मोदी जी ! "ननिहाल से कोई खाली नहीं जाता यह बात मिथिला के लोग जानते हैं "

"पग पग पोखरि माछ मखान ,सरस बोल मूसकी मूख पान ,विद्या वैभब शांति प्रतीक ... ई मिथिला थीक"। ,अपने चार साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी जब तीसरे दौरे में नेपाल के जनकपुर धाम पहुंचे तो उन्होंने मिथिला के गौरवशाली परंपरा का कुछ यूँ बखान किया वो भी मिथिलेश कुमारी यानी सिया जी की मातृभाषा में। मिथिला में आकर मोदी अभिभूत थे ,यहाँ तक कि उन्होंने माता सीता के जनकपुर को अपना ननिहाल माना और कहा ननिहाल को कुछ दिए बगैर कोई कैसे जायेगा। लेकिन सरलता ,सरसता और मुस्की वाली मिथिला /बिहार की पीड़ा कथाकार राजकमल चौधरी की "अपराजिता "से बेहतर समझी जा सकती है। “गारंटी ऑफ पीस” खतम छल…विद्यापतिक गीत खतम छल। रूसक कथा खतम छल। डकैतीक कथा थम्हि गेल…सोना-चानीक तेजी-मन्दी सेहो बन्द भऽ गेल रहय। सिकरेटक लगातार धुँआ रहि गेल आ रहि गेल अपराजिता! सरिपहुँ… बागमती, कमला, बलान, गंडक आ खास कऽ कऽ कोसी तँ अपराजिता अछि ने! ककरो सामर्थ नहि जे एकरा पराजित कऽ सकय। सरकार आओत…चलि जायत..मिनिस्टरी बनत आ टूटत, मुदा ई कोसी…ई बागमती…ई कमला आ बलान…अपन एही प्रलयंकारी गति मे गाम केँ भसिअबैत, हरिअर-हरिअर खेत केँ उज्जर करैत, माल-जालकेँ नाश करैत, घर-द्वारक सत्यानाश करैत बहैत रहत आ बहैत रहत"

तो सत्तर साल की आज़ादी के बाद भी भारत नेपाल की बीच बाढ़ की विभीषिका को अबतक नज़र अंदाज किया जाता रहा।अबतक इन इलाको की तस्वीर नहीं बदली। 1950 से लेकर अबतक भारत=नेपाल कोसी एग्रीमेंट से आगे नहीं बढ़ पाया। वाटर मैनेजमेंट को लेकर भारत और नेपाल का अतीत तल्खियों से भरा रहा है। कोसी ,गण्डकी ,महाकाली जैसी बड़ी नदियों पर बाँध बनाने और सिचाई -बिजली की बात भी शुरू हुई लेकिन 50 वर्षो में दोनों देश कोसी प्रोजेक्ट में ही उलझी रही। और दोनों देश पानी और प्रबंधन के मुद्दे पर ही उलझते रहे। अगर छोटी बड़ी नदियों की बात करे तो 6000 ज्यादा जलधारा नेपाल से निकलती है और हर साल बिहार और उत्तर प्रदेश के करोडो लोग इससे प्रभावित होते रहे हैं । जब की इन विशाल जलसंसाधन की क्षमता दोनों देशों के लाखों एकड़ जमीन सिंचित कर सकती है और पुरे उत्तर भारत के बिजली की आपूर्ति अकेले नेपाल की नदियां पूरी कर सकती है। मोदी जी आपने सही कहा नेपाल के बिना हमारे विशवास अधूरे है सिया के बगैर राम क्या ? सो नासमझी में गरीबी उधर भी है और इधर भी।

