गांधी ,दीनदयाल और अटल के सपनो के भारत में " मोदीकेयर "

सन 2000 में पहलीबार अटल बिहारी वाजपेयी ने जनरल बजट में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना लाये। मकसद था गांव के खेत खलिहान सड़क संपर्क से जुड़े ,बाजार से जुड़े। अटल जी का मानना था कि जबतक खेतो तक सड़क संपर्क नहीं जुड़ेगा तबतक किसानों की माली हालात सुधरने वाली नहीं है। 2018 के बजट में "अटल जी" फिर लौट आये हैं। ऑल वेदर रोड नेटवर्क बनाकर मोदी सरकार ने खेत -खलिहान को बाज़ार से जोड़ने की पहल की है।  पिछले दस वर्षों में  ग्रामीण भारत को कुछ न कुछ हर बजट में मिलता रहा है लेकिन ग्रामीण भारत की  आधारभूत संरचना सुधारने के बजाय केंद्रीय योजनाए भ्रष्टाचार  की  भेट चढ़ गयी । लम्बे अरसे के बाद 2018 के ग्रामीण भारत के बजट ने सबको चौकाया है। पहलीबार ऐसा देखा जा रहा है कि हर कोई अपना हिस्सा इस बजट में ढूंढ रहा है। लेकिन देश के 70 फीसद आवादी अबतक अपना हिस्सा ढूंढने के बजाय सरकार से सिर्फ सहूलियत ही चाही थी  और गरीबी हटाओ का नारा किताबों तक सीमित रह गया था। 

पिछले महीने अपने रेडियो प्रोग्राम "मन की बात " में पी एम मोदी ने कहा था "शहरीकरण के तेज रफ़्तार के वाबजूद आज भी 70 फीसद लोग गाँव में ही रहते है"। यह बात गौर करने लायक है  कि एक महीने बाद बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 22 दफा किसानो की चर्चा की तो 15 बार उनके बजट भाषण में कृषि शब्द गूंजा । जैसा कि जेटली जी  कहते है कि "इस बजट ने गांव ,गरीब और किसानो की उम्मीदों में पंख लगा दिया है"। आलू -प्याज -टमाटर सड़क पर डालने की खबर मीडिया में खूब चली लेकिन हालिया बजट के इस आंदोलनकारी पहल की चर्चा कम हुई है कि अब धनिया उगाने वाले किसान समर्थन मूल्य पाने का हकदार होगा। अब खरीफ और दूसरे फसलों पर किसान लागत कीमत से 1. 5 गुणा मुनाफा कमाने का हकदार होगा। यानी 2022 तक किसानो की आमदनी दोगुनी करने के संकल्प को अमलीजामा पहना दिया गया है। 
गांव- गरीब -किसान को पहलीबार मार्केट की धारा से जोड़ा गया है जिसमे मिडिलमेन की भूमिका लगभग ख़तम कर दी गयी है। हालिया बजट में 22000 रूरल हाट को अपग्रेड करके ग्रामीण कृषि बाजार का दर्जा दिया गया है। जहाँ किसान अपने उत्पादन को सीधे थोक एवं खुदरा के लिए अलग अलग कीमत तय कर सकता है। 
ग्रामीण भारत के लिए स्वच्छ भारत अभियान समृद्धि का नया संकल्प दिया है। यु नी से एफ की रिपोर्ट बताती है कि हर परिवार अमूमन 50000 रुपया हर साल बीमारी  पर खर्च करता है। ग्रामीण अंचल में 6 करोड़ शौचालय का निर्माण करके सरकार ने गंदगी के कारण होने वाली बीमारियों के  असर  को कम करने की कोशिश की है। लेकिन 2018 के बजट ने ग्रामीण अंचलो में आयुष्मान का नया तोहफा दिया है। मोदी केयर की इस योजना में 10 करोड़ परिवारों के  लगभग 50 करोड़ लोगों को 5 लाख रूपये का प्रतिवर्ष स्वास्थ्य बीमा देने की घोषणा की है। 

विपक्ष के नेता  "शहरी बीजेपी" के ग्रामीण प्रेम को 2019 के इलेक्शन से जोड़ते हैं। मीडिया में इसे गुजरात इलेक्शन का इम्पैक्ट बताया जा रहा है। हालाँकि आलोचना करने वाले लोग बीजेपी के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय के एकात्ममानववाद को नज़रअंदाज कर रहे है। समाज के अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति दीनदयाल जी का आदर्श था तो गाँधी जी के सपनो का भारत गाँव की समृद्धि से ही बनता है। यह बात अगर 70 साल बाद इस गवर्नमेंट ने जाना है तो कहा जा सकता है कि देर आयद दुरुस्त आयद। 

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