अयोध्या के राम और राम लला विराजमान का मिथिला कनेक्शन !

 हे पहुना अहाँ मिथिले में रहु ना ! मिथिला के लोक गीतों में अपनी सीता के  राम हर घर के  पाहून हैं जिनसे लोगों का सरोकार सजीव और आत्मीय  है। मिथिला की महिलाओं को आज भी यह गीत गाते सुना जा सकता है "साग पात तोडी तोड़ी गुजर करेबे यो ,मिथिले में रहियो"। अपने पाहून श्री राम को लेकर ऐसा अनुराग आपको शायद ही कही देखने को मिले   ... यह नाता  अयोध्या के  राम लला के साथ भी रहा है ।  रामजन्म भूमि विवाद को लेकर कुछ लोगों की व्यक्तिगत पहल को प्रभावी बनाने के लिए  1984 में पहलीबार दिल्ली के विज्ञान भवन में धर्म संसद की बैठक हुई। इसी धर्म संसद  ने राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का ऐलान किया था। लेकिन कमाल की बात यह है कि इस आंदोलन को जनता के बीच ले जाने की शुरुआत हुई ,तो जागरण अभियान के लिए मिथिला को हीं चुना गया । मिथिलांचल से शुरू हुआ  4 महीने के जनजागरण अभियान की कामयाबी को इस तरह समझा जा सकता है कि अयोध्या जी में नागा साधुओं के आंदोलन के बाद पहलीबार यहाँ  5 लाख से ज्यादा लोग इस जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में शामिल होने पहुंचे थे । 1989 के प्रयागराज कुम्भ के धर्म संसद में यह निर्णय हुआ कि निषाद राज ,शबुरी जैसे समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों की आस्था के राम को पुनर्स्थापित किया जाय। इसलिए जब राममंदिर शिलान्यास की बात आयी तो देवराहा बाबा ने एक दलित कार्यकर्ता कामेश्वर चौपाल का नाम दिया था  और भव्य मंदिर निर्माण की नींव रखने का सौभाग्य मिथिला के एक दलित स्वयंसेवक को ही   मिला।
संयोग देखिये राम लला विराजमान के पक्ष जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया तो अपने पाहून के गृह जिला अयोध्या की जिम्मेदारी मिथिला के अनुज कुमार झा को ही  मिला जो वर्तमान में वहां जिला अधिकारी हैं।    

480 साल पुराने इस राम मंदिर आंदोलन में गुरु गोविन्द सिंह से लेकर कई धर्म गुरुओं और हजारो साधु संतो का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हज़ारों लोगों ने मंदिर और राम लला की पुनर्स्थापना के लिए अपनी जाने भी दी है। लेकिन पिछले 70 वर्षो में अदालत के अंदर और बाहर राम मंदिर के मुद्दे को प्रभावी रूप से रखने में अशोक सिंहल ,विष्णु हरि डालमिया ,गिरिराज किशोर ,रामचंद्र परम हंस ,महंत अवेद्यनाथ ,ओमकार भावे ,सदानंद काकरे ,वामदेव जी महाराज ,देवकी नंदन जी ,देवराहा बाबा ,श्री चंद्र दीक्षित ,उमा भारती ,साध्वी ऋतम्भरा जैसे अनेकों विशिष्ट नाम ,जिसमे अधिकांश आज हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन यह भी सच है कि राममंदिर आंदोलन को जबतक लाल कृष्ण आडवाणी जैसे संकल्पित मजबूत  राजनैतिक इच्छाशक्ति वाले नेता नहीं मिला था तबतक इस आंदोलन की भूमिका अखिल भारतीय स्तर पर नहीं बनी थी। 

1885 से शुरू हुआ राममंदिर का आंदोलन के क़ानूनी विवाद में कई मोड़ आये लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता उसी राम लला विराजमान को दिया जिस राम लला को मिथिला सहित पूरी दुनिया मूर्ति में भी सजीव राम को देखती है। 1989 में लाल नारायण सिन्हा ने विश्वहिन्दु परिषद् के सामने राम लला विराजमान को एक पक्ष बनाने की पहल की थी। करोडो लोगों की आस्था को भारतीय कानून भी न्यायिक व्यक्ति मानता है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिसमे प्रतिष्ठापित मूर्ति के खिलाफ मुकदमा चला है। यही वजह है कि तमिलनाडु के विद्वान वकील के के परासरन ने धर्म ,अध्यात्म ,ऐतिहासिक साक्ष्य के साथ शिशु राम लला की जोरदार पैरवी की तो इस तर्क के सामने सुप्रीम कोर्ट में किसी पक्ष का तर्क टिका नहीं। सुन्नी वक्फ बोर्ड के अलावा सभी पक्ष के दावे को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मंदिर परिसर से बाहर 5 एकड़ जमीन देने की सिफारिश की है। खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सर्व सम्मति से सुनाया और हर जज इस फैसले के लेखक बने। विद्वान न्याधीशो ने शायद पहलीबार अपने विवेक और कानून को आधार बनाकर भारत का गौरव बढ़ाया है। 

 2. 77 एकड़ जमीन का विवाद 135 वर्षो तक क्यों चला ? शायद इस मुल्क की सियासत और समाज के पास इसका जवाब नहीं है। 2009  में विवादित भूमि में लगभग 50 गज जमीन इलाहबाद हाई कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को भी दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में राम और अयोध्या को स्वीकार करने में 10 साल लगे। भारत के चार प्रमुख जनपदों में कौशल -अयोध्या का खास महत्व रहा है जिनका सरोकार राम से है जाहिर है सदियों से यह भारत के प्रमुख तीर्थ स्थानों में एक है। हर साल यहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते है लेकिन पहलीबार दीपोत्सव का आयोजन करके मौजूदा सरकार ने अयोध्या के अर्थशास्त्र को भी पहचाना है। एक अकेली अयोध्या उत्तर प्रदेश के 8 जिलों के सबसे बड़े रोजगार के साधन बन सकते हैं। सेक्युलर कम्युनल की सियासत में उलझा कर इस मुल्क की सियासत ने यहाँ  की मुस्लिम और हिन्दू आवादी को  वर्षों तक विकास की रौशनी से दूर रखा। सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यवहारिक फैसला देकर अयोध्या का सम्मान बढ़ाया है। 

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