मी लार्ड : राष्ट्र पिता गाँधी की प्रार्थना , रघुपति राघव राजा राम याद है ...

जिस देश में सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष 57,346 केस पेंडिंग हों ,उच्च न्यायलय के समक्ष 47,19,483 और निचली अदालतों में 2,96,93988 मुकद्दमे देर से मिले न्याय अन्याय के सिद्धांत को कारगर साबित कर रहा हो ,उस देश में स्कूलों के प्रार्थना को लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायलय की संवैधानिक पीठ बनाने का फैसला हैरान करता है। असतो मा सद्गमय ।तमसो मा ज्योतिर्गमय ।मृत्योर्मा अमृतं गमय ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ऋगवेद का यह शांति मंत्र मानवमात्र को मन की पवित्रता ,सत्य और प्रकाश/ज्ञान पाने के लिए प्रेरित करता है हालांकि प्रकृति को संवोधित यह प्रार्थना संस्कृत में है तो कुछ लोगों को मौलिक अधिकार का हनन लगता है और सुप्रीम कोर्ट अपने को इस मसले का चैम्पियन मानता है। लेकिन महाभारत का यह सूत्र यतो धर्मस्ततो जयः यानी जहाँ न्याय है वहां जीत सुनिश्चित है। सुप्रीम कोर्ट के हर कोर्ट रूम में यह "प्रतीक" वाक्य भारत की न्याय परमपरा की श्रेष्ठता को दर्शता है। कभी किसी मी लॉर्ड को इस एंब्लेम से दिक्कत नहीं हुई है । क्या मी लार्ड को राष्ट्रपिता गाँधी जी की प्रार्थना रघुपति राघव राजा राम . याद है ?  केंद्रीय विद्यालयों के संस्कृत में सामूहिक प्रार्थना किसी खास मजहब में हस्तक्षेप माना जा रहा है । अज्ञानता वस या शरारत में यह किसी के आस्था का सवाल हो सकता है लेकिन उसी माननीय न्यायलय के समक्ष राम मंदिर का मुद्दा पिछले दो साल से एक बेंच गठन को लेकर सियासी सर्कस बना हुआ है लेकिन करोड़ों भारतियों की आस्था के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट खामोश है। क्या जनभावना \ आस्था का सम्मान सुप्रीम कोर्ट के लिए महज एक परसेप्शन है ?
दावे के साथ तो नहीं कहा जा सकता कि अदालतें इन वर्षों में ओ वी लाइव से कितना प्रभावित होती हैं। लेकिन इस देश में अपने लिए फ्रंट सीट हासिल कर चूका मीडिया ने परसेप्शन को हकीकत बनाने की पूरी जोर आजमाइस की है। आज हर खबर बड़ी खबर है और दावा है कि इससे देश की दशा और दिशा बदल सकती है ? आज परसेप्शन ही न्यूज़ है तो 24 घंटे वाले टीवी चैनल्स में खबरों का कोई टोटा नहीं है।
इन दिनों संवैधानिक अधिकारों को लेकर माननीय अदालतें सक्रिय है। नागरिक स्वतंत्रता को लेकर एन जी ओ सजग है तो बोलने/लिखने की आज़ादी को लेकर तथाकथित लिबरल बुद्धिजीवी /पत्रकार सक्रिय हैं। प्रधानमंत्री का इंटरव्यू जिसे मिल गया वह प्रोपगैंडा का हिस्सा होता है जिसे नहीं मिला वो सीधे प्रधानमंत्री को ईनटरव्यू देने के लिए ललकारता है और देश को ख़बरदार भी करता है। ऐसे लोगों में आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के साथ खिलबाड़ होता है लेकिन राहुल गांधी का मिनिमम इनकम गारंटी ऐतिहासिक फैसला लगता है। अगर यह मास्टर स्ट्रोक है तो फिर मनरेगा क्या जोक था। व्याख्या करने की जरुरत नहीं है। सत्ता पाने का हक़ हर सियासी दल को है. लेकिन सिर्फ परसेप्शन ही व्यवस्था और सियासत का आधार होगा तो इसका उदाहरण राम मंदिर निर्माण का मामला सामने आता है।
