संदेश

2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पाकिस्तान से बात करना क्यों जरूरी है ?

चित्र
आओ फिर से दिया जलाएं भरी दुपहरी में अँधियारा ,सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़े ,बुझी हुई बाती सुलगाएँ आओ फिर से दिया जलाएं।। .. काबुल में मौजूद प्रधानमंत्री मोदी को अचानक वाजपेयी की ये कविता क्यों याद आई ?इसलिए कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन था या फिर काबुली वाला  देश में मोदी भारत -अफ़ग़ानिस्तान के पारम्परिक रिश्तो पर  "यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी " गाकर, आह्लादित हो उठे थे। महज एक ट्वीट का मेसेज देकर प्रधान मंत्री मोदी नवाज़ शरीफ से मिलने लाहौर चल पड़े थे ? या यह सोशल डिप्लोमेसी की नयी पहल सामने आई थी। जिस देश के प्रधानमंत्री पिछले ११ साल से यह तय नहीं कर पाये कि पाकिस्तान जाना चाहिए कि नहीं ,उसी देश में एक प्रधानमंत्री आज कबूल में ब्रेकफास्ट और लाहौर में लंच लेने के बारे में सोच रहा था। १९९९ से लेकर २००४ तक भारत -पाकिस्तान के रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने में पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने निरंतर प्रयास किया कारगिल जंग हो या पार्लियामेंट अटैक हर विषम परिस्थिति में एक धैर्यवान शासक का परिचय देते हुए वाजपेयी ने बातचीत का रास्ता खुला रखा

सहिष्णुता ,धर्मनिरपेक्षता सिर्फ सियासी जुमले है ?

चित्र
महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी बार बार सहिष्णुता  और अनेकता में एकता की महान परम्परा को याद दिलाकर यह बताने की कोशिश कर रहे है कि हम इस देश की मौलिक पहचान को भुला रहे है। यही बात हमारे कुछ इतिहासकार ,कुछ अकादमी सम्मान से सामनित लेखक ,वैज्ञानिक ,अभिनेता भी अपना सरकारी तमगा लौटाकर  बताने की कोशिश कर रहे हैं कि इसके लिए सिर्फ मोदी सरकार जिम्मेदार है। लेकिन इन तमाम बहस के बीच जम्मू कश्मीर सरकार का हलफनामा हमारे सेक्युलर सोच और सहिष्णुता की अवधारणा और निष्ठां पर सवालिया निशान लगा देता है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा देकर जम्मू  कश्मीर सरकार ने माना है कि साढ़े चार लाख निर्वासित पंडितो में सिर्फ एक परिवार अबतक कश्मीर लौटा है। २५ वर्षो से अपने ही मुल्क में निर्वासित जीवन जी रहे लाखो परिवार अगर घर लौटने की हिम्मत नहीं जुटा रहा है तो माना जायेगा कि सहिष्णुता ,धर्मनिरपेक्षता सिर्फ सियासी जुमले है ,इस मुल्क की सियासत इसके लिए कभी चिंतित नहीं हुई है। यह वही कश्मीर है जहाँ महात्मा गांधी को आशा की किरण दिखाई दी थी। यह वही कश्मीर था जहाँ भारत -पाकिस्तान विभाजन के दौर में भी हिन्दू

