तीन साल मोदी सरकार और कश्मीर

125 करोड़ देशवासियों के लिए तीन साल मोदी सरकार का अनुभव अलग अलग हो सकता है। अलग अलग राज्यों में इसकी लहर भी अलग अलग हो सकती है। लेकिन इस बात पर सबकी राय एक हो सकती है कि "देश बदल रहा है" ,कश्मीर और पाकिस्तान का जिक्र छोड़ दें तो "आगे भी बढ़ रहा है "। सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर नोटबंदी जैसे " कड़े फैसले और बड़े फैसले "लेकर पीम मोदी ने लीक से हटकर चलने का जज्वा दिखाया है। "सबका साथ सबका विकास " की सच्चाई को दिल्ली की उज्मा अहमद से बेहतर कौन बता सकता ? जिसे मोदी सरकार ने पाकिस्तान के मौत के कुंए से बाहर निकाल लाया है । लेकिन 30 साल से अपने देश में निर्वासित जी रहे कश्मीरी पंडित /लोगों की घर वापसी क्यों नहीं हो पायी यह सरकार के सामने बड़ा सवाल है। खुले में शौच जैसे मुद्दे को गंभीर मसला बनाकर मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान छेड़ दिया तो लाखों गाँव और हजारो शहर ओ डी एफ हो चुके हैं। लेकिन कश्मीर को लेकर ऐसा जनअभियान क्यों नहीं बन पाया ।

वरिष्ठ कोंग्रेसी लीडर मणि शंकर अय्यर की टीम और बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा का कश्मीर दौरा , हो सकता है कि संवाद की पहल खोजने में एक ईमानदार प्रयास हो। लेकिन कश्मीर समस्या का हल ढूंढने के लिए सिर्फ हुर्रियत लीडरो के दरबाजे खटखटाये ये ईमानदार पहल कतई नहीं हो सकती। इससे पूर्व ऐसी ही सियासी पहल श्री श्री रविशंकर से लेकर दर्जनों लोग कर चुके है जिनका सियासी सफर श्रीनगर के डॉन टाउन से शुरू हुआ और डल लेक आकर ख़तम हो गया। इस देश में कुछ बुद्धिजीवियों ने मान लिया है कि जज्वात की नुमाइंदगी का दावा करने वाले अलगाववादी गुटों को न केवल पाकिस्तान का समर्थन हासिल है बल्कि उनके सियासी आधार की वकालत यू एन भी करता है। क्योंकि उनकी मांग प्लेबीसाइट है जिसका उल्लेख यू एन रेज़लुशन में है।

कश्मीर में सियासी फरेब की कहानी यही से शुरू होती है जिस फरेब के झांसे में आकर हजारों नौजवानो ने बन्दूक उठायी और बेमौत मारे गए। आज हुर्रियत के इसी फरेब के झांसे में कुछ नौजवानो ने पत्थर उठा लिया है। पिछले 50 वर्षों से यूनाइटेड नेशन मिलिट्री आब्जर्वर ग्रुप, लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल पर जंगबंदी की शर्तो को पालन कराने के लिए भारत और पाकिस्तान में दो ऑफिस खोल रखे हैं। सिर्फ इसी साल पाकिस्तान ने 230 जंगबंदी का खुला उल्लंघन किया है लेकिन ये ऑफिस खामोश रहे है फिर इसके होने का क्या मतलब है ? कश्मीर में यू एन की प्रासिंग्कता इसी से समझा जा सकता है। कायदे से इस ऑफिस को बंद हो जाने चाहिए।

* कश्मीर में लोगों को यह बताया गया है कि कश्मीर का मसला यू एन में लंबित है जबकि भारत का यू एन जाने का सरोकार सिर्फ पाकिस्तान के खिलाफ घुसपैठ की शिकायत दर्ज कराने भर से था जो कि उसके चार्टर 35 में उल्लेखित है।

* आज लोगों को यह बताने की जरूरत है कि यू एन क़े  किसी भी चार्टर /रेजोलुशन ने जम्मू कश्मीर के विलय पर सवाल नहीं उठाया है ,न ही यू एन ने अपने किसी संकल्प में विलय पर शंका जाहिर की है 

* बल्कि यू एन ने हर समय आज़ाद  कश्मीर (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर ) में प्रशासन और पाकिस्तान फौज की मौजूदगी को असंवैधानिक माना है। 

* यू एन अपने रेजोलुशन में कहता है कि पाकिस्तानी फ़ौजियो के बर्बर आक्रमण से मकबूजा कश्मीर से विस्थापित २० लाख से ज्यादा लोगों को अपनी जमीन छोड़नी पड़ी है उनके घर लौटने की व्यवस्था होनी चाहिए। इस सन्दर्भ में इंडिया को पाक मकबूजा कश्मीर में पर्याप्त संख्या में अपनी फ़ौज तैनात करनी चाहिए और पाकिस्तान को अविलब अपनी फ़ौज वहां से हटानी होगी।

* यू एन के रेजोलुशन में उल्लेख है कि भारत सरकार के अधीनस्थ प्लेबीसाइट अधिकारी ही जनमत संग्रह की व्यवस्था करेंगे लेकिन इसके पूर्व पाकिस्तान को अपनी फ़ौज मकबूजा कश्मीर से पूरी तरह हटाना होगा। जिस यू एन की चर्चा करते हुए गिलानी ने कश्मीर में पचास साल सियासत कर ली, इन पचास वर्षों में झेलम का पानी कितना बह गया लेकिन सियासी फरेब कश्मीर में बदस्तूर जारी रहा। क्या कश्मीर के लोगों को यह पूछने का हक़ नहीं है कि कहाँ है यू एन ? पाकिस्तान के सन्दर्भ में भी ऐसे दर्जनों सवाल है जिसे सीधा पूछा जाना जरूरी है। जाहिर है मोदी सरकार की उपलब्धि में कश्मीर में अमन और खुशहाली जरूर शामिल होने चाहिए लेकिन यह तभी संभव है जब कश्मीर मामले में भी स्वच्छ भारत अभियान जैसी जनभागीदारी हो। vinod mishra

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