नोटबंदी : देश में सियासत के तर्क और अर्थ दोनों बदल जाएंगे


कालेधन के खिलाफ अभियान  को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश  कुमार शेर की  सवारी मानते हैं ,वे मानते हैं कि मोदी सरकार के इस फैसले से जनसमूह की भावना जुडी हुई है।ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी लगभग ऐसा ही विचार रखते हैं  लेकिन नीतीश जी के सत्ता के साथी  लालू जी माया ,मुलायम , ममता  ,केजरीवाल और कांग्रेस के साथ खड़े  है। ममता जी के बंगाल में नोटबंदी के खिलाफ एक भी रैली सामने नहीं आयी है न ही लोगों का विरोध केरल,कर्नाटक,नार्थ ईस्ट के राज्यों और त्रिपुरा से सुना गया है. ममता दिल्ली में केजरीवाल के साथ रैली कर रही है तो कांग्रेस सहित दूसरे राजनीतिक  दल संसद के अंदर प्रदर्शन कर रहे हैं।

विमुद्रीकरण के बाद असल बात तो यह है कि आज अपनी सियासत जिन्दा रखने  के पीछे लीडरों के पास  सही तर्क नहीं है ।यही वजह है कि संसद के अंदर और बहार विरोध करने वालों की अलग अलग जमात हैं।
देश के आम अवाम राष्ट्रहित में इसे एक बड़ा फैसला मानकर  एटीएम /बैंक के लाइन में खड़े है, हालाँकि अब जमीनी हालात में काफी तबदीली आयी है  लेकिन सियासी लीडर जनता का  नाम लेकर  संसद ठप्प कर रहे है।सरकार हर दिन लोगों के हित में प्रक्रिया को आसान बना रही है लेकिन हंगामे के कारण संसद चल नहीं रही है। जिसमे नुक्सान आम अवाम का ही है । असल में यह सियासी जंग फील इन  द ब्लैन्कस के लिए है..लोगों का मानना है कि ये सियासी जंग राष्ट्रीय नेता के रूप में पहचान बनाने का निजी संघर्ष है..  यकीन मानिये अगर नोटबंदी से ब्लैकमनी का १० लाख करोड़ रुपया सरकार के खजाने में आ जाता है ,जिसकी शुरुआत हो चुकी है तो देश में सियासत के तर्क और अर्थ दोनों बदल जाएंगे।  इन्तजार कीजिये..

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