15 साल जंगल राज बनाम सुशासन का 15 साल ? अब हम बिहारी नहीं हैं !


सबसे ज्यादा अख़बार पढ़ने वाला बिहार ,अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा टीवी न्यूज़ देखने वाला बिहार, औसतन सबसे ज्यादा मोबाइल फ़ोन धारक बिहार आज नेतृत्व विहीन क्यों है ? ग्लोबल पावर के रूप में उभर कर सामने आया सोशल मीडिया में बिहार की उपस्थिति क्यों सिर्फ कुछ लफंगे की करतूतों को लेकर सिमट गयी है। क्यों पिछले 30 वर्षो में बिहार अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाने में विफल रहा है ? क्यों कुछ  परिवार और मुठ्ठी भर लोगों के हाथों बिहार की सियासत कैद हो कर रह गयी है। क्या वजह सिर्फ चरम जातिवाद है या प्रवासी बिहारियों का अपने राज्य के प्रति उपेक्षा ? वजह जो भी हो लेकिन इतना तय है कि देश के हर आंदलोन में अग्रणी भूमिका निभाने वाला क्रन्तिकारी बिहार की बेबसी के लिए हम सब का जातिगत अहंकार और लालच जिम्मेदार है। 

2019 के लोक सभा चुनाव के लिए बिहार में  जीत का फॉर्मूला क्या है ? इस जीत के लिए नीतीश कुमार और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह 50 --50 पर अपनी रजामंदी दे चुके हैं ,राम विलास पासवान जी के पुरे परिवार को टिकट मिलना तय है। खबर यह भी है शायद राम विलास जी इस बार लोकसभा के प्रत्यासी न हों। घर के बच्चों ने पार्टी और सियासत की जिम्मेदारी उठाली है। खबर यह भी है कि जातिगत अनुपात में उपेंद्र कुशवाहा को सीट न मिलने पर वो कुछ कड़े फैसले ले सकते हैं। एन डी ए की टूट को एक बड़ी राजनीतिक जीत मानते हुए तेजस्वी यादव उनके लिए रेडकार्पेट बिछा रहे हैं। जातिगत फॉर्मूले को आजमाने की कोशिश में कांग्रेस ने मदन मोहन झा को आगे किया है। संभवतः कांग्रेस और आर  जे डी में यह सहमति है कि मुस्लिम और यादव के "माय" वाले फॉर्मूले में कांग्रेस सेंध नहीं लगाएगी इन जातियों/सम्प्रदायों का नेतृत्व सिर्फ लालू जी के परिवार के बच्चे करेंगे। नीतीश जी के जे डी यू में पार्टी संचालन और फॉर्मूले का जिम्मा अब प्रशांत किशोर के हाथ में है। कांग्रेस और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के पास  प्रशांत किशोर की सीधी पहुंच है। परिस्थिति के अनुरूप जे डी यू की भूमिका बदल सकती है इसकी संभावना कांग्रेस को प्रशांत किशोर से ज्यादा है।  बीजेपी यह तय नहीं कर पायी है कि उसका चुनावी फार्मूला जातिगत समीकरण होगा या सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व।   



 लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस सोशल जस्टिस के नाम पर पिछले 30 वर्षों से सरकारे बन रही है सामाजिक न्याय के नए नए युवराज सामने आ रहे है इसके बावजूद बिहार में सबसे ज्यादा पिछड़े जिले क्यों है ?  देश के ऐसे 119  अति पिछड़े जिलों को एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट का नाम दिया गया है जिसमे बिहार के सबसे ज्यादा जिले हैं। ऐसे जिले के सभी बच्चे आज भी स्कूल नहीं जा रहे हैं। जहाँ हर  घर में बिजली नहीं पहुंची है। जहाँ प्राथमिक चिकत्सा आज भी जादू टोना और क्वैक के ऊपर निर्भर है। जहाँ दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए सबसे ज्यादा जद्दोजेहद करने पड़ते हैं। अति उत्साह में देश के कुछ बुद्धजीबियों ने सामजिक न्याय की सियासत को पिछड़े वर्गो की राजनितिक चेतना बताकर  इसका दाम भी वसूला लेकिन सच यह है कि इन वर्षो में गाँव -गरीब -किसान की जिंदगी में इससे कोई रौशनी नहीं मिली। हालाँकि कुछ लालच और जातिगत अहंकार के कारण बिहार की जनता ने 30 साल पुरानी व्यवस्था जरूर बरकरार रखी है क्योंकि उसे पता है कि अपना भविष्य सवारने पढ़े लिखे बच्चे एक दिन पलायन जरूर करेंगे। किसान -मजदूरों को सरकार से कोई अपेक्षा नहीं है बस ट्रेन टाइमली रहे। और यह बात सियासत को भी पता है कि सत्ता विकास और रौशनी से नहीं भीड़ से मिलती है। बिहार को इस भीड़ से अलग निकालने की जरुरत है। सोशल मीडिया पर कुछ नासमझ लोग बिहार की जो छवि बना रहे है इससे वे अपना कम अपने प्रवासी बिहारियों का ज्यादा नुकसान कर रहे हैं। यह जानते हुए की उनके हाथ में जीओ नेटवर्क वाला स्मार्ट फोन तबतक काम कर रहा है जबतक प्रवासी बिहारी अपना खून पसीना बहा रहे है। जरुरत इस बात की है कि प्रवासी बिहारियों की सक्रियता सोशल मीडिया पर बढे और बिहार का नैरेटिव चेंज हो। जय बिहार 

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