कश्मीर की सियासत और लाचार मुल्क


सैयद अली शाह गिलानी क्या आज कश्मीर के  सबसे बड़े कद्दाबर लीडर है ? आम कश्मीरी भले ही इस बात से इतिफाक न रखते हो लेकिन  गिलानी साहब का खौफ राज्य के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह के सर चढ़ कर बोलता है .अमरनाथ श्रायण बोर्ड के मसले पर पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए बोर्ड को यात्रियों के लिए समुचित व्यवस्था का निर्देश दिया था .ज्ञात हो कि पिछले 3 वर्षों में यात्रा के दौरान 250 से यात्रियों की मौत की वजह सिर्फ बुनियादी सुविधा का अभाव रहा है .ओमर अब्दुल्लाह की सरकार अभी बुनियादी सहूलियत उपलब्ध कराने का मन भी नहीं बनाया है लेकिन गिलानी  के द्वारा यह अफवाह फैलाया गया कि पवित्र गुफा तक पक्की सडको का निर्माण हो रहा है .(बुनियादी सुविधा के नाम पर कश्मीर के हज पर जाने जायरीनो के लिए  श्रीनगर से जेद्दा की सीधी उड़ान की व्यवस्था की गयी है लेकिन उसी कश्मीर में सियासतदान  अमरनाथ यात्रियों को थोड़ी सहूलियत का विरोध कर रहे हैं) सैयद अली शाह गिलानी ने उधर अमरनाथ चलो का नारा दिया उधर रियासती हुकूमत बचाव की मुद्रा में आ गयी .मानो ओमर अब्दुल्लाह सरकार को गिलानी ने चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ा हो ..आनन -फानन में पत्रकारों की एक बड़ी फौज को हेलिकॉप्टर से यात्रा मार्ग का मुआयना कराया गया और हुकूमत ने इन पत्रकारों से प्रमाणपत्र हासिल किया कि इन यात्रा रूट पर कोई निर्माण कार्य नहीं हो रहे हैं।  सवाल यह है कि कश्मीर मे आज ओमर अब्दुल्ला सरकार की रिट चल रही है या गिलानी की ? क्या चुने हुए नुमायन्दे पर जज्वात के नुमायन्दे हावी है? या फिर ओमर अब्दूलाह की सरकार गिलानी साहब को मॉन्स्टर के रूप में प्रस्तुत करके दिल्ली सरकार को झासा दे रही  है ?

सेक्युलर मुल्क के एक प्रान्त कश्मीर में भारत सरकार के फंड से राज्य सरकार पवित्र दरगाह हजरतवल के  निर्माण में  करोडो रूपये खर्च कर रही है .वही सरकार चरारे शरीफ के मशहूर दरगाह के पुनर्निर्माण में फिर करोड़ों खर्च करती है .भारत सरकार के फंड का इस्तेमाल कई पवित्र दरगाह के निर्माण में हुआ है लेकिन जब बात अमरनाथ गुफा की यात्रा पर निकले यात्रियों की सुविधा की होती है तो मुल्क का सेकुलरिज्म गूंगा हो जाता है .
हुर्रियत लीडर सैयद अली शाह गिलानी की नजर में बाबा अमरनाथ के दर्शनार्थी किसी आक्रान्ता से कम नहीं है .गिलानी साहब इस पवित्र यात्रा को अपनी संस्कृति पर हमला मानते है .यानी इस्लाम खतरे में है का नारा देकर गिलानी साहब एक बार फिर राज्य की सियासत को अपनी तरफ मोड़ लेने की जुगाड़ में हैं .लेकिन उनकी इस सियासत की हवा हिजबुल मुजाहिदीन के सरगना सैयद सलाहुद्दीन  ने यह कह कर निकाल दी की यात्रा कश्मीर की सैकड़ों वर्षों की परम्परा है और यात्रियों का स्वागत है .यानी हिज्ब के सरगना यह जानते है कि वादी के लोग ऐसे तुगलकी फरमान पर कभी गौर नहीं करेंगे .दो महीने की यात्रा में वादी के दूरदराज के हजारों लोग रोजगार पाते है तो हजारो गुज्जर खानदान के लोग अपने साल भर के खर्चे की जुगाड़ इन्ही दो महीने की यात्रा में पूरा कर लेते है .यानी अलगाववादी लीडरों को पता है कि यात्रा की इकोनॉमिक्स ,पॉलिटिक्स  को कभी हावी नहीं होने देगी .यही वजह है की सुप्रीम कोर्ट की दखल से बोखलाए मीरवाइज़ ओमर फारूक और सएद अली शाह गिलानी यात्रा को इकोलॉजी और वातावरण की समस्या से जोड़ते है .उनका मानना है कि यात्रा की बढ़ी भीड़ से ग्लेसियर को पिघलने का खतरा है .यानी मशहूर  जामा मस्जिद के मौलवी को इकोलॉजी पर इस महारत से दुनिया भले ही हैरान हो सकती है लेकिन कश्मीर के लोग इस तर्क को बकवास करार देंगे .यानी कश्मीर के इकोलॉजी और वातावरण को किसने बिगाड़ा है यह सच बोलने का साहस मीरवाइज़ कभी नहीं कर सकते है।शायद मिरवैज यह भी नहीं बोल सकते कि पहलगाम के ग्रीन बेल्ट के  प्रतिवंधित वाले इलाके में निर्माण कार्य पर सख्त मनाही के वाबजूद शब्बीर शाह का फाइव स्टार होटल किसके परमिशन पर बना .किसने उस इलाके की इकोलोजी को तबाह किया ?

