जिम्मेदारी सबकी बनती है

यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान...  भारत की गुरु -शिष्य  परम्परा में कबीर ने भी मुक्ति और मोक्ष के लिए गुरु को ही साधन माना था। पंजाब हरियाणा जैसे राज्यों में गुरु की इस  शानदार रिवायत  ने सामाजिक जीवन में इंसानियत के आदर्शो को गौरवान्वित किया था। और जीवन में त्याग को ही आदर्श बना दिया। पंचकूला में  32 लोगों की जानें बाबा के  आदर्शो को बचाने में नहीं गयी है बल्कि  बाबा के  अहंकार और लालच ने मासूमो की जान ले ली है।  जब से तथाकथित गुरुओ  ने " डेरा " को स्थायी निवास मानना कर शुरू  दिया।  डेरा का रास्ता सत्ता और बाजार से जोड़ दिया तबसे बाबा  राम रहीम ,रामपाल ,आशाराम ,भीमानंद ,नित्यानंद,जय गुरु देव ,रामवृक्ष  जैसे गुरुओं ने बाज़ार और भक्तो के जरिये अपने डेरों को पावर सेंटर /वोट बैंक में तब्दील कर दिया और सियासी दलों को  डेरा के  चौखट पर ला खड़ा कर दिया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल मीडिया के उन  बुद्धिजीवियों से भी है जो कभी डेरा को आध्यात्मिक केंद्र बताकर टीवी चैनलों पर उनका महिमामंडन करते हैं। और कभी बाबा को चरित्रहीन बताकर उनके भक्तो को भड़काकर टी आर पी बनाते है। बाबा अगर रेपिस्ट है तो क्या उसके टीवी कवरेज में 20 रिपोर्टर्स लगाने का क्या औचित्य है ?   जिम्मेदारी सबकी बनती है।  

गुरमीत राम रहीम को डेरा सच्चा सौदा अपने गुरु शाह  मस्ताना बलूचिस्तानी से मिला था।  आज  बाबा रहीम ने इस डेरे को सिरसा में 1000 एकड़ उपजाऊ भूमि पर पाइव स्टार फॉर्महॉउस बना डाला  है  । अपने 6  करोड़ भक्तो के डाटा बैंक की बदौलत बाबा राम रहीम ने पिछले 20 वर्षों में सत्ता और सरकार से इसकी कीमत भी वसूली है।  लेकिन पंचकूला ,सिरसा से लेकर दिल्ली  तक हिंसक भीड़ उग्र  हो  रही  है इसके जिम्मेदार कौन है ? मथुरा में पिछले साल बाबा  गुरुदेव और रामवृक्ष के कारिंदो के शिकार हुए पुलिस ऑफिसर्स और मासूम लोगों के जिम्मेदार कौन है। रामपाल समर्थकों की उग्र प्रदर्शन और हिंसा के जिम्मेदार कौन है। भिंडरवाला को स्वयंभू बनाने और भष्मासुर बनने पर कार्रवाई करने के जिम्मेदार कौन है ? जाकिर नायक जैसे महत्वाकांक्षी लोगों को सरंक्षण देने और उन्हें वोट में तब्दील करने के जिम्मेदार कौन हैं ? लालच में सियासी दलों ने धर्म को भीड़ के हाथ में असहाय छोड़ने की साजिश की है। आज हर छोटा बड़ा धर्म /मजहबी तथाकथित गुरु जब तब सत्ता/व्यवस्था  को चुनौती  देते हुए देखा जा सकता है। वोटबैंक की पॉलिटिक्स में सियासी दलों ने अपने रीढ़ की हड्डी झुका ली है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सामाजिक कार्यों में डेरा का अहम् योगदान है ,हज़ारो -लाखो गरीब ,बंचित के लिए डेरा एक उम्मीद है। लेकिन यह काम सरकार का है कि इन डेरो /धार्मिक स्थलों की हद तय करे। न्यू इंडिया में इंडिया फर्स्ट में इन दकियानूसी सोच पर लगाम लगाना होगा।  कबीर के इस देश पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय ।ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।   कर्मकांडो से ऊपर भाईचारा और इंसानियत को लाकर  एक नए भारत का खाव्ब देखा जा सकता है।  विनोद मिश्रा 

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