धार्मिक स्थलों को मिले उद्योग का दर्जा
"प्रधानमंत्री कहते हैं कि केदारनाथ का पुनर्निर्माण करने आए हैं। इस अलौकिक भूमि के स्वामी स्वयं केदारनाथ हैं। अगर कोई ये भ्रम पाल ले कि वो बाबा केदारनाथ का पुनर्निर्माण कर सकता है तो इससे बड़ा अपमान उत्तराखंड की पवित्र भूमि का नहीं हो सकता " कांग्रेस प्रवक्ता आर पी एन सिंह अपने प्रेस रिलीज से क्या साबित करना चाहते हैं ये इस देश की महान पार्टी ही समझ सकती है लेकिन इतना तय है कि इस पार्टी के नेतृत्व ने साबित कर दिया है कि उनके पास कोई विज़न नहीं है।150 साल पुरानी पार्टी अगर पुनर्निर्माण की आलोचना करती है तो माना जाएगा कि बदले भारत से इस महान परिवार का संवाद नहीं है। 2013 के हादसे के बाद यह पहला मौका है जब हिमालय के दुर्गम पहाड़ी में स्थित बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए 5 लाख से ज्यादा लोग पहुंचे हैं। जाहिर है यात्रियों की भारी भीड़ ने स्थनीय उद्योग और रोजगार को उत्साह से भर दिया है और इस सिलसिले को प्रधानमंत्री ने आगे बढ़ाया है।
वैभवशाली सांस्कृतिक परम्पराओं का यह देश दुनिया के लिए हमेशा कौतुहल से भरा रहा है। लेकिन यथास्थिति बनाये रखने का आग्रह और सियासी मजबूरी ने कभी इन धार्मिक स्थलों का विकास नहीं होने दिया। देव भूमि उत्तराखंड में अगर यह कहावत मशहूर है कि पहाड़ का पानी और जवानी इसके काम नहीं आता, तो यह इसकी पीरा की अभिव्यक्ति है। बगैर रोजगार के नौजवानो को पहाड़ पर रहना मुश्किल हुआ तो वे मैदान की ओर पलायन कर गए। पूरा का पूरा पहाड़ खाली हो गया। रोजगार के अभाव में वस्तियां उजड़ गयी ,आज अगर चारधाम यात्रा में यात्रियों को मिल रही सहूलियत ने स्थानीय पर्यटन को बूस्ट किया है तो माना जायेगा कि मोदी को सचमुच बाबा ने बुलाया है। दुनिया के टूरिज़्म के नक्से पर भारत का स्थान थाईलैंड से भी कम है ,जबकि कई एशियाई देशों में टूरिज्म आज सबसे बड़ी इंडस्ट्री के रूप में स्थापित है। लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में भारत अभी भी इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए संघर्ष कर रहा है।
पिछले तीन दशक से जब कभी भी बात अयोध्या की होती थी तो बहस सेक्युलर कम्युनल पर टीक जाती थी। आज तक एक्सप्रेस वे बनाने वालों को यह पता नहीं चला कि देवस्थलों के विकास किये बगैर उत्तर प्रदेश का विकास असंभव है। दुनिया में आज भी सबसे ज्यादा टूरिस्ट प्राचीन परम्परा और धरोहर को देखने जाते हैं। भारत की यह पूंजी दुनिया में सबसे ज्यादा मजबूत है लेकिन विज़न नहीं होने के कारण प्राचीन नगरी अयोध्या ,वाराणसी ,मथुरा ,आगरा जैसे दर्जनों शहर उपेक्षा के शिकार रहे। सिर्फ अयोध्या का विकास पांच लाख लोगों के रोजगार की गारंटी देता है लेकिन इसके लिए मजबूत इच्छशक्ति और हर समुदाय के बीच संवाद की जरूरत है। जरुरत इस बात की भी है कि योगी आदित्य नाथ भी अपने भाव और स्वभाव में परिवर्तन लाये। धार्मिक स्थल रोजगार के प्रमुख साधन हो सकते हैं लेकिन खानपान के लिए शासनादेश इसके ऑब्जेक्टिव को कतई उत्साहित नहीं करता। इस देश ने अर्थ के बाद ही धर्म और मोक्ष की चिंता की है। खुली हवा में भारत को समझने देखने की शाश्वत परम्परा ही भारत को गौरवान्वित करती है। न्यू इंडिया में ये दकियानूसी सोच ख़ारिज हो रहे हैं ये बात कांग्रेस नेतृत्व को भी समझना होगा।
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