#Lockdown यतो धर्मः ततो जयः यानी जान है तो जहान भी है ..

पिछले हफ्ते मैंने इसी बात की चर्चा की थी ,क्या भारत को लम्बे वक्त तक लॉक डाउन से आम लोगों को इन्साफ मिलेगा। ध्यान रहे 24 मार्च को लॉक डाउन का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था जान है तो जहान है।
हमे अपनों के साथ दुसरो की भी ज़िंदगी बचानी है। कुछ जाहिल लोगों को छोड़ दे तो गरीब अमीर हर तबके के लोगों ने इसका कठिन अनुशासन से अपने को घरों में कैद कर लिया है। लेकिन मुख्यमंत्रियों के साथ आज के वीडियो कन्फेरेंसिंग में प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है भारत के भविष्य के लिए समृद्ध स्वस्थ भारत के लिए जान भी और जहान भी दोनों पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। यानी आम आदमी की रोजी रोटी की भी चिंता जरुरी है। अधिकांश मुख्यमंत्री लॉक डाउन से अपनी कई जिम्मेदारियों से बच जाते है और इसे जारी रखने पर जोर दे रहे हैं जबकि मोदी आने वाले खतरे की तैयारी से आश्वस्त होकर कुछ इलाको में जीवन की गतिविधि बढ़ाने के पक्ष में हो सकते हैं क्योंकि लॉक डाउन ने उन्हें तैयारी के साथ साथ कोरोना के हॉटस्पॉट ढूंढने में मदद कर दिया है।

यतो धर्मः ततो जयः महाभारत सीरियल  में इस श्लोक को आजकल  बार  बार सुन रहा हूँ .. गीता में भी सत्य की जीत की काफी  चर्चा हुई है वहां भी यही संवाद दोहराया गया है  लेकिन यह बात मेरी समझ से परे थी कि सर्वोच्च न्यायलय ने अपने स्थापना काल से  क्यों  संस्कृत के इस महान श्लोक को अपना  शीर्ष वाक्य माना था ? भारत में तेजी से फ़ैल रहे कोरोना वायरस के बीच सुप्रीम कोर्ट के हर फैसले के केंद्र में सिर्फ गरीब ,.मजदूर और विस्थापित लोग हैं जिनके बीच इस महामारी ने अस्तित्व का जंग छेड़ दिया है। सरकार की चुनौती इस महामारी को फैलने से रोकना है और इसके इन्फेक्शन के प्रभाव को काम करना है। धर्म  जिसे सुप्रीम कोर्ट न्याय मानता है उसकी चुनौती हर के सामने काल की तरह मुँह खोले कोरोना के खतरे के साथ साथ हर दिन भोजन के संकट से जूझ रहे शहरी और ग्रामीण गरीब के संघर्षों को भी लॉक डाउन और मेडिकल सुविधा में सपष्ट दिशा निर्देश पालन करवाना है । जाहिर है राज्य सरकारें अपने संसाधन और मानव संसाधन से इस महामारी को रोकने के लिए  हर संभव कोशिशे कर रही है लेकिन चुनौतियों के बीच उनकी भी  सीमा है क्योंकि इतनी बड़ी आबादी के बीच पहुंचना भी अपने आप में चुनौती है । इसलिए प्राथमिकता कल से ज्यादा आज की है। और आज हर के जीवन को बचाना सबसे बड़ी चुनौती है जिसे सरकार अपना धर्म/फर्ज  मानती है। प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं जान है तो जहान है और इसके लिए सोशल डिस्टन्सिंग ही एक मात्र उपाय है

