क्रोना वायरस और पाकिस्तान : "जो पाकिस्तान बच्चों को पोलियो ड्राप नहीं पिला पाया वह कश्मीर की क्या चिंता करेगा "

अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था आप दोस्त बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं। पाकिस्तान को लेकर हमें इस कड़वे सच्चाई के साथ जीना है कि एक फेल्ड नेशन जो अपने मासूम बच्चों को धर्मिक अंध विश्वास के कारण पोलियो ड्राप नहीं पिला सका वो क्या खाक कोविड जैसे महामारी को रोकने में विश्व को सहयोग दे पायेगा। कोविड 2019 पूरी दुनिया में महामारी का शक्ल अख्तियार कर चूका है ,खुद पाकिस्तान के कई शहरों में धारा 144 लागू है। मेडिकल इमरजेंसी लागु है ,53 से ज्यादा पॉजिटिव क्रोना के केस सामने आ चुके हैं । जबकि मेडिकल जांच की उसकी लिमिटेड क्षमता है और कई इलाको में हुकूमत की पहुंच नहीं है लेकिन वह भारत को कश्मीर को लेकर नशीहत दे रहा है। वही पाकिस्तान जिसने चीन को खुश करने के एवज में अपने किसी स्टूडेंट को वहां से ईवाक्योट नहीं कराया जबकि इस दौर में 1000 से ज्यादा कश्मीरी बच्चे वुहान चीन से लेकर ईरान तक जहाँ भी थे भारत सरकार ने उनके रिक्वेस्ट पर सकुशल उन्हें घर पहुंचाया है। आज कश्मीरी तीर्थ यात्री और स्टूडेंट्स कहते हैं मोदी है तो मुमकिन है।
पाकिस्तान के लोग मानते हैं कि वे प्रधानमंत्री मोदी के ट्वीट को बड़ी गंभीरता से लेते हैं क्योंकि दुनिया में वे अकेले शख्स हैं जो अपने एक्शन से आपको कभी चौंका सकते हैं। मोदी पहलीबार प्रधानमंत्री बने तो पाकिस्तान सहित सभी सार्क देशों को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इसे खुशामदीद कहा लेकिन उनकी फौज को यह दोस्ती कहाँ पसंद थी । सरहद पर तल्खियों के बीच मोदी ने पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने की जिद नहीं छोड़ी। 2015 में अफगानिस्तान के दौरे से लौटते हुए उन्होंने नवाज़ शरीफ के घर आने की इच्छा जाहिर की। शरीफ खानदान शादी समरोह में लाहौर में था , उन्हें विश करने प्रधानमंत्री मोदी लाहौर पहुंच गए। लेकिन उडी में अपने जवानो की पाकिस्तानी फिदायीन हमले में वीभत्स हत्या ने उनके अमन के इरादे को बदल दिया था। उसके बाद जो हुआ वह दुनिया के सामने है। 40 साल के पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद में कभी वहां की फौज ने सोची नहीं होगी कि नुक्लिएर बम का दावा करने वाले पाकिस्तान में कभी भारत अंदर घुस कर हवाई हमला करेगा। सर्जिकल स्ट्राइक के जरिये दहशतगर्द कैंप को तबाह कर देगा। कश्मीर में कुछ परिवारों को मिले विशेषाधिकार धारा 370 और 35 ए को ख़तम करके मोदी ने दुनिया को बता दिया कि भारत अब परसेप्शन की नहीं हकीकत की सियासत में यकीन करता है।
अपने अंदाज़ से चौकाने के लिए मशहूर मोदी दुनिया में 136 देशों के सामने क्रोना वायरस के महामारी के खतरे को भापकर उन्होंने 2014 से लगभग बंद पड़े सार्क सम्मिट में जान फुक्ने की कोशिश की। यह माकूल वक्त था जब क्रोना वायरस सामुदायिक स्तर पर नहीं फ़ैल रहा है अभी वह व्यक्ति विशेष से उनके संपर्क से फ़ैल रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के बीच ओपन बॉर्डर और कॉमन संस्कृति लोगों के बीच निरंतर आने जाने की रिवायत क्रोना को फैलने में संजीवनी का काम कर सकता है। वक्त रहते हुए मोदी ने अपने तमाम पड़ोसियों को सावधान किया और उन्हें इस महामारी से एक साथ मिलकर लड़ने के लिए सार्क फोरम को मजबूत करने की अपील की ,प्रधान मंत्री मोदी के इस ऐतिहासिक पहल को सभी सार्क देशों ने स्वागत किया और वीडियो कांफ्रेंस से संवाद बढ़ाने की पहल की। लेकिन पाकिस्तान फिर अपना रंग दिखा गया। प्रधानमंत्री इमरान खान इस पहल से हटने का जोखिम नहीं लिया बल्कि अपने जूनियर मंत्री को सम्मलेन के लिए भेजकर इस कांफ्रेंस की अहमियत कम करने की कोशिश की। पाकिस्तान के मंत्री बगैर मोदी जी को शुक्रिया कहे चीन के प्रयासों की सराहना की और कश्मीर राग छेड़कर यह साबित कर दिया कि पाकिस्तान में मानवतावादी पहल से ऊपर सियासत है और पाकिस्तान की सियासत में अगर कश्मीर फौज के लिए अहम् है तो पाकिस्तान को अपने नागरिको से ज्यादा चिंता उस फौज की है जिसकी दाल रोटी कश्मीर के नाम से चलता है। बहराल मोदी तो मोदी है उन्होंने भारत की ओर से 10 मिलियन डॉलर की कोविड इमरजेंसी फण्ड बनाकर मेडिकल इक्विपमेंट सहित विशेज्ञों के बीच संवाद प्रक्रिया शुरू करके सार्क को जिन्दा कर दिया है। पाकिस्तान को मेडिकल एड की शख्त जरुरत है वह ईरान की हालत से चिंतित है कि उसे भारत की ओर आज न कल हाथ बढ़ाना पड़ेगा ,इस हालत में मोदी ने एक सच्चे पडोसी के नाते पाकिस्तान खासकर इमरान खान को शर्मिंदगी से बचा लिया है।

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