हमें चाहिए इस कश्मीर से आज़ादी.
इंसानियत ,जम्हूरियत ,कश्मीरियत के घिसे पिटे दर्शन के साथ वादी पहुंची सांसदों की हाई प्रोफाइल टीम ठीक वैसी ही थी जैसी गोरखपुर में हर साल ब्रेन फीवर से २००-४०० बच्चो की मौत के बाद देशी-विदेशी एक्सपर्ट टीम वहां पहुँचती है। न तो आजतक पूर्वांचल के ११ जिलों में इनशेफलाइटिस फैलने की वजह तलाशी गयी न ही कश्मीर में रोग को ढूंढा गया कि ये पत्थर चलानेवाले कौन लोग है और इनकी बीमारी क्या है ? हरबार की तरह इस बार भी कुछ बुद्धिजीवी और विवेकशील सांसद हुर्रियत लीडरों से मिलकर अपनी प्रखर भूमिका चाहते थे ,लेकिन पथरवाजों के डर से हुर्रियत के लीडरों ने फोटो ओप का मौका नहीं दिया। पथरवाजो का नारा है "हम क्या चाहते आज़ादी किससे आज़ादी यह साफ़ नहीं है लेकिन 58 दिन से बंद -हड़ताल और कर्फ्यू से पीड़ित लोगों को पूछिये वो मांग रहे हैं हमें चाहिए इस कश्मीर से आज़ादी।
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मीडिया में खबर सिर्फ पिलेट गन की होती है ,कश्मीर पर तथाकथित जानकार अलगाववादी लीडरों से बातचीत की पुरजोर सलाह देते है और हुकूमत चार्वाक दर्शन को मानकर अँधेरा छटने का इंतज़ार कर रही है। मेहबूबा अपना जनाधार खोने के डर से लोकल पंचैती में विदेशी तर्क का सहारा ले रही है ,ओमर साहब अपने को साबित करने के लिए इसे बेहतर मौका मान रहे है। हुर्रियत के लीडरो की हालात कमोवेश उस खाप पंचायत जैसी है जिसका सुनता कोई नहीं है लेकिन चौधरी होने का दम्भ वो मीडिया में रखता है। किसी के घर में चाहे कितना बड़ा भी शोक /मातम हो वह ५८ दिनों तक अपना सब कुछ छोड़ कर मातम नहीं मना सकता तो क्या एक लोकल रोमांटिक आतंकवादी बुरहान वानी की मौत से लोग इतने आहात है कि अपने छोटे छोटे बच्चो को पत्थर मारने के लिए उकसा रहे है ?
कश्मीर के लोगों को पता है कि नेशनल -इंटरनेशनल मीडिया की सुर्खियों में होना भी उनकी परेशानी की वजह है। कश्मीर केंद्रित सियासत से कुछ लोग जरूर मालामाल हुए लेकिन आमलोगों की हालात वैसी ही है जैसे जम्मू और लदाख के लोगों की है। कश्मीर के लोगों ने पिछले २० साल के आतंकवाद को देखा है, अपने अजीजो को खोने का दर्द देखा है , कश्मीर में जिहाद करने वाले सैयद सलाहुद्दीन के बच्चो को सरकारी अफसर बनते देखा है। कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा देने वाले गिलानी साहब को सरकारी स्कूल टीचर से करोड़पति बनते हुए देखा है ,उनके बच्चो की आला स्कूल में तालीम लोगों ने देखी है ,उनकी सरकारी आला नॉकरी देखी है। ..
कश्मीर के लोग इन जज्वात के नुमाइंदे को अच्छी तरह जानते हैं। हर एलक्शन में हुर्रियत और आतंकवादियों के बॉयकॉट को नज़रअंदाज़ करके वो भारत की जमहुर्रियत को मजबूत करते हैं। .. लेकिन वो कौन सी दुरी और मजबूरी है कि जम्हूरियत जिंदाबाद कहनेवाले लोग हम क्या चाहते आज़ादी की भीड़ में शामिल हो जाते हैं? यह पालिसी फेल होने का नमूना है। यह पांच फीसद बनाम पिचानवे फीसद का का मामला नहीं है। यह जमहुर्रियत फेल होने का मामला है। सत्ता में आमलोगों की भूमिका और स्थनीय निकायों को अधिकार देकर जमहुर्रियत को मजबूत किया जा सकता है। ओमर अब्दुल्लाह की हुकूमत में १०० से ज्यादा पंचायत प्रधान मारे गए ,अगर उस वक्त हमारे सांसद इसकी चिंता किये होते ,कोई प्रतिनिधिमंडल कश्मीर गया होता तो शायद आज ७० मासूम नहीं मरते। जम्हूरियत मजबूत कीजिये ,कश्मीरियत और इंसानियत कश्मीर के जर्रे जर्रे में मौजूद है। ..
टिप्पणियाँ
why Omar could not help panchayats in Kashmir. G.K Pillai says, Twitter-hero Junior Abdullah was afraid of his MLAs !!
http://bestofindiarestofindia.blogspot.in/.../omar-tried...