धृतराष्ट्र के हस्तिनापुर में" दामिनी" के साथ इन्साफ?

भाई साहब !बलिया कहाँ है?.औटो ड्राईवर के इस सवाल ने पहले मुझे चौकाया लेकिन उसके दिमाग में चल रहे सवालो को जानने के लिए मैंने कहा उत्तर प्रदेश में ."नाक कटने से बच गयी " ऑटो ड्राईवर ने कहा मुझे लग रहा था बलिया बिहार में है और " दामिनी " बिहार की थी .इससे पहले वह कुछ और बोलता ,मैंने उसे टोकते हुए कहा ,भाई वह देश की बेटी थी ,वैसे भी बलिया बिहार का बॉर्डर इलाका है ,भाषा और संस्कृति से एक है .जी !सब कुछ ठीक है लेकिन घर का मामला थोडा ज्यादा शर्मिंदा करता है ड्राईवर ने कहा .मै उसके जवाब से सन्न था  .16 दिसंबर की रात जब देश की बेटी (जिसे ज़माने ने "अवला " का नाम दिया था मौजूदा दौर में मिडिया ने उसे "दामिनी "निर्भय जैसे कई नाम दिए है ) मदद के लिए गुहार लगा रही थी ,आधुनिक कौरवों के चीरहरण से व्यथित पीड़ित बेटी समाज को कृष्ण बनने के लिए दुहाई दे रही थी लेकिन मदद के हाथ कही से नहीं बढे, क्योंकि  वह अपने घर की बेटी नहीं थी .यह इन्द्रप्रस्थ है आज दिल्ली बन गयी है लेकिन यहाँ कौरब कल भी थे और आज भी है सिर्फ भूमिका बदल गयी है .
जाड़े की ठिठुरती रात में हमारी बेटी देश की राजधानी दिल्ली में किसी सभ्य पुरुष का चेहरा देखना चाहती थी .क्रूर और दानवो से कुचली वह लड़की असहाय सड़क के किनारे पड़ी थी .गाड़ियों की चिल पों और शोर गूल  उसे यह यह एहसास करा रहा था कि वह किसी वियावान जंगल में नहीं है .उसे लग रहा था कि इंसानों की बस्ती में कोई सहारा देने के लिये जरूर आगे आएगा ,लेकिन 2 घंटे बीत जाने के बाद न ही कोई गाडी रुकी और न ही कोई मदद के हाथ बढे .शायद इससे जंगल ही बेहतर होता होगा, जहाँ  कुछ तो नियम कानून होंगे वह सोच रही थी और उसका दोस्त एक अदद कपडा के लिए चिल्ला रहा था .यह दृश्य उस जगह का है ,जहाँ महज 7 किलों मीटर की दूरी पर देश के प्रधानमंत्री रहते है .उतनी ही दुरी पर देश के राष्ट्रपति और सर्बोच पंचायत संसद भवन है तमाम आला अफसर हैं लेकिन कौरबो के हस्तिनापुर (दिल्ली ) में मानो एक नहीं सारे धृतराष्ट्र बैठे हैं .

जी  न्यूज़ के एक खुलासे ने सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था को तार तार कर दिया है .भारत और इंडिया के बहस में उलझे हमारे समाज को आइना दिखा दिया है .बेटी घर की इज्जत है समाज की इज्जत है यह खाप पंचायत तय करती है लेकिन न्याय पाने के सवाल पर बेटी को न तो शहर में न्याय मिलता है न ही गाँव में .इज्जत के तराजू पर बैठी बेटी का इन्साफ उसके परिवार के असर -रसूख के हिसाब से तय होता है .सुस्त न्याय प्रक्रिया में एक नवालिग़ लड़की अपनी पूरी उम्र गुजार देती है लेकिन उसे न्याय नहीं मिलता लेकिन हम फिर भी यह कहने से बाज नहीं आते है "नारी तू केवल श्रधा हो " .आज बेटी के स्वाभिमान को लेकर लोग सड़क पर निकले हैं .सरकार भी लोगों के मूड को भापते हुए कारवाई का भरोसा दे रही है लेकिन अलग अलग घरों में बटी बेटी की इज्जत के बारे में जबतक समाज अपना रबैया नहीं बदलता तबतक ध्रितराष्ट्र के हस्तिनापुर तो दूर राम के अयोध्या में भी बेटी को न्याय मिलना मुश्कील है ..... अपनी बेटी के साथ साथ दुसरे की बेटी के लिए भी नाक का सवाल बनाना जरूरी है ...


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