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का दावा है कि वे प्रतिदिन 7 लाख लोगों को पका हुआ खाना खिलाते हैं 80 लाख लोगों को फ्री राशन दी गयी है। देश के संपन्न राज्यों में एक दिल्ली जहाँ प्रति व्यक्ति आमदनी देश में सबसे ज्यादा है वहां अगर 85 फीसद आबादी फ्री राशन ले रहा हो तो आप देश के गरीब राज्यों की हालत का अंदाज़ा लगा सकते हैं। सवाल दावे और हकीकत समझने का है ! क्या वाकई  किसी गरीब की थाली में रोटी आती  है या  यह किसी मुख्यमंत्री के ट्वीट से ही सुनिश्चित हो जाता है । इसके लिए सक्षम सरकारी तंत्र चाहिए। जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी ने इसलिए पहले दिन इसकी शुरुआत जनता कर्फ्यू से की थी। यानी जनभागीदारी की ताकत से कोरोना वायरस के फैलते जहर के असर को लोग घरों में बंद होकर कम कर देंगे। लोगों में यह सन्देश गया कि देश बचाने का वक्त आ गया है अभी नहीं संभले तो मुल्क काफी पीछे चला जाएगा। 
कुछ पाखंड में फसे कट्टर मजहबी ने भले ही इस भावना को नज़रअंदाज किया लेकिन 99 फीसद लोगों ने लॉक डाउन को कामयाब बनाने के लिए अपना सब कुछ भुला दिया।
यह भारत के समाज और पहली पंक्ति में खड़े हमारे डॉक्टर और सुरक्षाकर्मी ने भी इसे यकीनी बनान दिया है । इन योद्धाओं ने 1 मार्च से 9 अप्रैल तक इस महामारी को दर्जन भर हॉट स्पॉट और कुछ राज्यों तक सिमित कर रखा है। यह सोशल डिस्टन्सिंग का कमाल है कि अबतक कोरोना के केसेज  लिमिट में है । जबकि इसी अवधि में इटली ,अमेरिका ,फ्रांस ,ब्रिटेन जैसे मुल्क हजारों की तादाद में लोग मौत के शिकार हो गए। वजह व्यवहार परिवर्तन की बात को जितनी जल्दी भारत ने समझा ये बात वेस्टर्न मुल्को को समझ नहीं आयी। 
स्वच्छ भारत अभियान इस शताब्दी का सबसे बड़ा व्यवहार परिवर्तन का आंदोलन था जिसमे मुल्क के 65 करोड़ से ज्यादा लोगों ने खुले में शौच जाने की प्रथा को ख़तम कर दिया था ।  सोशल डिस्टन्सिंग और बार बार हाथ धोने को भी लोगों ने व्यवहार परिवर्तन का ही आंदोलन माना है। पूरी दुनिया इसी विश्वास के साथ भारत की ओर देख रही है  उन्हें यकीन है कि चेचक,पोलियो जैसे वायरस को ख़त्म करने का बीड़ा भारत ने ही उठाया था। दुनिया आज भी कोई पक्का रिसर्च  नहीं है। पिछले 200 वर्षों में 10 से ज्यादा महामारी से दुनिया को सामना करना पड़ा है। कोरोना की लड़ाई इस विशाल भारत में एक इम्तिहान से कम नहीं  है लेकिन कोरोना  हारेगा तो भारत में ही हारेगा।  दुनिया के सबसे बड़े सामाजिक भागीदारी वाले आंदोलन का नेतृत्व  प्रधानमंत्री मोदी ने ही  2014 किया था और लोगों में व्यवहार परिवर्तन की चेतना जगाकर पुरे देश को ओ डी एफ कर दिया था  । आज सरकारी दावों के बीच इस व्यवहार परिवर्तन के आंदोलन में भी न्याय यानी धर्म की रक्षा जरुरी है किसी इलाके को सुरक्षित करने के लिए किसी को बड़ी कुर्बानी न देना पड़े। कोरोना को स्वच्छता और साहस से परास्त किया जा सकता है। लेकिन  दो जून की रोटी सबको सुनिश्चित हो और इसका प्रमाण   मुख्यमंत्री के ट्वीट से नहीं लोगों के थाली से मिले यह व्यवश्था बनानी होगी। 

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