .लेकिन राष्ट्रपति बनते ही ओबामा ने ऐसा पैतरा बदला कि हमने कहना शुरू कर दिया दोस्त दोस्त ना रहा ..... ओबामा राष्ट्रपति बनने से पहले यह अक्सर कहा करते थे पाकिस्तान को मिलने वाली अमेरिकी मदद की समीक्षा होगी ,उनका मानना था अमेरिका के लाखों करोडो डालर का इस्तेमाल पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवादी अभियानों मे लगता है .लेकिन आतंकवाद के खिलाफ जंग के नाम पर अबतक सबसे ज्यादा फंड ओबामा ने ही पाकिस्तान को दिया .यानि पिछले दो साल मे पाकिस्तान को ९ बिलियन डॉलर मिले है .अमेरिका के इस तथाकथित आतंक के खिलाफ जंग मे पाकिस्तान बराबर का साझेदार है .ओबामा को अफगानिस्तान के दल दल से अमेरिका को बाहर निकालना है इसके लिए पाकिस्तान ही एक मात्र सहारा है .बात चाहे अफगानी तालिबान से करो या फिर पाकिस्तानी तालिबान की जरूत जनरल कियानी की ही पड़ेगी .
यह बात दुनिया जानती है कि पाकिस्तान मे सत्ता की डोर पाकिस्तानी फौज के हाथ मे है .आतंक के सारे खेल का रेफरी पाकिस्तानी फौज है .डेविड कोलमन हेडली के हालिया खुलासा चौकाने वाले है उसने मुंबई हमले के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तानी फौज और आई एस आई को जिम्मेदार ठहराया है .हेडली का माने तो इस हमले की जानकारी अमेरिका को थी .जबकि अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग का दावा है की उसने इस साजिश से भारत को बाखबर किया था .लेकिन हमले हुए और २०० से ज्यादा लोग मारे गए .हमले की जांच चल रही है ,कसाब को क्या सजा मिले इसपर फैसला होना अभी बांकी है .पाकिस्तान की अदालत को अभी और सबूतों का दरकार है .आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है लेकिन फिर भी हम अमेरिका से उम्मीद लगा बैठे है की ओबामा भारत दौरे पर २६/११ हमले के पीड़ितों को न्याय दिलावे .यह बात जानते हुए भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलफ अमेरिका ने कभी भी सख्त कदम नही उठाये है ..भारत को यह लड़ाई खुद लड़नी होगी ..
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबमा से पूरी दुनिया को उम्मीदे है यही वजह है की उन्हें पहले ही शांति का नोवेल पुरस्कार मिल चुका है .हम भी अगर दक्षिण एशिया मे शांति के लिए ओबामा से उम्मीद करते है .पाकिस्तान पर कारवाई की मांग करते है तो शायद हमरा सोचना गलत नही है .क्योंकि पाकिस्तान का वजूद अमेरिकी से मिले फंड पर निर्भर है .आर्थिक रूप से जर्जर और सामजिक रूप से लहुलाहन पाकिस्तान मे जम्हूरियत पहले ही दम तोड़ चुकी है इस हालात मे पाकिस्तानी सत्ता से उम्मीद करना बेमानी है .नयी दिल्ली का संवाद इस्लामाबाद से है जिनका कोई अस्तित्व नही है जबकि अमेरिका का प्रभाव रावलपिंडी यानि फौज के मरकज पर है .भारत को पता है फोजी जनरल ही बात चित की किसी पहल को आगे बढा सकते है लेकिन बातचीत और कारवाई के लिए उसे बात जरदारी और गिलानी से करनी पड़ती है जो खुद पाकिस्तान मे अपने वजूद के लिए लड़ रहे है .भारत को जनरल कियानी से बात करने के लिए कोई माध्यम चाहिए लेकिन वह इसके लिए किसी दुसरे देश की मदद नही ले सकता ?क्यों ये आप बेहतर जानते है .भारत पाकिस्तान के बीच समझौते की लम्बी फेहरिस्त है लेकिन वहां के जनरलों ने उन समझौते का क्या हश्र किया है आपके सामने है .भुट्टो का शिमला समझौता जनरल जिया के भेट चढ़ गया .नवाज शरीफ का लाहोर समझौता जनरल परवेज मुशरफ के अहंकार का शिकार हुआ .तो राष्ट्रपति मुशर्रफ के समझौते को जनरल कियानी ने रद्दी की टोकरी मे डाल दिया .समझोते के इन हश्र के बाद भी हम अगर पाकिस्तान से किसी और समझौते की उम्मीद करते है तो उसका हश्र हमारे सामने है .
