2019 : देश प्रथम का संकल्प हो तो कड़े फैसले का स्वागत है

इतना शोर क्यों है भाई ! देश के हर गली मोहल्ले में साल के जाते जाते पक्ष -विपक्ष की चीखतीं चिल्लाती आवाज़ के बीच जब केरल के गवर्नर महामहिम आरिफ मोहमद खान को यह चिल्लाते हुए सुना "आप मुझे चुप नहीं कर सकते ,मैं बोलूंगा " महामहिम के अभिव्यक्ति की आज़ादी भला कौन छीन सकता है ? लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित हुई जब देश के प्रसिद्ध इतिहासकार इरफ़ान हबीब गवर्नर के भाषण के बीच इतने उत्तेजित हुए कि वे चीखते हुए मंच की ओर लपके और आरिफ साहब को रोका। ऐसी छिटपुट घटना हर गली मोहल्ले में हो रही है प्रियंका गाँधी कहती हैं पुलिस ने उनका गला दबा दिया ,उनके साथ बदतमीजी की। जामिया के छात्र कहते हैं हमारे साथ बदतमीजी हुई ,हमारी अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनी जा रही है ,यह आरोप हर जगह  धारा 144 तोड़कर बताया जा रहा है। योगी जी की पुलिस कठघड़े में है और ममता जी की पुलिस अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सम्मान पाने के हकदार बन गयी है क्योंकि टैक्स पेयर के अरबों की सम्पाति फूंक दी गयी बंगाल पुलिस ने संख तक नहीं बजायी। खैर मुदा शोर का है !
 ज़ी न्यूज़ का दावा है उन्हें नागरिकता कानून के समर्थन में 1 करोड़ से ज्यादा कॉल लोगों के मिले है। अन्य चैनेलो पर नवाह कीर्तन की तरह नागरिकता के  ढोल नगारे लगातार बजने हैं ऐसा चैनलों का संकल्प है ,छूट भैया पत्रकार से लेकर पैदल हो चुके सम्पादकों ने भी अभिव्यक्ति की आज़ादी की इस लड़ाई में संजय की भूमिका में आकर अपने अपने धृतराष्ट्र के लिए संख बजा रहे हैं। शोर जैसी भी हो लेकिन देश बदल रहा है। 

इरफ़ान हबीब से हमने अपने हजारों साल पुरानी अपनी  संस्कृति का परिचय पाया है। भारतीय संस्कृति और उसके इतिहास को नेहरू जी के प्रगतिशील कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने एक अलग तस्वीर पेश की मकसद था देश की आने वाली पीढ़ी नेहरू जी  के बताये सेक्युलरिज़्म से आगे कुछ नहीं जाने। लेकिन 90 के दशक में इसी कोंग्रेसी धारा से पले बढे आरिफ मोहम्मद खान ने मुस्लिम ट्रिपल तलाक के विरोध में  शाहबानो के साथ खड़े हुए तो न तो कोई सेक्युलर कॉंग्रेसी न ही इरफ़ान हबीब जैसे प्रगतिशील इतिहासकार उनके समर्थन में मूँह खोला। इसी अभिव्यक्ति की आज़ादी के दम पर शलमान रश्दी ने पुस्तक लिखी थी ,लेकिन किसी ने उनकी पुस्तक पढ़ने की जुर्रत नहीं की और पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाने वाला भारत सबसे पहला देश बना। इरफ़ान साहब और अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर मैडल ,अवार्ड वापसी करने वाले लेफ्ट लिबरल के सामने ऐसे दर्जनों उदाहरण दिए जा सकते हैं जब वे अपनी जुबान चुप रखने की कीमत भी पायी है। लेकिन आज इनका आरोप है कि मोदी सरकार निरंकुश सत्ता चला रही।
वजह धारा 370 का खात्मा है ,वजह राम मंदिर का मुद्दा सामाजिक सौहर्द्ब के बीच  सुप्रीम कोर्ट का फैसला है ,वजह नागरिकता कानून है ,वजह कई और है लेकिन सबसे बड़ी वजह 30 साल बाद जनमत के बदले रुख के कारण कोएलिशन दौर के खात्मे की है जिसमे लेफ्ट और कांग्रेस व्यवस्था में अपनी भूमिका खोती जा रही है। 
इस देश ने वर्षों तक ३ से 4 फीसद के ऊपर  जी डी पी नहीं पाई। पहलीबार  जी डी पी में उछाल नरसिंघ राव के कड़े फैसले की वजह से आई जिसे वाजपेयी की सरकार ने आधारभूत संरचना से मजबूती दी। मनमोहन सिंह सरकार ने देश की बढ़ी पूंजी में सामाजिक कल्याण के कई योजनाओं को जोड़कर जी डी पी की चुनौतियों को बढ़ाया। 30 साल के इस दौर में देश ने  करोडो उद्यमी को जोड़ा। आज दुनिया में सबसे ज्यादा अरबपति भारत में ही है लेकिन दिल्ली दरबार के कारण सियासत में भ्रष्टाचार का भी बोलबाला बढ़ा। मोदी सरकार कई दशक बाद एक मजबूत सरकार बनकर सत्ता में आई लेकिन सिस्टम में व्यापत भ्रष्टाचार पर पूर्णतः अंकुश नहीं लगा पाई। सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में मोदी सरकार ने समाजवादी संकल्प को काफी विस्तार दिया लेकिन जमीन पर उन योजनाओ को उतारने की चुनौती बनी रही। डिजिटल विस्तार के दम पर लाभार्थियों को योजना का लाभ सीधे जरूर मिला लेकिन भ्रष्टाचार के प्रति न तो व्यवस्था का न ही समाज का रवैया बदला। हालाँकि नोटबंदी जैसे कठोर फैसले लेने में आम जनता ने उन्हें पूरा सहयोग किया लेकिन ऐसा सहयोग वे न तो राजनैतिक दलों से न  ही सिस्टम से ले पाए। कठोर फैसले लेने की जिद मोदी को कुछ अलग पहचान जरूर दिलाई है लेकिन सड़ी हुई सिस्टम बदलने का जो ख्वाब जनता ने उनसे पाली है वह मोदी सरकार 2 में अबतक  पूरा नहीं हुआ है।