बीफ पर यह बहस बंद करो

चित्र
जम्मू कश्मीर एसेंबली का बाकया एक बार फिर मुझे कान के नीचे हाथ सहलाने को मजबूर कर दिया था। इंजीनियर रशीद के दर्द को सिर्फ मैं समझ सकता हूँ क्योंकि ऐसी शरारत के कारण मैंने भी जमकर कभी पिटाई खाई थी। बचपन में मैं मॉ की थाली में मछली डाल कर उसकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की थी ,बदले में मिला सौगात आज तक नहीं भुला पाया हूँ। मिथिला में खान -पान का प्रचलन कुछ खास है ,एक ही परिवार में कोई शाकाहारी है तो कोई मांसाहारी। लेकिन हर कोई हर की आस्था का सम्मान करता है। मैंने अपने वैष्णव माँ को चिढ़ाने की कोशिश की थी।  यही गलती हुर्रियत कांफ्रेंस के साबिक नेता और वर्तमान में एम एल ए इंजीनियर राशिद कर बैठे। कश्मीर के एम एल हॉस्टल में बीफ पार्टी का आयोजन करके मीडिया के कैमरे के  सामने चटकारा लेकर इंजीनियर राशिद चाहे जिस सेकुलरिज्म का तमाशा दिखा रहे हों ,लेकिन कश्मीर से विस्थापित रविन्द्र रैना को यह सेकुलरिज्म रास नहीं आया। रियासत जम्मू कश्मीर असेंबली  पहलीबार एक पंडित के उग्र रूप देखकर हैरान था.. जिस असेंबली में पिछले ३० वर्षो में आजतक कोई शांति प्रस्ताव नहीं लाया गया उस असेंबली में  रैना के एक थप्पड़

भारत की सॉफ्ट स्टेट की छवि और प्रधान मंत्री मोदी

चित्र
  क्या भारत पाकिस्तान में बनी अपनी सॉफ्ट स्टेट की  छवि तोड़ पायेगा,? शायद नहीं ,शायद हाँ।  नहीं इसलिए कि यह छवि भारत की संस्कृति बन गयी है।  हाँ ! इसलिए कि भारत की मौजूदा हुकूमत देश की बेहतर छवि बनाने के लिए ज्यादा उत्सुक है या यु कहे कि नेतृत्व इसके लिए संजीदा है। भारत -पाकिस्तान के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के बीच मीटिंग एक बार फिर  बिना एक कदम आगे बढे दम तोड़ गयी ।  जाहिर है अब यह माना जायेगा कि भारत अपने पोजीशन से समझोता करने को तैयार नहीं है।२०१४ में   दोनों मुल्को के बीच सचिव स्तर की मीटिंग इसलिए रद्द कर दी गयी थी कि पाकिस्तान अपनी चालाकी से बाज नहीं आ रहा था । शिमला एग्रीमेंट से लेकर लाहौर एग्रीमेंट तक भारत पाकिस्तान के बीच हर मसला द्विपक्षीय हल करने की इजाजत देता है फिर अलगाववादी लीडरो को तीसरा पक्ष बनाने की जींद पर पाकिस्तान क्यों अडिग है। क्या श्रीनगर के डाउन टाउन इलाके के कुछ पेड लीडरान (जैसा कि ए के दुल्लत अपनी चर्चित किताब में बता चुके है )  जिनकी सियासत महज एक कारोबार है ,कश्मीर के नुमाईंदे कहलाने का हक़ रखते है ? तो फिर १५० से ज्यादा एम एल ए -एम एल सी ,२० ,००० से

प्रधानमंत्री जी ! ये" मन की बात" ओनली इनकमिंग है

चित्र
 प्रिय प्रधानमंत्री जी  सादर , सत्ता  और चर्चा के शीर्ष पर रहते हुए आपको लगभग साल से ज्यादा हो गया है। इस बीच हमने कई बार आपकी  "मन की बात " सुनी। अच्छा लगा हमारे प्रधानमंत्री अपने दिल की बात और संवाद सीधे आमजन से कर रहे हैं। रविबार के दिन फुर्सत में लोग आपके मन की बात सुन कर चर्चा भी कर लेते हैं ,कुछ इसे ज्ञानवर्धक तो कुछ लोग इसे टाइम पास मानते है। १. ५० अरब की आवादी वाले देश में कौन क्या मतलब निकालता है यह आपकी सरदर्दी नहीं है ,लेकिन  ऐसा जरूर लगता है कि आपके इस मन की बात में एकतरफा संवाद हो रहा है सिर्फ इनकमिंग लाइन चालू है आउटगोइंग बंद रखा गया है। माना कि आपके पास जनमानस को जोड़ने के लिए प्रोग्राम का भण्डार है लेकिन आमजन को मेमोरी कार्ड में सॉफ्टवेयर उतना तगड़ा नहीं है कि अनवरत डौनलोड़ होता रहे।  प्रधानमंत्री जी लोग कहते है कि संवाद करने की आपके पास  अद्भुत कला है लेकिन ऐसा क्या  हो गया कि जिस अद्भुत कला का प्रदर्शन करते हुए आपने पहले देश के मीडिया पर अपना प्रभाव बनाया बाद में बिरोधियो की आवाज़ छीन ली। आज एक फर्जी इस्सू में आपके मंत्री मीडिया के सामने मिमिया रहे है औ