पाकिस्तान एक संप्रभु देश है इससे ज्यादा जोर इस बात पर दिया जाता है की पाकिस्तान के पास परमाणु बम का जखीरा है .चीन के लिए पाकिस्तान वह तुरुप का पत्ता है जिसका इस्तेमाल वह भारत के खिलाफ करता है .तो अमेरिका की चिंता यह है की पाकिस्तान के इस परमाणु बोम्ब का इस्तेमाल आतंकवादी कही उसके खिलाफ न करले .लेकिन यह बोम्ब पाकिस्तान को भारत के खिलाफ जेहादियों को भड़काने उन्हें कारवाई के लिए उकसाने की पूरी छूट देता है .यह बोम्ब पाकिस्तान मे फौज को सत्ता के केंद्र मे रखता है .आतंकवाद को लेकर जितनी चिंता भारत को है उससे ज्यादा चिंता अमेरिका को है लेकिन अगर आतंक के खिलाफ जंग के नाम पर अमेरिका खुद पाकिस्तानी फौज के सामने असहाय है तो भारत को ओबमा से ज्यादा उम्मीद करना बेमानी है .
यह बात दुनिया जानती है कि पाकिस्तान मे सत्ता की डोर पाकिस्तानी फौज के हाथ मे है .आतंक के सारे खेल का रेफरी पाकिस्तानी फौज है .डेविड कोलमन हेडली के हालिया खुलासा चौकाने वाले है उसने मुंबई हमले के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तानी फौज और आई एस आई को जिम्मेदार ठहराया है .हेडली का माने तो इस हमले की जानकारी अमेरिका को थी .जबकि अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग का दावा है की उसने इस साजिश से भारत को बाखबर किया था .लेकिन हमले हुए और २०० से ज्यादा लोग मारे गए .हमले की जांच चल रही है ,कसाब को क्या सजा मिले इसपर फैसला होना अभी बांकी है .पाकिस्तान की अदालत को अभी और सबूतों का दरकार है .आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है लेकिन फिर भी हम अमेरिका से उम्मीद लगा बैठे है की ओबामा भारत दौरे पर २६/११ हमले के पीड़ितों को न्याय दिलावे .यह बात जानते हुए भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलफ अमेरिका ने कभी भी सख्त कदम नही उठाये है ..भारत को यह लड़ाई खुद लड़नी होगी ..
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबमा से पूरी दुनिया को उम्मीदे है यही वजह है की उन्हें पहले ही शांति का नोवेल पुरस्कार मिल चुका है .हम भी अगर दक्षिण एशिया मे शांति के लिए ओबामा से उम्मीद करते है .पाकिस्तान पर कारवाई की मांग करते है तो शायद हमरा सोचना गलत नही है .क्योंकि पाकिस्तान का वजूद अमेरिकी से मिले फंड पर निर्भर है .आर्थिक रूप से जर्जर और सामजिक रूप से लहुलाहन पाकिस्तान मे जम्हूरियत पहले ही दम तोड़ चुकी है इस हालात मे पाकिस्तानी सत्ता से उम्मीद करना बेमानी है .नयी दिल्ली का संवाद इस्लामाबाद से है जिनका कोई अस्तित्व नही है जबकि अमेरिका का प्रभाव रावलपिंडी यानि फौज के मरकज पर है .भारत को पता है फोजी जनरल ही बात चित की किसी पहल को आगे बढा सकते है लेकिन बातचीत और कारवाई के लिए उसे बात जरदारी और गिलानी से करनी पड़ती है जो खुद पाकिस्तान मे अपने वजूद के लिए लड़ रहे है .भारत को जनरल कियानी से बात करने के लिए कोई माध्यम चाहिए लेकिन वह इसके लिए किसी दुसरे देश की मदद नही ले सकता ?क्यों ये आप बेहतर जानते है .भारत पाकिस्तान के बीच समझौते की लम्बी फेहरिस्त है लेकिन वहां के जनरलों ने उन समझौते का क्या हश्र किया है आपके सामने है .भुट्टो का शिमला समझौता जनरल जिया के भेट चढ़ गया .नवाज शरीफ का लाहोर समझौता जनरल परवेज मुशरफ के अहंकार का शिकार हुआ .तो राष्ट्रपति मुशर्रफ के समझौते को जनरल कियानी ने रद्दी की टोकरी मे डाल दिया .समझोते के इन हश्र के बाद भी हम अगर पाकिस्तान से किसी और समझौते की उम्मीद करते है तो उसका हश्र हमारे सामने है .
पाकिस्तान एक संप्रभु देश है इससे ज्यादा जोर इस बात पर दिया जाता है की पाकिस्तान के पास परमाणु बम का जखीरा है .चीन के लिए पाकिस्तान वह तुरुप का पत्ता है जिसका इस्तेमाल वह भारत के खिलाफ करता है .तो अमेरिका की चिंता यह है की पाकिस्तान के इस परमाणु बोम्ब का इस्तेमाल आतंकवादी कही उसके खिलाफ न करले .लेकिन यह बोम्ब पाकिस्तान को भारत के खिलाफ जेहादियों को भड़काने उन्हें कारवाई के लिए उकसाने की पूरी छूट देता है .यह बोम्ब पाकिस्तान मे फौज को सत्ता के केंद्र मे रखता है .आतंकवाद को लेकर जितनी चिंता भारत को है उससे ज्यादा चिंता अमेरिका को है लेकिन अगर आतंक के खिलाफ जंग के नाम पर अमेरिका खुद पाकिस्तानी फौज के सामने असहाय है तो भारत को ओबमा से ज्यादा उम्मीद करना बेमानी है .
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