शुजात बुखारी हम शर्मिंदा हैं .... भारत इनदिनों टीवी गुरुओं के प्रवचनों से थोड़ा कंफ्यूज है

क्या कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या खौफ के सौदागरों की वही पुरानी रणनीति का हिस्सा रही है जिसमे अबतक आधे दर्जन पत्रकार मारे गए हैं ? पिछले दिनों स्पाई क्रॉनिकल (भारत पाकिस्तान के दो टॉप जासूसों ) के बुक लॉंच पर मैंने शुजात बुखारी में एक निर्भीक पत्रकार की छवि देखी थी। पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा, दिग्गज सियासी लीडरों के पैनल को बता रहे थे की "दरअसल भारत सरकार की नाकामी के कारण कश्मीर में हालात बिगड़ी है। हिज़्ब कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से नौजवान उत्तेजित हैं और वे आतंकवादी बन रहे हैं।" शुजात बुखारी ने उन्हे याद दिलाया कि "कश्मीर की समस्या दिल्ली की अनदेखी की समस्या है जो पिछले 40 साल पुरानी बिमारी बनी हुई है। रही बात हिंसा की तो यह सिलसिला अफ़ज़ल भट की फांसी के बाद ही तेज हुई थी। कुछ नौजवानो ने अफ़ज़ल व्रिगेड बनाकर जमकर आतंक मचाया था और आज भी सक्रिय हैं " पूर्व रॉ चीफ दुल्लत और साबिक आई एस आई चीफ दुर्रानी के "स्पाई क्रॉनिकल" बुक को लांच करने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ,फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ,पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ,यशवंत सिन्हा सहित कांग्रेस के कई पूर्व मंत्री और आला अफसर उपस्थित थे। कुल मिलाकर इन दिग्गजों ने किताब पर कम और मोदी सरकार की कश्मीर नीति पर जम कर नुक्ताचीनी की । लेकिन दो बड़े जासूसों के बुक लांच में पूर्व प्रधानमंत्री का आना हैरान जरूर कर रहा था।

तो कश्मीर में नेतओं के भसड़ ने कश्मीर को समस्या बनाया है और लोगो को जब तब हैरान किया है। तो जैसा शुजात बुखारी ने कहा दिल्ली की अनदेखी ने कश्मीर को समस्याग्रस्त बना दिया है। कई मायने में सच है। 2009 में मैं पूर्व गृह राज्य मंत्री से पूछा था "दो महीने से कश्मीर में कारोबार ठप्प है ,आवाम बेहाल है सरकार कुछ करती क्यों नहीं है। यह ऑफ द रिकॉर्ड सवाल था ,उनका जवाब था कश्मीर में जमीन की कीमत तुम्हे मालूम है ? शहरी इलाके में रियल स्टेट के कारोबार ने कई शहरो को पीछा छोड़ दिया है। कश्मीर में हर दिन कितनी गाड़िया बिकती है ? कितने ब्रांडेड कपड़ो के शॉप्स है ,कितने कश्मीरियों के बच्चे रियासत के बाहर और विदेश में पढ़ते है ? अगर आंकड़े आपके पास हैं तो आप जान जाएंगे ये हड़ताल अलगाववादी लम्बा नहीं खींच सकते।
यह कांग्रेस की वर्षो पुरानी "स्टैटस को" की नीति रही और सत्ता में उनकी वर्षो टिके रहने का फार्मूला भी लेकिन भारत की शॉफ्ट स्टेट की छवि जो कांग्रेस ने दी वह आज भी सत्ता में फेबिकाल की तरह चीपक गयी है। हजरतबल में घुसे आतंकवादी हो या चरारे शरीफ को जलाने वाले आतंकवादी मेजर मस्तगुल। दिल्ली ने उनकी आवभगत करके मेहमानवाजी की शानदार परंपरा निभाई थी। ठीक वैसे ही जैसे मौजूदा गृह मंत्री राजनाथ सिंह पथरवाजो को अपना बच्चा बताते हैं,उन्हें पुचकारते है मानो उनकी बात गुमराह नौजवानो के दिल में उतर आएगी। और पिछले 6 महीने में 2000 से ज्यादा पथ्थरवाज नौजवान को गृह मंत्री एमनेस्टी दे चुके हैं। क्या "बात बनेगी बोली से " पालिसी से हालत बेहतर हुए ? उलटे यू एन ने मानवाधिकार हनन मामले में भारत को 49 पेज की रिपोर्ट पकड़ा दी। यह वही यू एन  है जिसे खुद पता नहीं है 70 साल पुराने रेजोलुशन को करना क्या है? क्या यू एन, पी ओ के को 1947 की हालत में लाकर भारत को सुपुर्द कर सकता है ?क्या चार पीढ़ियों के बाद कश्मीर में रायशुमारी की शर्ते पाकिस्तान को कबूल होगा ? क्या वादी ए कश्मीर पाकिस्तान अधिकृत स्वात वैली बनना चाहेगा ? ऐसे दर्जनों सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है।  तर्क सिर्फ  मजहब का है नामनिहाद जिहाद का है। लेकिन उसी जम्मू कश्मीर में  जब तक औरंगजेब जैसा देश का सच्चा सिपाही मौजूद है अलगावादियों के सारे पैतरे बेकार साबित होंगे। ऐसे में सरकार वर्षो पुराने फॉर्मूले को कोएलिशन की  मजबूरी आजमा रही है तो यह उसकी सियासी भूल होगी। श्रीनगर की सियासी बालादस्ती में मौलवी फ़ारूक़ और प्रो गनी जैसे दर्जनों मॉडरेट वॉइस को आतंकवादियों ने खामोश किया है। शुजात बुखारी ने भी अपने अखबार के जरिये सच बोलने साहस किया था।
विश्वगुरु भारत इनदिनों टीवी गुरुओं के प्रवचनों से थोड़ा कंफ्यूज है। तथाकथित लिब्रल और देशभक्त संपादको-पत्रकारों ने अपनी तरफ से ज्ञान वर्षा की बाढ़ ला दी है । देश प्रेम और देश द्रोह के मुद्दे पर टीवी स्टूडियो में समुद्र मंथन जारी है फर्क सिर्फ इतना है कि इस मंथन का विष पीने के लिए सिर्फ दर्शक मजबूर है..आंकड़े देखे तो सबसे ज्यादा कवरेज टीवी न्यूज़ में कश्मीर को मिलता है। वजह कश्मीर की खबरों में एक्शन है ड्रामा है टी आर पी है। दुनिया के किसी देश में एनकाउंटर का लाइव नहीं दिखा होगा ,यहाँ हर जुम्मे पथरवाजो के हीरोगिरी का विश्लेषण के साथ लाइव टेलीकास्ट होता है। देश के किसी चैनल ने कश्मीर की कोई पॉजिटिव खबर शायद ही चलायी होगी लेकिन निगेटिव खबरे चैनल के प्राइम टाइम बहस का मुद्दा बन जाता है। टीवी पर अपनी ज्ञान धारा बहाने के बाद संपादको और कश्मीर एक्सपर्ट का सोशल मीडिया पर अनकट लाइव निरन्तर ज्ञानवर्धन करता है। यानी संपादकों के मुख से निकले एक एक शब्द देश के दशा और दिशा तय करने का दम्भ भर रहा है। ऐसे में यह देश कभी स्वतंत्र और मजबूत निर्णय ले पायेगा यह कहना मुश्किल है। तबतक यही कहा जा सकता है शुजात बुखारी हम शर्मिंदा हैं।

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