कश्मीरियत के शानदार परंपरा में सैकडो वर्षों से अमरनाथ दर्शन के लिए पुरी दुनिया से लोग आते है ,आज भी एक मुस्लिम बूटा मल्लिक  का परिवार इस पवित्र गुफा का संरक्षक है .स्वामी विवेकनद से लेकर हजारों संतों और ऋषियों ने हिमालय में स्थित इस पवित्र गुफा के दर्शन का लाभ उठाया है .शादियों से हिमालय का यह सिलसिला भारतीय संस्कृति का अहम् हिस्सा रहा है .ज्ञान और दर्शन की खोज में सैकड़ों ऋषियों ने यहाँ सिद्ध प्राप्त की है लेकिन मौजूदा दौर में " धारा 370 " का हवाला देकर भारतीय स्मिता के उस प्रवाह को रोकने की साजिश की जा रही है . शिव के दर्शन के लिए उमड़ी यात्रियों की भीड़ ने  कभी यह  नही कहा कि उन्हें शौचालय बना के दो या फ़िर उन्हें रहने सहने के लिए उचित प्रबंध करो । न ही किसी यात्री ने कहा कि यात्रा में भारी खर्च के बोझ को सरकार कम करे और उन्हें सब्सिडी दे। पैसा उगाहने  कि कवायद  में सरकारी इन्त्जमियां ने यात्री को टूरिस्ट बनने की  कोशिशे  तेज की  । सरकार को लगा कि हर साल पाच से छः लाख आने वाले तीर्थ यात्रियों से मोटी कमाई की  जा सकती है । जाहिर है टूरिज्म डिपार्टमेंट ने हेलीकाप्टर  सेवा भी शुरू की लेकिन बुनियादी सहूलियत के मामले में खामोश रही . ध्यान रहे महज ५ साल के दौरान माता वैष्णो  देवी श्रायण बोर्ड ने थोडी सुविधा देकर आज करोडो रूपये से सरकार के खजाने को  भर रहा है । आज बोर्ड माता के दर्शन की भी बोली लगा रहा है  जिसका जितना चढ़ावा वैसा दर्शन . माता के दरबार में पहुँचने वाले श्रधालुओं की तादाद हर साल  1 करोड़ के आंकड़े को पार कर जाता है .यानी यही दरबार कश्मीर के टूरिजम की धड़कन और रियासत की इकोनॉमिक्स भी है लेकिन सियासत ऐसी कि आज दर्शनार्थियों को  आक्रान्ता करार दिया जा रहा है और सरकार खामोश है .दुसरे प्रान्त में ऐसे बयानों पर दंगा भड़काने का जुर्म लगाया जा सकता है लेकिन कश्मीर की सियासत में कुछ मुठी भर लोगों को इसकी पूरी छूट मिली है। धारा 370 का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को अवहेलना की जा रही है .

