और बुरहान तुम चले गये .....
बुरहान तुम्हारे जाने का बहुत अफसोस है ! ठीक वैसे ही अफसोस मुझे तब हुआ था जब लोग तुम्हे कश्मीर में हिज़्ब के पोस्टर बॉय कहने लगे थे। अबतक लोग यह मानते थे कि गरीब और अनपढ़ लोग ज्यादा वल्नरेबल होते है जिन्हे कुछ चालक लोग आसानी से बरगला सकते है, लेकिन तुम तो एक पढ़े -लिखें खानदान में पैदा लिया अच्छी तालीम पाई , स्थानीय कॉलेज के प्रिंसिपल तुम्हारे अब्बाजान मुजफ्फर अहमद वानी ने कभी सोचा भी न होगा कि अपने क्लास का टॉपर बुरहान कभी हिज़्ब का बंदूक उठा लेगा। अफसोस इस बात को लेकर भी है कि तुम्हारे तंजीम हिज़्बुल मुजाहिदीन के सरबरा सैयद सलाहुद्दीन ने अपने किसी बच्चे को मिलिटेंट नहीं बनाया ,उन्हें बंदूक से दूर रखा और तुम ने अपने जैसे दर्जनों नौजवानों को बंदूक उठाने के लिए प्रेरित किया। माना कि तुम्हे सोशल मीडिया/ इंटरनेट का शौक था ,कश्मीर में इससे पहले किसी मिलिटेंट ने अपने ग्रूप का सेल्फी फेसबुक पर नहीं डाला था। कश्मीर में कुछ लोग तुम्हे हीरो मान बैठे थे,और यह तुम्हारी गलतफहमी थी कि तुम सेना के साथ जंग लड़ रहे थे।बांग्लादेश कैफे हमले में मारे गए 20 साल का आतंकवादी रोहन इम्तियाज़ को भी तुम्हारी तरह इंटरनेट और फसबूक चैटिंग का शौक था। आज उसके वालिद को अफसोस है कि इंटरनेट ने काबिल बच्चे को खतरनाक आतंकवादी बना दिया। तुम्हे खोकर क्या ऐसा ही अफसोस हमे नहीं करना चाहिए?
आखिर यह जानने की तुमने कभी कोशिश नहीं की कश्मीर में तुम्हारी दुश्मनी किससे है , क्या यहाँ सीरिया ,इराक़ ,फिलिस्तीन जैसी स्थिति है ? क्या यहाँ लोगो को किसी बात के लिए प्रतिबंध है ? तुम्हारे ही ही बालदेन और समाज की यहां चुनी हुई सरकार है फिर किस आज़ादी के लिए तुम जंग लड़ रहे थे ? आज बुरहान की मौत के बाद कश्मीर में अलगाववाद की सियासत में एका दिखाई जा रही है। लेकिन इस दौर में यह बताने की भी जरूरत थी कि बंदूक की सियासत ही अलगाववाद की लाइफलाइन रही है। . किस बंदूक से कौन मरा यहां रहस्य की बात हो जाती है। बुरहान तुम इस रहस्य को नहीं समझ पाए और तुमने हुर्रियत लीडरों के मास्टर होने दम्भ पाल लिया था । जबकि वे लोग तुम्हे मोहरा बनाकर अपनी सियासी रोटी सकते रहे।
पिछले दिनों हुर्रियत कान्फेरेंस के साबिक चेयरमेन अब्दुल गनी बट का एक खुलासा सबको चौका दिया था। ,उन्होंने कहा था " मारे गए हमारे हुर्रियत के लीडर वाकई मे शहीद है या फिर हमारी अंतर्विरोध के साजिश के शिकार " .हुर्रियत कान्फेरेंस के चेयरमेन ओमर फारूक और बिलाल गनी लोन की मौजदगी मे प्रो बट ने यह सवाल उठाया था कि इनके पिता की हत्या किसने की थी ?उन्होंने जोर देकर कहा कि झूठ बोलने की आदत छोड़कर हम यह सच बताये कि मौलवी फारूक ,प्रो गनी लोन और प्रो अहद जैसे लीडरो की हत्या हम मे से ही किसीने की थी। इनकी हत्या किसी सुरक्षा वालों ने नही की थी। हुर्रियत लीडरो की हत्या की एक लम्बी फेहरिस्त है मौलवी मुश्ताक ,पीर हिसमुदीन ,शेख अजीज़ रफीक शाह ,माजिद डार इनकी हत्या के बारे मे यही बताया गया कि अज्ञात बन्दुक धारियों ने इनकी हत्या दी । . इस दौर मे मौलवी मिरवैज ओमर फारूक पर भी आतंकवादियों का कई बार हमला हुआ है , वो कौन थे ? किस तंजीम थे , आज भी रहस्य बना हुआ है। लेकिन सियासत ऐसी कि हुर्रियत लीडर आज प्रचण्ड एकता दिखा रहे रहे है।