फणीश्वरनाथ रेणु के 40 साल पुराने संस्मरण को पढ़िए ,कुछ भी तो नहीं बदला है। .बिहार, बाढ़ और भ्रष्टाचार की कहानी में। ,सोन ,पुनपुन ,फल्गु ,कर्मनाशा ,दुर्गावती ,कोसी ,गंडक ,घाघरा ,कमला ,भुतही बलान ,महानंदा इतनी नदियाँ जो जीवन धारा बन सकती थी लेकिन हर साल सिर्फ तबाही लाती है और हमारी सरकार फिर अगलीबार का इन्तजार करती है। बिहार के 18 जिलों में जलप्रलय जैसी हालत हर साल बनती है। 3 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित होते है। लेकिन पटना में सरकार अपनी राजनितिक अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही होती है। वही विपक्षी दलों के सामने टारगेट पीएम मोदी के असर को कम करना है। कोसी का असर तो हर साल फीचर है। ज्यादा से ज्यादा मरने वालों की संख्या बढ़ेगी और सम्पति का नुक्सान बढ़ेगा ! ऐसी ही राजनितिक उपेक्षा का नतीजा उत्तर बिहार/मिथिला की बाढ़ है। इस सियासत का उत्तर बिहार वर्षों से शिकार रहा है ।


1955 में केन्द्र सरकार ने एक योजना बनाई थी , जिसमें बराहक्षेत्र में 100 करोड़ रूपये की लागत से एक डैम बनाया जाना था । इस बाँध के बन जाने से उत्तर बिहार खासकर मिथिला के 20 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जा सकता था साथ ही 4000 मेगावाट के करीब बिजली भी पैदा की जा सकती थी । लेकिन भारत सरकार के सामने प्राथमिकता भाखड़ा नंगल डैम थी ,क्योंकि इसका नेतृत्व प्रताप सिंह कैरों कर रहे थे । पैसे की तंगी बहाना बना और बिहार की लाखों आवादी भूख , अशिक्षा, और बेरोजगारी के दल दल में लगा तार फंसती रही लेकिन वह डैम नहीं बन पाया।
नेपाल से निकलने वाली कोसी नदी तक़रीबन 69000 कि मी सफर तय करके गंगा में बिलुप्त हो जाती है । नेपाल की यह सप्त कोशी अपनी सातों धाराओं के साथ मिलकर बिहार मे कोसी बनकर अपना प्रचंड रूप ले लेती है । खास बात यह है कि कोसी की धारा उन्ही इलाके से बहती है जो वर्षों से न केबल बिहार से बल्कि देश की उपेक्षा के भी शिकार रहे है। मिथिलांचल में हर साल आने वाले इस प्रलय को हाई डैम बनाकर ही रोका जा सकता था । बिहार की बाढ़ हर साल एक हफ्ते के लिए नेशनल मीडिया की बड़ी खबर होती है। डिबेट शो में बिहार की बाढ़ की भी लालू जी के बेटे तेजप्रताप की शादी की तरह टी आर पी है लेकिन हफ्ते पंद्रह दिनों के बाद लोग भूल जाते हैं । फ़िर शुरू होती है किसी घोटाले कि कहानी । बिहार में पिछले 10 साल पुरानी बाढ़ घोटाले कि जांच अभी भी चल रही है। ये अलग बात है कि घोटाले के वही नायक हर बार बाढ़ प्रभावित इलाके में अपनी सेवा का मौका ले लेते हैं।

बिहार की यह कहानी सचमुच "अपराजिता" है। राजकमल चौधरी और फणीश्वर नाथ की "कोसी" में कुछ नहीं बदला है सिर्फ पात्र बदले है जगन्नाथ जी हों या लालू फिर नीतीश जी बाढ़ ने मिथिलांचल की काया को क्षीण करके राजनेताओं की सियासी काया को हमेशा मजबूती दी हैं। प्रधानमंत्री मोदी का नेपाल को लेकर जद्दोजेहद काफी गंभीर और चुनौतीपूर्ण है और मोदी इस कूटनीति का जवाब देना जानते है। लेकिन सिया की नगरी से सांस्कृतिक सम्बन्ध प्रगाढ़ करने का जो संकल्प मोदी जी ने लिया है उसमे रामायण सर्किट के साथ साथ इन इलाकों को भी आर्थिक प्रगति से जोड़ना होगा। इसमें सिर्फ मजबूत इच्छाशक्ति की जरुरत है। मोदी जी ! वैसे ,ननिहाल से कोई खाली नहीं जाता यह बात मिथिला के लोग जानते हैं।

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