सन 2008 में अमरनाथ श्रायण बोर्ड को यात्रियों की सहूलियत के लिए आस्थाई सेड बनाने की इजाजत गुलाम नबी आज़ाद की हुकूमत ने दी।लेकिन महज  १०० -२०० लोगों के विरोध प्रदर्शन के सामने सरकार ऐसी झुकी मानो रियासत के समाजी,सियासी  और आर्थिक मामले  जम्मू के लोगों का कभी कोई अस्तित्व ही  न हो .अमरनाथ संघर्ष समिति के बैनर के नीचे जम्मू  के हिन्दू ,सिख और मुसलमानों ने  40 दिनों तक संघर्ष किया लेकिन हुकूमत ने उनकी एक नहीं सुनी . सरकार को अपने फैसले बदलने पड़े, अमरनाथ श्रायण बोर्ड को भंग किया गया आखिर में  सरकार को भी जाना पड़ा । यानी कश्मीर की ओछी सियासत ने  सैयद अली शाह गिलानी को घर बैठे हीरो बना दिया .हालाँकि गिलानी साहब ने बाद में यह कहकर विरोध करने वाले लोगों को शर्मसार जरूर कर दिया कि  हुर्रियत की और से लैंड ट्रान्सफर का मुद्दा कभी नही बना । लैंड ट्रान्सफर का मुद्दा नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी का था । हुर्रियत के लिए धारा ३७० कोई मुद्दा नही है .कल धारा 370 का हवाला देकर फारूक अब्दुल्ला की पार्टी ने अमरनाथ यात्रा को मुश्किल बनाया आज वही काम विपक्ष में रहकर महबूबा कर रही है .

यानी देश और दिल्ली से कश्मीर की पार्टियों का रिश्ता तब तक है जबतक उनके  हाथ में रियासत की सरकार है .सरकार गयी पार्टिया अपना तेबर अलगावादी से भी सख्त कर लेती है .यानी न तो  उन्हें जम्मू के लोगों की जज्वात का फ़िक्र है न ही लदाख की .उन्हें पता है कश्मीर के 6 जिलों की सियासत में ही  सरकार बनाने का सूत्र छिपा है .यानी कश्मीर के 20 फीसद लोगों का वर्चास्व आज 80 फीसद लोगों के जज्वात और हक को पीछे धकेल दिया है .
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई मे भारत की संप्रभुता कश्मीर की दोगली सियासत के सामने बौने दिखती है .आज मुल्क  के आर्थिक संसाधन का सबसे ज्यादा उपयोग कश्मीर के लोग कर रहे है .भारत की आर्थिक संसाधनो की सबसे ज्यादा लूट इसी कश्मीर मे है,ओमर अब्दुल्लाह इसे गठबंधन सरकार  की मजबूरी बता रहे है लेकिन हर तरह के  फंड पर कुछ कश्मीरी लीडरों का कब्ज़ा एक अलग समीकरण का खुलासा करता है .  कश्मीर के  सियासतदान इस लूट और बंदरबाट को छिपाने के लिए भारत को जब तब कश्मीर में अलगाववाद की आग भड़कने से आगाह भी करते है .कश्मीर में अलगाववाद की यह आग कश्मीर के सियासतदानो ने नहीं बुझाई है ..दहशतगर्दी के दौर में फारूक अब्दुल्लाह अपने पुरे कुनबे के साथ लन्दन भाग लिए थे .लगभग तमाम अल लीडरों ने कश्मीर से हिजरत कर लिया था लेकिन आज वही लीडर  अमन की बनी फिजा के बीच  अलगाववाद भड़कने  की नसीहत दे रहे हैं। हिमालय भारत की संस्कृति है या यूँ कहे कि भारतीय अस्मिता  की पहचान हिमालय है .आज कैलाश मानसरोवर की यात्रा को प्रोत्साहित करने के लिए चीन उस कठिन यात्रा को आसान बनाने के लिए  बुनियादी सुविधा बहाल करने की हर संभव प्रयास कर रहा है लेकिन अपने ही मुल्क में यात्री कुछ सुविधा के लिए मोहताज है .हिमालय के इसी आन वान और शान की रक्षा के लिए, कश्मीर में अपने मुल्क की संप्रभुता को साबित करने के लिए हजारों वीर जवानों ने शहादत दी है .क्या यह मुल्क डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को यूँ ही बेकार जाने देगा और कुछ चंद लोगों की ओछी सियासत के सामने घुटने टेक देगा।क्या अमरनाथ यात्रा की परमिट अब गिलानी तय करेंगे ?    क्या भारत की हजारों साल की पहचान और संस्कृति की धारा  की प्रवाह को कश्मीर के कुछ मुठी भर लोगों की सनक और धारा 370 का हवाला देकर रोका जा सकता है ?

















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