गणतन्त्र दिवस : कश्मीर मसले में गणतंत्र की भूमिका बढाने की जरूरत है


64 वे गणतन्त्र दिवस के मौके पर यह तय करना जरूरी है कि हमारा लोकतंत्र 64 साल का बुढा हो गया है या इस उम्र में भी 64 साल का शैशव दिखता है .गणतन्त्र के संस्थापको ने जिस जिम्मेदरी से हमें एक संविधान दिया और उसपर चलने का हमसे वचन लिया था ,क्या हम उस उम्मीद पर खड़े उतरे हैं .लोकतंत्र के  एक दो स्तंभ को छोड़कर बाकी सभी सतून दरकते नजर आ रहे है।हमारे तमाम तारीखी धरोहर पर यह आरोप लगते हैं कि उसमे नए ज़माने के साथ बदलाव की जरूरत है लेकिन हमने यह पड़ताल करने की जरूरत नहीं समझी कि बदलाव हमारे सोच में हुई है और इस सोच में मुल्क का सवाल ,मर्यादा का सवाल ,सहिष्णुता का सवाल ,भाईचारे का सवाल पीछे छूट गया है .भारत -पाकिस्तान के बीच बढे तनाव के बीच कई मुद्दे एकबार फिर चर्चा में है .यह मीडिया की समझदारी कहिये या बडबोलापन मुद्दे को भड़का कर सरकार और व्यवस्था को दोड़ने के लिए मजबूर जरूर कर देता है लेकिन ऐसे कई सवाल है जिन पर मीडिया समाज को जोड़कर एक राय बना सकता है . सरकार के सामने पहल के लिए विकल्प दे सकता है लेकिन ऐसे मुद्दे पर सशक्त चौथा स्तम्भ खामोश है .मसलन जम्मू कश्मीर में धारा 370 और संयुक्त राष्ट्र का विवदित प्रस्ताव पर जनमत बनाने की जरूरत है लेकिन हर ऑर ख़ामोशी है .पहलीबार इस ख़ामोशी को मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह और संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत हरदीप सिंह पूरी ने तोडा है .

सरहद पर सीजफायर का उल्लंघन  कोई नयी बात नहीं है लेकिन पूंछ के कृष्णाघाटी सेक्टर में पाकिस्तानी सैनिको की बर्बरियत ने  भारत में इसे आत्मसम्मान से जोड़ दिया .सरकार और सेना अपने पारंपरिक व्यवस्था से जबतक इसकी पहल करती ,जबतक डी जी एम् ओ का हॉटलाइन पाकिस्तान से संपर्क स्थापित करता तबतक मीडिया बॉर्डर के इस अपमान की बात हर घर में पंहुचा चूका था .लेकिन डिप्लोमेसी में शातिर पाकिस्तान ने बगैर देर किये इस मुद्दे की जाँच यु एन मिलिट्री ओब्जेर्वेर से कराने की मांग कर डाली .यानी महज एक भूल मानने  और माफ़ी मांगने के बजाय पाकिस्तान ने इसे एक मौके के तौर पर इस्तेमाल किया और यु एन सिक्यूरिटी कौंसिल की मीटिंग में एक बार फिर कश्मीर स्थित यु एन मिलिट्री ओब्जेर्वेर ग्रुप की भूमिका को बढाने की चाल चल दी .यानी कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय पहल से हल करने के  बजाय पकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय भूमिका को आगे बढ़ा  दिया .पाकिस्तान की इस साजिश को  हरदीप सिंह पूरी ने इस सवाल पूछ कर परास्त कर दिया कि अगर यु एन मिलिट्री ओब्जेर्वेर का वजूद जिन्दा है फिर शिमला समझौते का क्या मतलब है .बकौल भारत के राजदूत हरदीप सिंह पूरी "जिस दिन 1972 को भारत और पाकिस्तान ने शिमला समझौते पर दस्तखत कर दुनिया को आश्वस्त किया था कि भारत पाकिस्तान के बीच तमाम मसले द्विपक्षीय बातचीत से हल किये जाएंगे उसी दिन कश्मीर में स्थित  यु एन मिलिट्री ओब्जेर्वेर का ऑफिस निष्प्रभावी हो चूका था ."यानी इस ऑफिस को 40 साल पहले ही बंद हो जाना  चाहिए था .
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह भी यु एन मिलिट्री ओब्जेर्वेर ग्रुप को हटाने की मांग की है .1948 से यु एन मिलट्री ओब्जेर्वेर कश्मीर में और  उनके तीन फील्ड ऑफिसर जम्मू ,पूँछ और राजौरी में मौजूद है ,पिछले 24 वर्षों में सरहद पार की दहशतगर्दी को लेकर या फिर सरहद पर गोलाबारी को लेकर क्या आज तक   यु एन मिलट्री ओब्जेर्वेर ने अपनी तरफ से कोई पहल की है ?क्या कभी इस ओब्जेर्वेर ग्रुप ने सरहद पर पाकिस्तान फौज की साजिश पर कोई रिपोर्ट भेजा है .?अगर इन 65 वर्षो में यु एन मिलट्री ओब्जेर्वेर ग्रुप का कोई रोल नहीं है फिर इस सफ़ेद हाथी पर इतना खर्च क्यों किया जा रहा है ?यही सवाल हरदीप सिंह पूरी ने यु एन सिक्यूरिटी कौंसिल में पूछा था और इस ग्रुप के ऑफिस  को बंद करने की मांग की थी .ओमर अब्दुल्ला कहते है "यु एन मिलिट्री ओब्जेर्वेर ग्रुप का सियासी मसले में  कोई भूमिका नहीं है सरहद पर जन्ग्बंदी भारत पाकिस्तान के बीच बातचीत से ही बनी थी ,दुबारा अमन की पहल दोनों मुल्को की आपसी बातचीत से ही बनेगी। इस हालत में कश्मीर के आमलोगों के किसी उम्मीद पर यह ओब्जेर्वेर खड़ा नहीं उतरा है "
लेकिन हुर्रियत लीडर सैयद अली शाह गिलानी  ओमर अब्दुल्लाह को नसिहत  देते हुए कहते है "ओमर अगर अपने राज काज में दिल लगाये तो अच्छा है ,यु एन मिलिट्री ओब्जेर्वेर की महत्ता यह है कि कश्मीरी इस मसले का एक पार्टी है .शिमला समझोते में कश्मीरियों को शामिल नहीं किया गया था " यानी हुर्रियत लीडरों के मेमोरंडम लेने के लिए यु एन ओब्जेर्वेर का ऑफिस कश्मीर में अलगाववादियों  को एक खास दर्जा दिलाता है .अगर यु एन का यह ऑफिस सिर्फ अलगाववादियों को नैतिक समर्थन देता है तो फिर यु एन के रेजोलुशन का यह घोर अपमान है .यु एन रेजोलुशन में भारत और पाकिस्तान सिर्फ दो पार्टी है जिसमे पाकिस्तान को अपने अधिकृत भू भाग को खाली करने और जनमत की पहल में भारत को सहयोग करने की बात है .इसमें भारत और पाकिस्तान को चुनने का सिर्फ दो विकल्प है . गिलानी साहब इस बात को जानते है कि आज़ादी का सवाल ही नहीं है और कश्मीरी कभी भी पाकिस्तान में विलय करने के लिए तैयार नहीं होगा .अगर पाकिस्तान यु एन रेजोलुशन को सम्मान करता तो कभी भी पाक अधिकृत कश्मीर में दुसरे रीजन  के लोगों को नहीं लाता  .गिल्गीत बल्तिस्तान को एक अलग राज्य का दर्जा नहीं देता .पाकिस्तान अपने अधिकृत कश्मीर को कभी चीन के हवाले करता है तो   कभी उसके तमाम संसाधनो को कब्ज़ा कर लेता है लेकिन कश्मीर के हुर्रियत लीडर भारत से यह अपेक्षा करते है कि वह यु एन रेजोलुशन का सम्मान करे .भारत यु एन में शिकायतकर्ता की हैशियत से गया था .वह पाकिस्तान के  कब्जे वाले कश्मीर के लिए इंसाफ चाहता था .इतिहास की इस भूल पर  भारत ने खुद पहल की थी और यु एन से अपनी शिकायत वापस ले ली थी .सवाल अपनी जगह दुरुस्त है कि जब शिकायत कर्ता अपने केस को वापस ले रखा है  फिर उस रेजोलुशन का क्या मतलब है ?.यु एन के जनरल सेक्रेटरी कई बार कह चुके है की कश्मीर पर यु एन का प्रस्ताव अप्रासंगिक हो चूका है .फिर भारत की ऐसी कौन सी विवशता है कि वह मिलिट्री ओब्जेर्वेर जैसे अपमान को 65 वर्षों से  झेल रहा है .

