बिहार में बहार है क्योंकि यहाँ आज हज़ारों कुमार हैं
सैकड़ो पढ़े लिखे नौजवानो ने अपने अपने इलाके में अपने आईडिया से क्रांति लाने की पहल की है जिसका परिणाम जमीन पर दिखने लगा है....
शराबबंदी के बावजूद बिहार का राजस्व जी एस टी के कारण 23 % बढ़ा है। 14 वर्ष पहले का एक फेल्ड स्टेट आज बीमारू स्टेट की सूची से अपने को बाहर करके टॉप 5 की सूची में जगह बना लिया है। ऐसा दावा जे डी यू के एक प्रवक्ता का है। यानी नीतीश जी के राज में बिहार ने काफी तरक्की की है ऐसा उनका मानना है । हालिया चुनाव के नतीजे जे डी यू को उत्साहित भी करने वाले हैं। लेकिन क्षेत्रीय और जातीय पार्टियों के लगातार सिकुड़ते जनाधार के बीच नीतीश कुमार की सियासत भी सवालो को घेरे में है। उत्तर भारत के परिवार वाली पार्टियों के बीच शायद नीतीश जी अकेले शख्स हैं जिन्हे अपनी व्यक्तिगत छवि की चिंता पार्टी से ज्यादा है ,हर समकालीन नेतृत्व से उनके टकराव को इसी सन्दर्भ में देखा जा सकता है। समाज के हर वर्ग में मोदी सरकार की बढ़ती लोकप्रियता से और अपनी छवि को लेकर नीतीश कुमार क्या वाकई चिंतित हैं ? क्या बिहार के विकास से ज्यादा नीतीश कुमार अपनी सियासत को लेकर ज्यादा सजग हैं। लेकिन इस सवालों के बीच आम लोगों की चिंता कही छूट गयी है।
पढ़े लिखे उत्साहित नौजवानों ने इस दौर में बिहार की सूरत बदली है। मो इरफ़ान का रिक्शा ने गरीब मजदूरों की आमदनी में चार गुना इजाफा कर दिया था। आनन्द का "सुपर 50" ने सैकड़ों गरीब परिवारों को समृद्ध परिवारों की सूचि में डाल दिया है। सानफ्रांसिस्को से लौटा एक नौजवान सेंट बोरा स्कूल के जरिये तो धीरज कुमार ने सरल भाषा में अंग्रेजी सीखने की पुस्तक स्कूलों में मुफ्त बांटकर गरीब बच्चों को ज्ञान से धन -समृद्धि पाने का जरिया दिया है। ऐसे सैकड़ो पढ़े लिखे नौजवानो ने अपने अपने इलाके में अपने आईडिया से क्रांति लाने की पहल की है जिसका परिणाम जमीन पर दिखने लगा है।
2 हेक्टयेर से कम जमीन जोतने वाले 14 करोड़ से ज्यादा किसान अब प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम के 6000 रुपया का फायदा ले सकता है लेकिन बिहार की हालत यह है कि लाखों की संख्या में खेती किसानी करने वाले किसान के पास अपनी जमीन नहीं है और बिना जमीन का वह इसका हकदार नहीं हो सकता .
भास्कर मिश्रा की एक खास पहल ने ऐसे हज़ारों भूमिहीन किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के हकदार बना देने का सपना दिखाया है । जिस बिहार से विनोवा भावे ने कभी भू दान आंदोलन की शुरुआत की थी उसी बिहार में अपनी जमीन के एक छोटे से टुकड़े का दान इस अभियान का उद्देश्य है. स्थानीय लोग इस पहल का स्वागत करते हैं लेकिन सरकार को भी इसमें अपनी भूमिका निभाने की अपील करते हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस सोशल जस्टिस के नाम पर पिछले 30 वर्षों से बिहार में सरकारे बन रही है सामाजिक न्याय के नए नए युवराज सामने आये वहां आज भी बड़ी आवादी को दो जून की रोटी के लिए काफी जूझना पड़ता है। किसान -मजदूरों को अबतक सरकार से कोई अपेक्षा नहीं थी बस ट्रेन टाइमली रहे और घुसने का मौका मिल जाय ,बांकी अपनी जगह बिहारी खुद बना लेगा। यह बात सियासत को भी पता है कि सत्ता, विकास,शिक्षा और रौशनी से नहीं भीड़ से मिलती है लेकिन पहलीबार जाति और समुदाय की भीड़ ने सत्ता के पारम्परिक फॉर्मूले को बदल दिया है ।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस सोशल जस्टिस के नाम पर पिछले 30 वर्षों से बिहार में सरकारे बन रही है सामाजिक न्याय के नए नए युवराज सामने आये वहां आज भी बड़ी आवादी को दो जून की रोटी के लिए काफी जूझना पड़ता है। किसान -मजदूरों को अबतक सरकार से कोई अपेक्षा नहीं थी बस ट्रेन टाइमली रहे और घुसने का मौका मिल जाय ,बांकी अपनी जगह बिहारी खुद बना लेगा। यह बात सियासत को भी पता है कि सत्ता, विकास,शिक्षा और रौशनी से नहीं भीड़ से मिलती है लेकिन पहलीबार जाति और समुदाय की भीड़ ने सत्ता के पारम्परिक फॉर्मूले को बदल दिया है ।
पिछले साल देश के तक़रीबन 625 जिलों में से 515 जिलों में ग्राम स्वराज अभियान चलाया गया । अति पिछड़े 119 जिलों में इस अभियान में उज्ज्वला योजना, मिशन इन्द्रधनुष, प्रधानमंत्री सौभाग्य योजना, उजाला, प्रधानमंत्री जन-धन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और स्वच्छ भारत अभियान का शत प्रतिशत आच्छादन किये जाने का दावा भी किया गया।हालाँकि बिहार शत प्रतिशत की सूची में आज भी पीछे है। पिछड़े जिले यानि प्रधानमंत्री मोदी के एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट ने उन्हें वोट के रूप मेंइस साल रिटर्निंग गिफ्ट भी दिया है । लेकिन भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबा बिहार यह सवाल जरूर पूछ रहा है कि क्या ये योजनाए गरीबों से बगैर घूस लिए लागू नहीं किया जा सकता ?
गरीब और गरीबी को लेकर देश में खूब नारे बने कई चुनाव जीते गए लेकिन गरीबो तक पहुंचने का सार्थक प्रयास कभी नहीं हुए। दिल्ली से योजना बनी लेकिन गांव सड़को पर तमाम योजनाए धुल फांकती नज़र आयी। हालाँकि इस प्रयास में पी एम् मोदी के डायरेक्ट ट्रांसफर से भ्रष्टाचार पर कुछ अंकुश लगे हैं लेकिन हर स्कीम का जहाँ ऊपर से नीचे तक रेट फिक्स्ड हो वहां इस डायरेक्ट बेनिफिट का क्या औचित्य है ? क्या कभी किसी जिला अधिकारी को किसी गरीब का नाम राशन कार्ड में शामिल न होने पर दण्डित किया गया है ?
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