देश में बड़े बदलाव के लिए एक मजबूत नेता के रूप में लोग इंदिरा जी को  याद करते हैं। राजनीतिक पंडित कहते है कि इंदिरा की चुनौती और वक्त मोदी जी से अलग थी। लेकिन अपने दौर में  धारा 370 और 35 A को लेकर इंदिरा जी मजबूर दिखी। वे भी पाकिस्तान के अनतर्राष्ट्रीय प्रोपेगंडा से जूझती रही। लेकिन आज इमरान खान खुद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलगथलग पाते हैं और भारत की बढ़त को स्वीकारते हैं तो यह क्रेडिट प्रधानमंत्री मोदी को जरूर जाएगा । कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद तेजी से बदल रही हालात मोदी सरकार के अहम् फैसले को देश निर्माण में याद किया जाएगा।
 स्वच्छ भारत मिसन से  ग्रामीण भारत और शहरों की बदली तस्वीर और  दुनिया के अबतक के सबसे बड़े व्यवहार परिवर्तन के आंदोलन को कामयाब बनाने का श्रेय भी मोदी सरकार को जाता है…नागरिकता कानून और एन पी आर पर मचे बवाल के बीच यह समझना जरुरी है कि आज़ादी से लेकर अबतक चुनाव  में धर्म देश के तमाम मुद्दों पर भारी रहा  है। अल्पसंख्यको को सुरक्षा का आश्वासन देकर कांग्रेस ने वर्षो तक सत्ता की सियासत में पकड़ मजबूत रखी। ,बाद में इसी अल्पसंख्यक सियासत को सेक्युलर नाम देकर परिवार केंद्रित पार्टियों ने कांग्रेस को मुस्लिम वोट बैंक से दूर करसत्ता की सियासत में संघर्ष बढ़ा दिया । इस देश में  अल्पसंख्यकों को  बहुसंख्यकों का भय दिखाकर सत्ता वर्षो तक हासिल किया गया है। 70 के दशक में समाजवादियों ने इसमें जाति का  तड़का लगाकर सत्ता छीनने का एक विकल्प ढूढ़ लिया था। लेकिन सामाजिक स्तर पर बदलाव और लोगों का जीवन स्तर बदलने में इसमें लोगों को कोई फ़ायदा नहीं मिला। 21 वी सदी बड़े बदलाव के लिए जाना जाएगा,इसमें भारत की जनता  का सहयोग भी है लेकिन  यह तभी संभव है जब केंद्र में मजबूत नेतृत्व हो लेकिन  शर्त यह है कि इसमें सियासी फायदे न जोड़े जाय। हर बड़े  फैसले में  अगर देश प्रथम का संकल्प है तो लोग सोशल मीडिया की शोर की तरह गली मोहल्ले की शोर को नज़रअंदाज़ कर देंगें। 
विनोद मिश्रा 


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