सियासी समुद्रमंथन और स्वच्छ भारत अभियान
भारतीय राजनीति मे समुद्रमंथन का दौर जारी है। अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ उन्ही के सबसे करीबी मंत्री कपिल मिश्रा सत्याग्रह कर रहे है तो कपिल मिश्रा के खिलाफ आप के विधायक संजीव झा धरना दे रहे हैं। अन्ना आंदोलन के कोख से पैदा हुए नवजात आन्दोनकारी भ्रष्टाचार मिटाते मिटाते खुद भ्रष्टाचार के दल दल में फंस गए हैं। ठीक वैसे ही जैसे जे पी की सम्पूर्ण क्रांति के कोख से पैदा हुए आंदोलनकारियो में कइयों ने भ्रष्टाचार की ऐसी कंपनी बनायीं जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी मालामाल हो रहे हैं। जिस सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता को लेकर बिहार और उत्तर प्रदेश में राजनितिक आंदोलन चला वह कब सियासी पार्टी से प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदल गयी यह उसके शेयरहोल्डर भी नहीं समझ पाए। आज यू पी में एक भ्रस्टाचारी दूसरे भ्रष्टाचारी को बेपर्दा करने में लगे हैं।देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस आज भ्रष्टाचार को लेकर इतना विवश और लाचार है कि अपने तमाम वकील प्रवकताओ को दामाद और आलाकमान की साख बचाने के लिए लगा दिया है।
2014 में इसी सियासी और आर्थिक भ्रष्टाचार के नाम पर नरेंद्र मोदी सत्ता में आये थे। सियासी समुद्रमंथन के दौर में देश के राजनीतिक दलों का चरित्रहीन चेहरा आज लोगों के सामने है।लोग अब निर्णय ले रहे हैं तो कुछ लोग स्वयं मूल्यांकन के बजाय ई वी एम को को दोषी करार दे रहे हैं। तीन साल के अपने कार्यकाल में पी एम मोदी ने एक निर्णायक सरकार का एहसास कराया है ,लेकिन अच्छे दिन का संकल्प तबतक पूरा नहीं होता जबतक भ्रष्टाचार सिर्फ खबर न बनकर सजा के रूप में सामने नहीं आता। स्वच्छ भारत अभियान में बाहर शौच करने वाले या गंदगी फ़ैलाने वाले लोग उतने क़सूरबार नहीं हैं जितने वे लोग जिन्होंने अपनी सियासी गंदगी से देश की व्यवस्था को गन्दा कर दिया है। 2019 तक देश ओ डी एफ हो जायेगा लेकिन क्या इस देश से भ्रष्टाचार की गंदगी दूर हो पायेगी। यह बड़ा सवाल है। vinod mishra
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