राहुल अपनी एंग्री यंगमैन वाली इमेज कब छोड़ेंगे ?
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कुछ बुजुर्ग बीजेपी में भी नए समीकरण का बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं तो कांग्रेस के बुजुर्ग ने दमघोटू दिल्ली में एक नए सियासी समीकरण की नीव रख दी है। राहुल जी को कांग्रेस का नेता होने से कौन रोक सकता है ? लेकिन देश उन्हें नेता मान ले यह आशंका पार्टी के लीडरों को भी है।
हिमाचल प्रदेश हो या पंजाब या फिर कर्नाटका राज्य में मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रप ने ही कांग्रेस को और राहुल जी को सहारा दिया है। याद कीजिए उत्तर प्रदेश अगर अखिलेश साथ न होता तो राहुल भैया का क्या होता ? बिहार में महागठबंधन के बिना कांग्रेस क्या कर सकती थी। पश्चिम बंगाल में ममता जी के साथ जाए फिर कम्युनिस्ट के साथ कमोवेश ऐसी ही चर्चा हर राज्यों में है ,लेकिन दिक्कत यह है कांग्रेस में कुछ लोगों ने 2019 के लिए राहुल का नाम अभी से आगे कर दिया है। ये कुछ लोगों की शरारत है या फिर परिवार से दुश्मनी यह तो वक्त बताएगा लेकिन भारत में शायद शॉर्टटर्म पॉलिटिक्स का जमाना ओवर हो चूका है। लोगो के बीच विश्वास बनाने के लिए आज नेता को फुल टाइम वर्कर बनना पड़ता है। मिडिया और सोशल मीडिया के प्रभाव से राहुल जी को हर राज्य में हार्दिक ,अल्पेश और जिग्नेश जैसे नौजवान मिल जाएंगे जो सीधे तौर पर सिस्टम को चुनौती देते है। लेकिन राहुल और कांग्रेस पता होना चाहिए चुनावी माहौल जमीनी कार्यकर्ता बनाते है ,नेता के आम जानो से संवाद सियासी जमीन उर्बरा बनाता है। जबतक हर गाम हर मोहल्ले में कांग्रेस का कर्मठ कार्यकर्त्ता नहीं दिखेगा तबतक दिल्ली दूर है। किसी के कंधे के सहारे यह पार्टी कभी नहीं खड़ी हुई है। कांग्रेस के बुजुर्ग यह बात राहुल गाँधी बता नहीं रहे हैं।
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