तहरीर चौक के बाद अब कौन चौक .......
"अब मिस्र आज़ाद है " तहरीर चौक पर अपार जनसमुदाय का यह नारा पूरी दुनिया मे व्यवस्था परिवर्तन की लो को एक उम्मीद से भर दिया है इजिप्ट के .तहरीर चौक से उठी यह क्रांति की चिंगारी अरब वर्ल्ड के साथ साथ एशिया के देशो मे जल्द ही फैलने वाली है .अरब देशो मे सत्ता शीर्ष पर कब्ज़ा जमाये हुए सत्ताधीशों की बेचैनी बढ़ने लगी है .टूनिसिया मे एक मजदूर की मौत क्रांति का आगाज कर सकती है और वर्षो से सत्ता पर काबिज निरंकुश शासक को मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है .मिस्र मे फेसबुक पर एक लड़की का यह मेसेज "मै तहरीक चौक जा रही हूँ" .........एक नयी क्रांति की नीव डालती है और महज १८ दिन के आन्दोलन ३० साल के हुस्नी मुबारक की सत्ता को उखाड़ फेकता है .तो क्या ऐसी क्रांति आज भारत मे संभव है ?क्या भारत मे व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा कभी क्रांति का रूप धारण कर सकता है ?
व्यवस्था के खिलाफ रोष और क्षोभ न्यायपालिका को है ,मिडिया को है ,लोगों को है ,बुधिजिबियों को है लेकिन क्रांति को लेकर उत्साह कही नही है .सुप्रीम कोर्ट के जज की शिकायत है कि सरकार न्यायपालिका को अधिकार संपन्न नही देखना चाहती .एक जज का क्षोभ है कि कोर्ट की टिप्पणियों का कोई क़द्र नही है .उधर सरकार की ओर से सीमा और मर्यादा की नशिहत दी जाती है .भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का गुस्सा आसमान छू रहा है लेकिन ओ कुछ कर नही पा रहा है क्योंकि उन्हें यह कहा जा रहा है कि उनकी चुनी हुई सरकार सत्ता पर आसीन है .पांच साल बाद सत्ता से लोगों को बेदखल करने का उन्हें फिर मौका मिलेगा आदि आदि .भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने की जिम्मेदारी विपक्ष की है लेकिन उनका दायित्व न्यायलय ने संभाल लिया है .प्रक्रिया इतनी धीमी और लचर है कि बोफोर्स दलाली की रकम मुल्क वापस नही पा सकी .उलटे इस जांच प्रक्रिया मे मुल्क ने दलाली के कई गुना रकम खर्च दिया है और नतीजा सिफ़र ही हाथ लगा है .भ्रष्टाचार का आलम यह है कि महज ७ वर्षो मे इस देश ने जितना खोया है उतनी रकम शायद ६० वर्षों मे भी नेता -अधिकारी और दलाल हजम नही कर पाए .
दस साल पहले १०० - २०० करोड़ रूपये के घोटाले के लिए आन्दोलन होते थे लेकिन आज २० लाख करोड़ रूपये के घोटाले के खिलाफ कही मामूली धरना -प्रदर्शन भी नही होते .करोडो रूपये के घोटाले ,विदेशी बैंको मे काला धन की चर्चा न्यायलयों मे होती है और इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मिडिया लोगों के घरों मे देश के वैभवता की तस्वीर पेश कर रहा है लेकिन आक्रोश कही नही है हर शाम .कोर्ट से बाहर निकलकर वकील ,राजनेता और विशेज्ञ टीवी पर मजमा लगाते है और एक दुसरे पर कीचड़ उछाल कर अपने अपने घर लौट जाते है .लेकिन इस पुरे खेल मे सरकार चुप है क्योंकि उसे पता है कि इन बहस से कोई सम्पूर्ण क्रांति नही आने वाली है .हमाम मे सब नंगे है सो कोई जयप्रकाश नारायण पैदा हो नही सकता .
