प्रधान मंत्री मोदी के बहाने देश से खिलाफत क्यों ?
दिक्कत क्या है ! 1947 में भारतीय सेना के साथ मिलकर पाकिस्तानी फौज को खदेड़ने वाले कश्मीरी आज इतना सशंकित क्यों हैं ?वजह पिछले 70 साल से वे एक नैरेटिव के शिकार रहे हैं.पाकिस्तान के नैरेटिव को हवा देने में मकामी सियासत ने भरपूर योगदान दिया है। .इन वर्षो में देश के लोगों ने इन्ही चौथे स्तम्भों से कश्मीर पर चर्चा और सम्पादकीय पढ़ी है। पिछले दिनों प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया और प्रेस एसोसिएशन के सौजन्य से आयोजित चर्चा में एक विद्वान सम्पादक कश्मीर का भारत में विलय और धारा 370 को एक पूरक बता रहे थे और पर्ची महराजा के नाम फाड़ रहे थे। एक संपादक जिनके वेब पोर्टल पर सुप्रीम कोर्ट ने टिपण्णी करते हुए उनपर फेक न्यूज़ फ़ैलाने और पीत पत्रकारिता करने आरोप लगाया है। इनका कहना था वहां पत्रकारों को पीटा जा रहा है। एक सम्पादक ने कहा हालात आपातकाल से भी बदतर है ,वहां अखबार बंद हैं । संसद भवन के नजदीक प्रेस क्लब से झूठ और अफवाह के इस चर्चा ने मुझे यकीन दिलाया है कि प्रेस की आज़ादी के नाम पर आप कुछ भी बोलने को स्वतंत्र हैं लेकिन शर्म इस बात को लेकर है क्या इन्ही विद्वान सम्पादकों के कचरा ज्ञान से हम जैसे साधारण पाठक अपनी राय बनाते हैं? देश साश्वस्त है मोदी जी के बाद कोई और आएंगे फिर प्रधान मंत्री मोदी के बहाने देश से खिलाफत क्यों ?
"इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो, चिनगारी का खेल बुरा होता है ।
औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है ।
धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो ।
हमलो से, अत्याचारों से, संहारों से भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो। ..
यहअटल जी की सिर्फ कविता नहीं है बल्कि उनका कन्विक्शन था... पंडित नेहरू से लेकर शास्त्री जी और इंदिरा जी तक अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी तक हर दौर में इस देश ने पाकिस्तान के विध्वंशक/निगेटिव प्रोपगैंडा को ही देखा है। हर दौर में राजनेताओ ने इसका डिप्लोमेसी और जंग से माकूल जवाब दिया है। आज भी पाकिस्तान 50 के दशक में खड़ा है और बैनलअकुयामी मदद पर आश्रित है और भारत एक बड़ी आर्थिक ताकत बनकर विकसित देशो को टक्कर दे रहा है। कश्मीर का समाधान जब 70 साल में नहीं हुआ तो इस समस्या का समाधान रातो रात नहीं होने वाला है। कठिनाइया है लेकिन इसका मुकावला राजनितिक इच्छाशक्ति से किया जा सकता है। 24 घंटे खबरिया चैनल के लिए इनदिनों खबर गढ़े जाते हैं। सोशल मीडिया इन खबरिया चैनलों का सबसे बड़ा श्रोत है। सूत्रों के हवाले खबर का यहाँ एक रिवायत रही है। वरिष्ठ पत्रकार इनदिनों खबर कम सम्पादकीय ज्यादा लिख रहे हैं जिस में सलाह कम आलोचना ज्यादा है । आमलोगों के बीच पत्रकारों के होने से सरकारों को भी सहूलियत होती है। लोगों की राय सरकार मीडिया से ही जानती रही है लेकिन जब मीडिया का एक वर्ग खुद एक पार्टी बनकर खड़े हों तो यह बताना मुश्किल है कि पत्रकार किसके लिए काम कर रहे हैं।
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