चिनगारी का खेल बुरा होता है...

चार बांस चौबीस गज ,अंगुल अष्ट प्रमान 
ता ऊपर सुल्तान है ,चुको मत चौहान....चंदबरदाई ने यह संकेत  पृथ्वीराज को महमूद गोरी को मारने के लिए दिया था और अंधे कर दिए जाने के वाबजूद चौहान आतंकी सुल्तान का खात्मा कर दिया था। यह बीरो की धरती है यहाँ नगारे बजा के जंग नहीं लड़ी जाती ,यह इस देश का स्वाभिमान है कि वह अपनी लड़ाई खुद लड़ लेता है। इंडिया फर्स्ट लोगों ने यह  सीख किसी राजनेता से नहीं ली है बल्कि यह इसके स्वाभाव में है चाहे वह किसी जाति और मजहब से हो। फिर वर्षो से जारी पाकिस्तान के अघोषित युद्ध का जवाब हम क्यों नहीं ढूढ पाते ?  इस उहापोह की स्थिति में राष्ट्र कवि दिनकर जरूर याद आते है
 "ये देख गगन मुझमे लय है
ये देख पवन मुझमे लय है,मुझमे विलीन झनकार सकल
मुझमे लय है संसार सकल,अमरत्व फूलता है मुझमे,संहार झूलता है मुझमे..याचना नहीं अब रण होग.....जीवन जय या की मरण होगा.अटल बिहारी वाजपेयी दिनकर जी के बड़े प्रशंसक थे ..युद्ध की ऐसी स्थिति अटल जी के सामने भी आयी लेकिन उन्होंने पाकिस्तान के लिए अलग तर्क गढ़ा... इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो, चिनगारी का खेल बुरा होता है । औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है ।धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो ।
हमलो से, अत्याचारों से, संहारों से भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो ।..\


यह सिर्फ अटल जी कविता नहीं थी बल्कि उनका कन्विक्शन था... नेहरू से लेकर इंदिरा तक अटल बिहारी से लेकर नरेंद्र मोदी तक हर दौर में इस देश ने पाकिस्तान के विध्वंशक/निगेटिव  चेहरे को ही देखा है। हर दौर में राजनेताओ ने इसका डिप्लोमेसी और  जंग  से जवाब दिया   है।  आज भी  पाकिस्तान ५० के दशक  में खड़ा है और बैनलअकुयामी मदद पर आश्रित है  और भारत एक बड़ी आर्थिक ताकत बनकर विकसित देशो को टक्कर दे रहा है। बटबारे के अभिशप्त यह दो भाइयो की कहानी है  २४ घंटे चलने वाला चैनल भले ही आज इंडिया पाकिस्तान को राफेल और ऍफ़ १६  तुलना करके मुल्क को जंग के लिए उकसा रहे हों लेकिन नीति  निर्माता कुछ और सोच रहे हो.. .... यह कौन जनता है। भारत को इन्तजार का सब्र है।  

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