आखिर यह जानने की तुमने कभी कोशिश नहीं की कश्मीर में तुम्हारी दुश्मनी किससे है , क्या यहाँ सीरिया ,इराक़ ,फिलिस्तीन जैसी स्थिति है ? क्या यहाँ लोगो को किसी बात के लिए प्रतिबंध है ? तुम्हारे ही ही बालदेन और समाज की यहां चुनी हुई सरकार है फिर किस आज़ादी के लिए तुम जंग लड़ रहे थे ? आज बुरहान की मौत के बाद कश्मीर में अलगाववाद की सियासत में एका दिखाई जा रही है। लेकिन इस दौर में यह बताने की भी जरूरत थी कि बंदूक की सियासत ही अलगाववाद की लाइफलाइन रही है। . किस बंदूक से कौन मरा यहां रहस्य की बात हो जाती है। बुरहान तुम इस रहस्य को नहीं समझ पाए और तुमने हुर्रियत लीडरों के मास्टर होने दम्भ पाल लिया था । जबकि वे लोग तुम्हे मोहरा बनाकर अपनी सियासी रोटी सकते रहे।
पिछले दिनों हुर्रियत कान्फेरेंस के साबिक चेयरमेन अब्दुल गनी बट का एक खुलासा सबको चौका दिया था। ,उन्होंने कहा था " मारे गए हमारे हुर्रियत के लीडर वाकई मे शहीद है या फिर हमारी अंतर्विरोध के साजिश के शिकार " .हुर्रियत कान्फेरेंस के चेयरमेन ओमर फारूक और बिलाल गनी लोन की मौजदगी मे प्रो बट ने यह सवाल उठाया था कि इनके पिता की हत्या किसने की थी ?उन्होंने जोर देकर कहा कि झूठ बोलने की आदत छोड़कर हम यह सच बताये कि मौलवी फारूक ,प्रो गनी लोन और प्रो अहद जैसे लीडरो की हत्या हम मे से ही किसीने की थी। इनकी हत्या किसी सुरक्षा वालों ने नही की थी। हुर्रियत लीडरो की हत्या की एक लम्बी फेहरिस्त है मौलवी मुश्ताक ,पीर हिसमुदीन ,शेख अजीज़ रफीक शाह ,माजिद डार इनकी हत्या के बारे मे यही बताया गया कि अज्ञात बन्दुक धारियों ने इनकी हत्या दी । . इस दौर मे मौलवी मिरवैज ओमर फारूक पर भी आतंकवादियों का कई बार हमला हुआ है , वो कौन थे ? किस तंजीम थे , आज भी रहस्य बना हुआ है। लेकिन सियासत ऐसी कि हुर्रियत लीडर आज प्रचण्ड एकता दिखा रहे रहे है।
.बन्दूक ने कश्मीर मे न केवल सियासी लीडरों की भीड़ खड़ी की बल्कि अकूत पैसे की बरसात भी की। गाँव के झोपड़ियों में रहने वाले कई लीडरों के श्रीनगर और दिल्ली मे आलिशान बंगले देखे जा सकते है। तथाकथित आज़ादी के नाम पर पैसे की यह बरसात कश्मीर मे आज भी जारी है। बन्दूक की बदोलत जिसने राजशाही सुख सुविधा बटोरी है क्या वे कश्मीर मे बन्दूक की अहमियत को ख़तम होने देंगे ?.बुरहान हुर्रियत के इस रहस्य को समझ नहीं पाया। बुरहान वानी को शहीद के तौर पर पेश करके अलगववादी और आतंकवादी तंजीम आज कश्मीर में जज्वात को भड़काने की जी तोड़ कोशिश कर रहे है,। 1990 के बाद पहलीबार कुछ मस्जिदों से आजादी के नारे लगाए गए ,जज्वात भड़काने की यह पहली कड़ी सामने आई है लेकिन सबसे बड़ा इम्तिहान मकामी इंतजामिया के लिए है जिन्हे हर हाल लोगों से संवाद बनाए रखना जरूरी है। अत्याधुनिक गैजेट से लैश कश्मीर में हमारे नौजवान बार बार क्यों गुमराह हो रहे है यह भी हम सबका आत्मचिंतन का विषय हो सकता है ।
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