ये राजनीति कब प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी बन गयी !
लालू जी ! आप तो ऐसे न थे ,या ऐसे ही थे और हम लोग गलत समझ बैठे थे। बिहार में कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने महागठबंधन में मचे महासंग्राम पर लालू जी को क्लीन चीट देने की कोशिश की है ,तो कुछ लोगों ने नीतीश जी की तुलना में चाँद को भी पीछे कर रखा है। राजनितिक पंडित मानते हैं कि बुनियाद ,महाभारत ,रामायण सिरियल के बाद लालू ही ऐसे शख्स थे जिसे टेलीविज़न ने ब्रैंड बना दिया ,लेकिन आज लालू और उनके सियासी उत्तराधिकारी कहते है कि लालू जी के बगैर टीवी न्यूज़ नहीं बनती । तो क्या लालू न्यूज़ चैनेल्स के लिए कपिल शर्मा शो थे या लालू निर्मल बाबा वाली "कृपा " भक्तो पर बरसाते रहे थे ! अगर ऐसा ही था तो लालू जी को एक संस्था एक विचार बताने वाले पत्रकारों को यह बताना चाहिए कि सर्वेंट क्वाटर से अपनी सियासत शुरू करने वाले लालू आखिर किस संस्था और विचार को पाकर पटना के तीन एकड़ में फैले बिहार का सबसे बड़ा मॉल का मालिक बन बैठे। ,देश के अलग अलग मेट्रो शहर में उनके बच्चों ने फॉर्म हाउस और करोडो रूपये की प्रॉपर्टी बना ली। या इसलिए कि कुछ बुद्धिजीवियों ने लालू जी को डॉक्टर लोहिया से भी बड़े सामाजिक न्याय के पुरोधा बना दिया।
इतना असर है खादी के उजले लिबास में"
लेकिन लोगों का भ्रम नहीं टुटा। विचारधारा की राजनीति कब प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी बन गयी ,ये एहसास लोगों को तब हुआ जब देश में एक नए सियासी समीकरण ने चुपके से आहट दी है। सामजिक न्याय और आर्थिक विकास में उत्तर प्रदेश और बिहार भले ही काफी पिछड़ गए हो लेकिन किसी को आदर्श मानने की गलती अब समाज नहीं करेगा। लोगों को व्यक्तिगत अनुभव ने ज्यादा परिपक्व किया है। लालू जी और मुलायम के बेटे -बेटी ही मंत्री बने उन्हीका मॉल और आलिशान भवन बने और कुछ लोग पुरखो के देखा देखी में आज भी चूहे खाकर जिन्दा रहे यह सामाजिक न्याय तो कतई नहीं हो सकता और न ही कोई आदर्श।
पसंद - नापसंद की सियासी सोच ने लालू से लेकर मुलायम और मायावती को सामाजिक न्याय और सेक्युलर दावे को समाज में आदर्श स्थापित करने की षड़यंत्र रच डाली। सत्ता हड़पने का यह फार्मूला कुछ परिवारों को धन कुबेर जरूर बना दिया लेकिन सामाजिक न्याय इन प्रदेशों में वैसे ही कराहती रही जैसे कांग्रेस के ज़माने था । कवि गोंडवी ने 1992 में लिखा " काजू भुने हैं प्लेट में, व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैतइतना असर है खादी के उजले लिबास में"
लेकिन लोगों का भ्रम नहीं टुटा। विचारधारा की राजनीति कब प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी बन गयी ,ये एहसास लोगों को तब हुआ जब देश में एक नए सियासी समीकरण ने चुपके से आहट दी है। सामजिक न्याय और आर्थिक विकास में उत्तर प्रदेश और बिहार भले ही काफी पिछड़ गए हो लेकिन किसी को आदर्श मानने की गलती अब समाज नहीं करेगा। लोगों को व्यक्तिगत अनुभव ने ज्यादा परिपक्व किया है। लालू जी और मुलायम के बेटे -बेटी ही मंत्री बने उन्हीका मॉल और आलिशान भवन बने और कुछ लोग पुरखो के देखा देखी में आज भी चूहे खाकर जिन्दा रहे यह सामाजिक न्याय तो कतई नहीं हो सकता और न ही कोई आदर्श।
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