सिर्फ एक रूपये में पाकिस्तान चित्त !
सिर्फ एक रूपये में पाकिस्तान चित्त ! डिप्लोमैसी का यह अबतक का सबसे बड़ा सर्जिकल स्ट्राइक था। यकीन तो मुझे भी नहीं होता लेकिन सच तो यही है। महज एक रुपया फीस लेकर भारत के वकील हरीश साल्वे ने पाकिस्तान की डिप्लोमैसी को धूल चटा दी है। पिछले 50 वर्षों में यह पहला मौका है जब पाकिस्तान के हॉक डिप्लोमैसी को भारत की मोदी सरकार ने करारा जवाब दिया है। पाकिस्तान में मीडिया,ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट ,फॉर्मर डेपलमैट्स ,साबिक जज ,हॉकिंस जनरल एक दूसरे को गरिया रहे हैं "आसमां जहांगीर पाकिस्तानी हुकूमत से पूछती हैं ,मूर्खों ! कुलभूषण को कौंसिलर एक्सेस क्यों नहीं दिया ? कल हम दुनिया से क्या शिकायत करेंगे। एक डिप्लोमेट्स पूछता है आखिर इंटरनेशनल कोर्ट में गए क्यों ?अपने पैरों पर पाकिस्तान ने खुद कुल्हाड़ी मारी है। पहलीबार पाकिस्तान को एक जोर का झटका लगा है लेकिन धीरे से नहीं बल्कि कान के नीचे झन्ना दिया है।
पहलीबार पी एम मोदी ने दुनिया में बनी भारत की "सॉफ्ट स्टेट"वाली छवि को तोडा है। पाकिस्तान की फौजी इंतजामिया की यह जीद थी कि कुलभूषण के बहाने वह भारत को आतंकवादी समर्थक देशों की लाइन में खड़ा कर देगा। यानी पाकिस्तान की मिलिट्री कोर्ट ने कुलभूषण को भारत का जासूस और आतंकी घटनाओ में शामिल होने का आरोप लगाकर फांसी की सजा सुना दी। नवाज शरीफ की हुकूमत कभी कुलभूषण को निर्दोष बताती थी तो कभी उसके खिलाफ सबूत के तौर पर वीडियो दिखाने लगती थी। लेकिन अंतरराष्ट्रीय न्यायलय ने न तो कुलभूषण को जासूस माना न ही पाकिस्तान की दलीलों की अहमियत दी। उल्टा यह नशीहत भी दे दी सभ्य समाज में रहना है तो इंसानी कानूनों को मानना होगा। अब जबतक इंटरनेशनल कोर्ट में यह मुकदमा चलेगा ,तबतक कुलभूषण का पाकिस्तान कुछ बिगाड़ नहीं सकता।अगर उसने ऐसा कुछ भी किया तो पाकिस्तान खुद ब खुद पूरी दुनिया में एक झूठा मुल्क के तौर पर बेनकाब होगा। यही वजह है पाकिस्तान में हर कोई एक दूसरे पर बातों की लात बरसा रहा है।
शिमला एग्रीमेंट से लेकर लाहौर एग्रीमेंट तक भारत पाकिस्तान के बीच हर मसला द्विपक्षीय हल करने की इजाजत देता है। यही दलील पाकिस्तान इंटरनेशनल कोर्ट में भी दे रहा था कि हमारे अँगने में तुम्हारा क्या काम है.लेकिन हर बार पाकिस्तान कश्मीर के मसले पर यू एन में भारत को खींचने की कोशिश करता है , और अलगाववादी लीडरो को तीसरा पक्ष मानकर कश्मीर में अपनी भूमिका बढ़ता है । क्या श्रीनगर के डाउन टाउन इलाके के कुछ पेड लीडरान , जिनकी सियासत महज एक कारोबार है ,कश्मीर के नुमाईंदे कहलाने का हक़ रखते है ? तो फिर 150 से ज्यादा एम एल ए -एम एल सी ,30 ,००० से ज्यादा स्थानीय निकायों के चुने हुए नुमाइंदे इसलिए नुमाईंदे नहीं कहलायेंगे क्योंकि उन्हें जम्मू कश्मीर के अवाम ने चुना है पाकिस्तान ने नहीं। और यह बात अबतक हमारा मुल्क दुनिया को बताने में नाकामयाब रहा है ।इंटरनेशनल कोर्ट के बहाने पहलीबार भारत ने यह साबित किया है कि पाकिस्तान के हॉक डिप्लोमैसी का तोड़ मोदी के पास है। सरल भाषा में कहे पाकिस्तान के हर मर्ज की दवा अब भारत के पास है।
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