व्यवस्था के खिलाफ नक्सली जंगलों मे आन्दोलन रत है लेकिन उनका यह तथाकथित आन्दोलन आदिवासी इलाकों से बाहर नही निकाल सका तो माना जायेगा कि नक्सली जंगली इलाको मे अपनी प्रभुसत्ता बनाकर खुश है .सरकार जब कभी भी उन इलाकों मे उनकी प्रभुसत्ता को चुनौती देती है नक्सली इस एवज १० -२० मासूमों की जान ले लेते है .मैनिंग मे पैसा राजनेताओ को भी चाहिए तो नक्सली भी इसमें अपना हिस्सा मांगते है .सो आन्दोलन की धार पैसे की ताक़त ने पहले ही कुंद कर रखी है .
भ्रष्टाचार ,घोटाला ,महगाई ,आम आदमी की मुश्किलें हर घर मे हर चौक पर बहस का मुद्दा है लेकिन इसमें कोई चिंगारी नही है .राजधानी दिल्ली मे तहरीर चौक का आकार पहले ही छोटा कर दिया गया है. अगर १०० -२०० लोग भी जंतर मंतर पर जामा हुए तो पुरे इलाका की ट्राफिक व्यवस्था चरमरा जायेगी .सरकार को पता है अपना अपना रास्ता ढूंढने मे लगे लोग कभी यह वर्दास्त नही करेंगे कि उनकी रफ़्तार किसी बहस के कारण थम जाय .इस आन्दोलन को देश के ७ फिसद की विकास दर ने भोथरा बना दिया है .माध्यम वर्ग की एक बड़ी आवादी अपने मकान,दुकान ,बच्चो की शिक्षा की मह्बारी किस्तों मे इस कदर उलझा हुआ है कि उसे यह चिंता नही सताती कि देश के अरबो -खरबों रुपया विदेशी बैंको मे पड़ा है और वह हजार -दस हजार की किस्त पूरा करने के लिए अपना पूरा जीवन दाव पर लगा दिया है .यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहाँ सरकार चुनने का हक आम लोगों को मिला हुआ है लेकिन सरकार का मुखिया कौन होगा ,सरकार के मंत्री कौन होंगे इसका फैसला आलाकमान के हाथ मे है .सरकार संसद के प्रति जिम्मेदार है लेकिन प्रधानमंत्री किसके प्रति जिम्मेदार है यह समझना अभी अभी बांकी है .गाँव से लेकर शहर तक इस मुल्क मे तहरीर चौक का आकार और आधार काफी छोटा हो गया है इस हालत मे इस आन्दोलन की शुरुआत हर घर से हो सकती है यानि इस देश को अभी आज़ादी मिलना अभी बांकी है .
तहरीर चौक के बाद अब कौन चौक .......
व्यवस्था के खिलाफ रोष और क्षोभ न्यायपालिका को है ,मिडिया को है ,लोगों को है ,बुधिजिबियों को है लेकिन क्रांति को लेकर उत्साह कही नही है .सुप्रीम कोर्ट के जज की शिकायत है कि सरकार न्यायपालिका को अधिकार संपन्न नही देखना चाहती .एक जज का क्षोभ है कि कोर्ट की टिप्पणियों का कोई क़द्र नही है .उधर सरकार की ओर से सीमा और मर्यादा की नशिहत दी जाती है .भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का गुस्सा आसमान छू रहा है लेकिन ओ कुछ कर नही पा रहा है क्योंकि उन्हें यह कहा जा रहा है कि उनकी चुनी हुई सरकार सत्ता पर आसीन है .पांच साल बाद सत्ता से लोगों को बेदखल करने का उन्हें फिर मौका मिलेगा आदि आदि .भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने की जिम्मेदारी विपक्ष की है लेकिन उनका दायित्व न्यायलय ने संभाल लिया है .प्रक्रिया इतनी धीमी और लचर है कि बोफोर्स दलाली की रकम मुल्क वापस नही पा सकी .उलटे इस जांच प्रक्रिया मे मुल्क ने दलाली के कई गुना रकम खर्च दिया है और नतीजा सिफ़र ही हाथ लगा है .भ्रष्टाचार का आलम यह है कि महज ७ वर्षो मे इस देश ने जितना खोया है उतनी रकम शायद ६० वर्षों मे भी नेता -अधिकारी और दलाल हजम नही कर पाए .