मसलन प्रयाग राज कुम्भ के आयोजन को फिजूलखर्ची बताने वाले लोग इनदिनों संगम में डुबकी लगा रहे हैं लेकिन परसेप्शन से अलग किसी ने सी आई आई (कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्री ) की रिपोर्ट पर गौर नहीं किया ,जिसने सिर्फ कुम्भ के दौरान 1,22000 करोड़ रूपये के कारोबार का दावा किया है। जबकि केंद्र और राज्य सरकार ने बुनियादी सहूलियात और प्रायगराज को विकसित करने में 4000 करोड़ रुपया खर्च किया है। आज तक़रीबन 3 लाख से ज्यादा लोग इस दिव्य कुम्भ में रोजी रोटी जुटा रहे हैं। कुम्भ के इस अर्थशास्त्र की चर्चा कही नहीं है।
स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर से ज्यादा विदेशी पर्यटक हर साल बिहार का दौरा करते हैं। जाहिर है भारत के सांस्कृतिक /आध्यात्मिक प्राचीन स्थल आज भी देश -विदेश के दर्शनार्थियों /पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण होता है जिसका सरोकार सीधे स्थानीय रोजगार से है लेकिन पिछले 60 वर्षो से दुनिया के अति प्राचीन शहर अयोध्या में राम मंदिर को लेकर सिर्फ सियासत हो रही है ,जो कुछ लोगों के परसेप्शन पर आधारित है.जबकि ऐतिहासिक और वैज्ञानिक साक्ष्य सैकड़ों साल पुराने मंदिर की गवाही देता है। जिसमे स्थानीय लोगों के रोजगार के मुद्दे गौण हैं ,इकोनॉमिक्स की चर्चा नही है।मसला सेक्युलर कम्युनल में फसा है।
चाणक्य ने कहा था जो देश अपनी संस्कृति अपना अतीत खो देता है उस देश का कोई भविष्य नहीं होता है। पाकिस्तान के रावलपिंडी में स्थित तक्षशिला को विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय माना जाता है। यहां पर आचार्य चाणक्य और पाणिनी ने शिक्षा प्राप्त की थी आज यह खंडर में तब्दील हो चूका है। पाकिस्तान के एक इतिहासकार ने कहा था पाकिस्तान का इतिहास 70 साल से ज्यादा पुराना नहीं है। अगर पाकिस्तान तक्षशिला ,सिंधु घाटी और अन्य ऐतिहासिक केन्द्रो को अपनी विरासत मानने से इंकार करता है तो माना जायेगा कि पाकिस्तान को एक समर्थ देश बनने में अभी सैकड़ो वर्ष लगेंगे।
धर्म और मजहब के आधार पर संस्कृति और विरासत से अपने को अलग करने का दुष्परिणाम कई देशों ने देखा है। समाज में फैले अन्धविश्वास की निंदा की जानी चाहिए लेकिन जिस संस्कृति से हमने सभ्यता सीखी है ,इन्शानियत सीखी है ,विश्व को मानवता का सन्देश दिया है क्या हजारों साल प्राचीन उस संस्कृति को हम इसलिए ख़ारिज कर रहे हैं क्योंकि उसकी भाषा संस्कृत है।
माननीय सुप्रीम कोर्ट को यह बताना जरुरी है कि अंग्रेजी ने भी कभी सभ्यता इसी संस्कृत से सीखी थी। आज अंग्रेजी के ज्ञान से संस्कृति और संस्कृत को नकारे जाने की साजिश हो रही है। जिस परसेप्शन से अंग्रेजी इतिहासकारों ने संस्कृत और उसके जानकार के खिलाफ समाज में माहौल बनाया। ठीक वैसे ही परसेप्शन से मीडिया और बुद्धिजीवियों का एक वर्ग समाज में जहर घोलकर अपने को व्यवसायिक पत्रकार/ बुद्धिजीवी होने का दम्भ भर रहा है।

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