बीफ पर यह बहस बंद करो
जम्मू कश्मीर एसेंबली का बाकया एक बार फिर मुझे कान के नीचे हाथ सहलाने को मजबूर कर दिया था। इंजीनियर रशीद के दर्द को सिर्फ मैं समझ सकता हूँ क्योंकि ऐसी शरारत के कारण मैंने भी जमकर कभी पिटाई खाई थी। बचपन में मैं मॉ की थाली में मछली डाल कर उसकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की थी ,बदले में मिला सौगात आज तक नहीं भुला पाया हूँ। मिथिला में खान -पान का प्रचलन कुछ खास है ,एक ही परिवार में कोई शाकाहारी है तो कोई मांसाहारी। लेकिन हर कोई हर की आस्था का सम्मान करता है। मैंने अपने वैष्णव माँ को चिढ़ाने की कोशिश की थी। यही गलती हुर्रियत कांफ्रेंस के साबिक नेता और वर्तमान में एम एल ए इंजीनियर राशिद कर बैठे। कश्मीर के एम एल हॉस्टल में बीफ पार्टी का आयोजन करके मीडिया के कैमरे के सामने चटकारा लेकर इंजीनियर राशिद चाहे जिस सेकुलरिज्म का तमाशा दिखा रहे हों ,लेकिन कश्मीर से विस्थापित रविन्द्र रैना को यह सेकुलरिज्म रास नहीं आया। रियासत जम्मू कश्मीर असेंबली पहलीबार एक पंडित के उग्र रूप देखकर हैरान था.. जिस असेंबली में पिछले ३० वर्षो में आजतक कोई शांति प्रस्ताव नहीं लाया गया उस असेंबली में रैना के एक थप्पड़ ने सेकुलरिज्म पर बहस छेड़ दी थी ।
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह कश्मीर की रिवायत को याद दिलाते हुए कहते है कि "कश्मीर के सेकुलरिज्म को गांधी जी ने सराहा था। यहाँ की गंगा -जमुनी तहजीब इसकी पहचान है। विभिन्न धर्मो के लोगो में धार्मिक सहिषुण्ता यहाँ की परंपरा रही है ,हर के मजहबी जज्बात को सम्मान करना चाहिए ". मैं रविन्द्र रैना की भावुकता को कही से भी जायज नहीं मानता हूँ लेकिन मेरा सवाल ओमर अब्दुल्लाह से जरूर है कि इंजीनियर राशिद को करोडो हिन्दुओ की भावना को सम्मान नहीं करना चाहिए? क्या सार्वजानिक जगह पर मजमा लगा कर मिडिया के सामने गाय मासं परोसकर रशीद साहब सेकुलरिज्म और कश्मीर की रिवायत का अपमान नहीं कर रहे थे ? कायदे से ओमर अब्दुल्लाह को इंजीनियर राशिद के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाना चाहिए। मुख्यमंत्री मुफ़्ती सईद कहते है "जिन्ना पार्टीसन के दौरान सबसे पॉपुलर लीडर थे लेकिन कश्मीर के लोगो ने सेक्युलर शेख अब्दुल्लाह का साथ दिया और भारत के साथ रहना पसंद किया " मुफ़्ती साहब बिलकुल सही फरमा रहे है ये कश्मीर के कुछ चुनिदा खानदानों ने सेकुलरिज्म को कुछ गहराई से समझा और अपने लिए इस रियासत को उपनिवेश बना लिया। बाँकी कश्मीर के वो लोग थे जिन्होंने पाकिस्तान के कबीलो को कश्मीर में घुसने नहीं दिया था वो इनसे कही ज्यादा सेक्युलर थे। ओमर अब्दुल्लाह, शेख अबुल्लाह खानदान की तीसरी पीढ़ी है जिसका कश्मीर पर ५० साल से ज्यादा हुकूमत रही है। सत्ता से लगभग दस वर्षो का सरोकार मुफ़्ती मोहम्मद सईद का भी है। क्या इन सेक्युलर खानदानों ने कभी जानने की कोशिश की हज़ारो विस्थापित कश्मीरी पंडित किस हाल में है ? तीन लाख से अधिक लोग जिन्हे कश्मीर की शानदार रिवायत से विस्थापित कर दिया गया, ,इनकी घर वापसी की कोई कोशिश रियासती सरकार से क्यों नहीं हुई ? विस्थापित पंडितो के दर्जनो सवाल है जिसका जवाब इन सेक्युलर बजीरे आला के पास नहीं है।
शायद इसलिए की सवाल भी कश्मीर का और जवाब भी कश्मीर का यह परंपरा रियासत में वर्षो से चली आ रही है। आवादी और क्षेत्रफल में कश्मीर जम्मू से छोटा है लेकिन मुख्यमंत्री कश्मीर का बनना तय है । आकर में लद्दाख सबसे बड़ा है और कश्मीर सबसे छोटा लेकिन एम एल ए कश्मीर से ज्यादा है क्योंकि शेख साहब सेक्युलर थे। आतंकवाद और अलगाववाद ने कश्मीर को एक एक ऐसे बड़े भाई का दर्जा दे दिया जिसके सामने लदाख और जम्मू बौने साबित होने लगे। लेकिन अमरनाथ श्रायण बोर्ड के मसले पर जब सवाल जम्मू से आने लगे तो पहली बार मुल्क ने यह जाना कि कश्मीर का मतलब जम्मू और लदाख से भी है। रविन्द्र रैना का वाकया जम्मू के जज्वात का इजहार है और यह बताता है कि यहाँ सिर्फ अब्दुल्ला और गिलानी के जज्बात नहीं चलेंगे बल्कि हरके जज्बात का सम्मान सीखना होगा तभी हम अपने आपको सेक्युलर कह सकते है। बीफ बैन और बीफ पर यह छिड़ी बहस आज हमें सभ्यता की याद दिला रही है। हमारी सभ्यता और सेकुलरिज्म दादरी में भी दम तोड़ती नज़र आती है तो इंजीनियर रशीद की बीफ पार्टी में हारती नज़र आती है। गाय को लेकर जिन इलाको सबसे ज्यादा हिंसा हो रही है उन इलाको में ही कई हिन्दू -मुस्लिम कारोबारी साझा स्लॉटर हाउस चला रहे है। जाहिर है हमारी जज्वात शायद पहले ही मर चुकी है ये नेता हमें कभी सेकुलरिज्म की तो कभी भाईचारे की जज्वात से आंदोलित कर रहे है।
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