दस साल पहले १०० - २०० करोड़ रूपये के घोटाले के लिए आन्दोलन होते थे लेकिन आज २० लाख करोड़ रूपये के घोटाले के खिलाफ कही मामूली धरना -प्रदर्शन भी नही होते .करोडो रूपये के घोटाले ,विदेशी बैंको मे काला धन की चर्चा न्यायलयों मे होती है और इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मिडिया लोगों के घरों मे देश के वैभवता की तस्वीर पेश कर रहा है लेकिन आक्रोश कही नही है हर शाम .कोर्ट से बाहर निकलकर वकील ,राजनेता और विशेज्ञ टीवी पर मजमा लगाते है और एक दुसरे पर कीचड़ उछाल कर अपने अपने घर लौट जाते है .लेकिन इस पुरे खेल मे सरकार चुप है क्योंकि उसे पता है कि इन बहस से कोई सम्पूर्ण क्रांति नही आने वाली है .हमाम मे सब नंगे है सो कोई जयप्रकाश नारायण पैदा हो नही सकता .
व्यवस्था के खिलाफ नक्सली जंगलों मे आन्दोलन रत है लेकिन उनका यह तथाकथित आन्दोलन आदिवासी इलाकों से बाहर नही निकाल सका तो माना जायेगा कि नक्सली जंगली इलाको मे अपनी प्रभुसत्ता बनाकर खुश है .सरकार जब कभी भी उन इलाकों मे उनकी प्रभुसत्ता को चुनौती देती है नक्सली इस एवज १० -२० मासूमों की जान ले लेते है .मैनिंग मे पैसा राजनेताओ को भी चाहिए तो नक्सली भी इसमें अपना हिस्सा मांगते है .सो आन्दोलन की धार पैसे की ताक़त ने पहले ही कुंद कर रखी है .
भ्रष्टाचार ,घोटाला ,महगाई ,आम आदमी की मुश्किलें हर घर मे हर चौक पर बहस का मुद्दा है लेकिन इसमें कोई चिंगारी नही है .राजधानी दिल्ली मे तहरीर चौक का आकार पहले ही छोटा कर दिया गया है. अगर १०० -२०० लोग भी जंतर मंतर पर जामा हुए तो पुरे इलाका की ट्राफिक व्यवस्था चरमरा जायेगी .सरकार को पता है अपना अपना रास्ता ढूंढने मे लगे लोग कभी यह वर्दास्त नही करेंगे कि उनकी रफ़्तार किसी बहस के कारण थम जाय .इस आन्दोलन को देश के ७ फिसद की विकास दर ने भोथरा बना दिया है .माध्यम वर्ग की एक बड़ी आवादी अपने मकान,दुकान ,बच्चो की शिक्षा की मह्बारी किस्तों मे इस कदर उलझा हुआ है कि उसे यह चिंता नही सताती कि देश के अरबो -खरबों रुपया विदेशी बैंको मे पड़ा है और वह हजार -दस हजार की किस्त पूरा करने के लिए अपना पूरा जीवन दाव पर लगा दिया है .यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहाँ सरकार चुनने का हक आम लोगों को मिला हुआ है लेकिन सरकार का मुखिया कौन होगा ,सरकार के मंत्री कौन होंगे इसका फैसला आलाकमान के हाथ मे है .सरकार संसद के प्रति जिम्मेदार है लेकिन प्रधानमंत्री किसके प्रति जिम्मेदार है यह समझना अभी अभी बांकी है .गाँव से लेकर शहर तक इस मुल्क मे तहरीर चौक का आकार और आधार काफी छोटा हो गया है इस हालत मे इस आन्दोलन की शुरुआत हर घर से हो सकती है यानि इस देश को अभी आज़ादी मिलना अभी बांकी है .
तहरीर चौक के बाद अब कौन चौक .......
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