सी एम अखिलेश की मन की बात

चित्र
देश के सबसे कम उम्र और   सबसे बड़े  प्रदेश के सीएम अखिलेश यादव को इस बात का मलाल है कि उनके ही प्रदेश के गांवों में रहने वाले लोग उन्हें   नहीं पहचानते। युवा मुख्यमंत्री   अखिलेश ने कहा, "गांव के लोग तो मुझे पहचानते तक नहीं हैं।" मुख्यमंत्री कहते हैं कि कई मौके पर उन्हें इस कड़वी हक़ीक़त का सामना करना पड़ा है। आखिर इस रहस्योद्घाटन के पीछे सी एम का चिंतन   क्या है यह समझने की जरुरत है।  १. क्या गाँव के लोग इतने भोले हैं कि वे अपने सी एम तक  नहीं पहचानते ? २. क्या सी एम अखिलेश अपना दर्द  बताना चाहते हैं कि वो जिनके लिए इतना कर रहे है वे उन्हें जानते तक नहीं ? ३. या फिर सी एम अखिलेश यह बताना चाह रहे हैं कि समाजवादी सरकार का असली मुखिया मुलायम सिंह यादव है. वे सिर्फ नेताजी के आदेश पालक हैं।  राज्य के विपक्षी पार्टिया जब सी एम अखिलेश पर यह तंज करती है कि उत्तर प्रदेश में साढ़े चार मुख्यमंत्री है तो अखिलेश के हिस्से में आधा ही आता है। ।क्या इस स्थिति के लिए स्वयं नेताजी ,प्रो रामगोपाल ,शिवपाल यादव और आज़म खान जिम्मेदार है ? यकीनी तौर पर इससे इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन सव

कश्मीर पर यह बकवास बंद कीजिये

चित्र
अलगाववादी नेता मसरत आलम की रिहाई के बाद मचे सियासी घमासान ने यह साफ़ कर दिया है कि कश्मीर मामले में राजनेताओ के नज़रिये  में कोई   बदलाव नहीं आया है। मसले कश्मीर को लेकर लगातार नाकामी झेल चुकी कांग्रेस हर उस पहल का विरोध करेगी ,जिसे करने का साहस इस पार्टी की सरकार ने पहले नहीं दिखाया।  जाहिर है यह चुनौती बीजेपी सरकार और मोदी के लिए बड़ी है। मोदी सरकार को  आलोचना से ऊपर उठकर देश हित में फैसला लेने का जज़्बा दिखाना होगा । मसरत आलम २०१० में सबसे खतरनाक अलगाववादी लीडर के रूप में उभर कर सामने आया ,यह वह दौर था जब कश्मीर में अलगाववाद हासिये पर चला गया था। यह वह दौर था जब एक दो दशक के बाद  वादी में देशी विदेशी पर्यटकों का आंकड़ा १० लाख को पार कर गया था। अमन की नयी फ़िज़ा में कारोबार बुलंदियों पर था लेकिन मसरत आलम के हुड़दंगियों   ने सबकुछ बिगाड़ दिया था। यह वादी की अनोखी सियासत थी  कि ओमर अब्दुल्लाह की सरवराही वाली सरकार पर ११७ नौजवानो के क़त्ल का अंजाम लगा और वादी में एकबार फिर ""हम क्या चाहते आज़ादी और जिले जिले पाकिस्तान " गूंजने लगा। यह वह दौर था जिसमे मसरत आलम ने ओमर अब्दुल्लाह