उत्तर प्रदेश और "माया" की सियासत


" माया" जिसे भारतीय परम्परा में कभी भ्रम तो कभी देवी दुर्गा तो कभी भगवान बुध की माता के रूप में सम्बोधित किया जाता है लेकिन सियासत में माया सिर्फ धन और भ्रम के रूप में प्रचलित है। माया जिसका  सरोकार वोट से है ,सत्ता से है ,व्यवथा से है और तथाकथित सामाजिक न्याय से भी है। यह कोई इज्म या वाद से बंधी  नहीं होती बल्कि मौके और दस्तूर से इसकी व्याख्या की जा सकती है। तो क्या उत्तर प्रदेश की मौजूदा सियासत सिर्फ माया के इर्द गिर्द घूमती है ? 

मंडल- कमंडल के सियासी बवंडर का जोर कमोवेश बिहार और उत्तर प्रदेश में कायम है ,सत्ता पाने का इससे आसान तरीका इतिहास में इससे पहले कभी ईजाद नहीं किया गया था। कांग्रेस पार्टी के दिग्गज राजनेता अभी भी  इन प्रदेशों में अपनी जड़ खोजने की भरपूर कोशिश कर रहे है लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि  ऐतिहासिक भूल ने इनके जड़ो पर मट्ठा डाल दिया है। बहरहाल  माया की चर्चा करते है . ..बी एस पी के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्या पार्टी को बाय - बाय करने के साथ ही मायावती पर जोरदार आरोप लगाते है " ये दलित की नहीं दौलत की बेटी है ,बी एस पी में टिकट की बोली लगती " यह पहलीबार नहीं था जब ये विशेषण मायावती के लिए गढ़े जा रहे थे , बी एस  पी  की "माया "से निकले हर नेता ने  इसी अंदाज से खुली हवा में सांस लेने की बात की है... लेकिन मायावती हो या मुलायम उनके आय से अधिक सम्पति का मामला सी बी आई /आई टी नहीं सुलझा पाई फिर ये बेचारे युगल किशोर ,स्वामी जैसे लोगों  का आरोप  नक्कार खाने में तूती की आवाज़ ही बन कर रह गई है। . लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या दूसरे दलों में टिकट मेरिट के आधार पर दी जाती है ?

 ये उत्तर प्रदेश की सियासी माया है जहां पांच साल की सियासत में कंगले भी अरबपति  बन गए है। लेकिन माया की चर्चा सिर्फ मायावती के लिए होती है क्योंकि वह सफाई महोत्सव के जरिए अपने बैवभ का भोंडा प्रदर्शन नहीं करती ,वो अपने किसी रामबृक्ष को सरकारी जमीन पर कब्जा के लिए नहीं उकसाती। वैभव का सरोकार सिर्फ मायावती से है यही इस पार्टी का वसूल है। 
"उम्मीदों  का प्रदेश उत्तर प्रदेश" को लेकर वाकई अखिलेश यादव उत्साहित हैं। विकास को लेकर वे अपनी अलग छवि बनाने के लिए संजीदा भी है, लेकिन यू पी के  साढ़े तीन मुख्यमंत्री  के आरोप से वे अबतक उबर नहीं पाए। यानी यह यू पी का ही समाजवाद है जिसमे एक परिवार के 43 लोग सीधे सरकार और सियासत से जुड़े है।सुश्री  मायावती कहती है एक परिवार के बच्चे के बच्चे और उनके बच्चों ने सत्ता हथिया ली है " ये सामाजिक न्याय की देन है ठीक उसी तरह जैसे मायावती पार्क और अपनी मूर्ति लगवाकर उसे प्रेरणा स्थल का नाम देती है।  लेकिन सवाल यह है कि दोनों के राज में करोड़ो अरबो का घोटाला सामने आता है लेकिन आजतक न तो मायावती ने मुलायम  सिंह के खिलाफ कोई केस दर्ज की नहीं मुलायम और अखिलेश ने कभी मायावती के भ्रष्टाचार के खिलाफ कभी मुंह खोला। 

राज्य सरकार के खिलाफ लोगो में गुस्सा  है कमोवेश यह गुस्सा केंद्र सरकार के खिलाफ भी है । सियासी पंडित इसे एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर बताते है लेकिन ये गुस्सा कानून व्यवस्था को लेकर है ,,अखिलेश के खिलाफ   गुस्सा नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार को लेकर है। जातीय और साम्प्रदायिक गुंडागर्दी को मिली छूट को लेकर है ,तो क्या यह बी जे पी के लिए मौका है ? शायद पार्टी ने ये गलतफहमी पाल ली है ,अमित शाह और शीर्ष नेतृतव का  चुनावी लहजा वही है जो कमोवेश बिहार में था।  पार्टी अध्यक्ष अमित शाह उत्तर प्रदेश में उसी तरह उत्साहित है जो कमोवेश जंगल राज पार्ट 2  को लेकर बिहार में थे।  बिहार की  तरह यू पी में  भी बी जे पी जातीय  समीकरण बिठानी लगी है।  ये  उत्तर प्रदेश की माया है जिसमे लोग जाति के नाम  पर सम्प्रदाय के नाम पर एक दूसरे से लड़ने में कोई कोताही नहीं छोड़ते। यही  वजह है क़ि ,1917  के असेम्ब्ली चुनाव में हर पार्टी का जोर सामाजिक न्याय पर ही है ,राजनेता ये मान  बैठे है  कि , विकास से यहां  लोगों का  कोई लेना देना नहीं है।  सच ये भी है कि  गरीबी के नाम पर यहां कभी भी साझा लड़ाई नहीं लड़ी गई न ही भ्रष्टाचार कभी यहाँ मुद्दा बना  .. जाहिर है इस बार भी उत्तर प्रदेश में माया की सियासत की ही ज़िंदाबाद होगी। " माया "किसकी होगी यह कहना अभी मुश्किल है।  

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