मैं हिमाचल प्रदेश !

सुजानपुर का एक पहाड़ी गाँव पट्टी 30 -35 घरों के इस गांव में महज 85 मतदाता है। 14  गांव के पंचायत में महज 2100 वोटर।  यह तस्वीर उस हिमाचल की है जहाँ इनदिनों एसेम्ब्ली चुनाव की सरगर्मी पीक पर है। स्वच्छता और फैमिली प्लानिंग ने  इन इलाकों में खुशहाली का मूल मंत्र दिया है। खास बात यह है कि पहाड़ का पानी और जवानी अपने मूल स्थान को नहीं छोड़ा है। 
हिमाचल प्रदेश ,हिमालय की खूबसूरत पहाड़ी सिलसिलो में स्थित भारत का यह छोटा राज्य जम्मू कश्मीर के कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई यानी 55 हजार कि मी है।  तकरीबन 64  लाख की आवादी वाले इस राज्य ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जो कुछ हासिल इन 48 सालों में किया है ,देश के दूसरे प्रान्त इस मुकाबले में कोसो दूर है।

 दुर्गम पहाड़ी इलाके में चमचमाती सड़को का जाल ,तक़रीबन हर गांव में बिजली और पानी ,पॉलीथिन बैग और तम्बाकू पर पूर्ण प्रतिबन्ध। सियासी पार्टियों के लिए मुद्दे ढूँढना यहाँ इतना आसान नहीं है। 
पहाड़ी राज्यों में हिमाचल प्रदेश ने अपनी खास जगह बनायीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस पिछड़े प्रदेश को तरक्की के रस्ते पर लाने में बीजेपी और कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व ने अहम भूमिका निभाई है। परकैपिटा इनकम में अगर हिमाचल ने गुजरात को भी पीछे छोड़ दिया है तो माना जायेगा कि केंद्रीय योजनाओ को जमीन पर उतारने में यहाँ की सिस्टम ने दिलचस्पी दिखाई है। पिछले 70 वर्षों में पडोसी राज्य जम्मू कश्मीर में सिस्टम का न डेवलप  होना और कुशल नेतृत्व का न होना उसे हिमाचल से काफी पीछे छोड़ दिया है। कम संसाधन के वाबजूद हर एक की भागीदारी से अपने राज्य  की तरक्की हो सकती है यह हिमाचल से यह सीखा  जा  सकता है। 

मंडी के सुन्दर नगर के एक पुलिस अफसर बताते हैं कि "यहाँ हमने आजतक लूट और डकैती के एक भी केस रजिस्टर्ड नहीं किया है"। वजह एजुकेशन भी है यहाँ 90 फीसद लोग शिक्षित हैं। तो क्या शिक्षा ने यह चमत्कार किया है ? जवाब कुछ भी हो लेकिन शिक्षा ने हिमाचल में सिस्टम को पब्लिक ओरिएंटेड बनाया है और फैमिली प्लानिंग और स्वच्छता को यहाँ जन आंदोलन में तब्दिल कर  दिया है। कह सकते है कि सामाजिक आर्थिक विकास यहाँ सबसे असरदार गर्भनिरोधक बना है। परिवार का आकर छोटा  होने से सरकार पर जनसँख्या का दवाब कम हुआ है ,जाहिर है   हिमाचल ने हर क्षेत्र में तरक्की की है। इस तरक्की में शांता कुमार ,प्रेम कुमार धूमल और  वीरभद्र सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा है लेकिन हर पांच साल में इनकी हुकूमत भी जनता छीन लेती है ,ये भी ध्रुव सत्य है। 

स्टार प्रचारकों के घमासान प्रचार के बीच क्यों सुजानपुर में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल के पसीने छूट रहे हैं तो राजा वीरभद्र सिंह की दाल अर्की में नहीं गल रही है। दोनों मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार एक साधारण कैंडिडेट की चुनौती से हाँफ रहे हैं। पुरे हिमाचल में सड़को का जाल बिछाने का श्रेय धूमल जी को जाता है फिर उनके पूर्व प्रेस एडवाइजर राजेंद्र राणा कांग्रेस की टिकट से उन्हें चुनौती दे रहा है। अर्की में रतन पाल सिंह सी एम वीरभद्र सिंह के तमाम विकास के दावे को झूठा साबित कर दिया है। यानी कैंडिडेट का पर्सनल कनेक्शन इस चुनाव में सबसे बड़ा फैक्टर है। हालाँकि पी एम मोदी की लोकप्रियता किसी कैंडिडेट को जिताने हारने का माद्दा इस चुनाव में भी जरूर रखता है। vinod mishra  

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिंदू आतंकवाद, इस्लामिक आतंकवाद और देश की सियासत

है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़ !

हिंदुत्व कभी हारता क्यों नहीं है !