 1.50 अरब के देश में आज 60 से ज्यादा अरबपति है जबकि दुनिया में सबसे ज्यादा करोडपति इसी मुल्क में है .लेकिन इस मुल्क का जी डी पी 2 ट्रिलियन से कम है .क्रोनी कैपिटलिज्म के इस दौर में करोडपति -अरबपति, सरकार और शासन के फेवर से बनता है .भ्रष्ट व्यवस्था में सत्ता का इस्तेमाल महज कुछ लोगों के लिए हो रहा है .आम लोगों के लिए इसाफ दूर की कौरी है .जाहिर है समस्या में उलझे आम लोगों के बहस कश्मीर जैसे राष्ट्रीय मुद्दे गौण हो गए हैं .मीडिया लोगों में व्याप्त असंतोष को जानता है .मीडिया इस असंतोष को टी आर पी मानता है और हर मुद्दे को सरकार से अलग करके उस पर अपनी राय बनता है लेकिन जिस मुद्दे पर देश की राय बननी चाहिए ,जिस मुद्दे को लेकर  डिप्लोमाटिक पहल होनी चाहिए वहां  खामोश है .कश्मीर में पिछले साल 90 फीसद पोलिंग दर्ज करके अपने पञ्च सरपंच चुनने वाले लोगों की वाहवाही करते हम नहीं थकते लेकिन पछले वर्षों में 73 संविधान संशोधन के अनुरूप हक मांग रहे पञ्च -सरपंचो की और से देश ने मुश फेर लिया है .धरा 370 का हवाला देकर उन्हें लोकतंत्र की धारा में शामिल नहीं होने दिया जा रहा है .यु एन में भारत के राजदूत हरदीप पूरी को मेरा सलाम है जिसने आत्म सम्मान का हमें एक रास्ता दिखाया है .लेकिन उनकी इस पहल की चर्चा मीडिया में न के बराबर हुई .कश्मीर के विषय में जानने का देश को हक है .इसकी चर्चा आम लोगों में जरूरी है वरना इन 65 वर्षो में यह मुद्दा कुछ परिवारों के चश्मे से ही देखा गया है अब इस चश्मे को बदलने की जरूरत है कश्मीर मसले में  गणतंत्र की भूमिका बढाने की जरूरत है ..

टिप्पणियाँ

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