कोरोना काल के कश्मीर में हो रहे परिवर्तन : एक नए दौर का आगाज़

पूरी दुनिया में कोरोना कहर के बीच कश्मीर भी अछूता नहीं है , इंतजामिया मजबूती से इन्फेक्शन को फैलने से रोकने की शानदार पहल की है । नागरिक सुविधा बहाल करने में जम्मू कश्मीर ने सबसे बेहतर काम किया है , लेकिन लॉक डाउन के बीच कश्मीर में कुछ बड़े सियासी बदलाव सामने आये हैं। यानी एक देश एक विधान का संकल्प भी इसी हफ्ते में पूरा हुआ है। वही सीमा पार आतंकवाद बदस्तूर जारी है लेकिन कई कीमती जाने गवाने के बाद सुरक्षावलों ने वादी के अलगाववाद और आतंकवाद पर जबरदस्त प्रहार भी किया है। आपने अबतक कश्मीर के किसी अलगावादी नेता के बेटे को आतंकवादी बनते नहीं सुना होगा। लेकिन यह भी पहलीबार हुआ तहरीक ए हुर्रियत के सरबरा असरफ सेहराई का बेटा जुनैद पिछले दिनों एक एनकाउटर में मारा गया। कौन है जुनैद ! हिज़्बुल मुजाहिद्दीन के चीफ रियाज़ नायकु के बाद जुनैद सबसे खतरनाक आतंकवादी था जो पिछले हफ्ते सुरक्षावलों के हाथों मारा गया है । स्थानीय नौजवानो में इन दोनों मिलिटेंट्स की पथरवाजी से लेकर राबिता बना और यही क्वालिटी इन्हे टॉप कमांडर तक पहुंचाया। इन दोनों नौजवानो की बदौलत पाकिस्तान ने लोकल गुमराह नौजवानो को पिछले वर्षों बंदूके थमा दी और इन्हे लोकल मुजाहिद्दीन के तौर पर पेश किया ।
इस साजिश को इस तरह समझा जा सकता है कि अबतक हुर्रियत के लीडर्स को पूछा जाता था कि उनके बच्चे विदेशो में पढ़ते है और देश विदेश में आला अधिकारी हैं फिर गरीबों के बच्चे को पत्थर और बन्दूक थामने के लिए क्यों उकसाया जाता है? लेकिन सहराई साहब ने अपने लीडर गिलानी साहब से एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने बेटा को हिज़्ब में सक्रीय होने से अपना ओहदा मजबूत कर लिया था हालाँकि मीडिया में उनके ड्रग्स को लेकर भी चर्चा है । हिज़्ब के चीफ सैयद सलाहुद्दीन के सभी चार बेटे कश्मीर में सरकारी अफसर और मुलाजिम है। गिलानी साहब सहित तमाम अलगाववादी लीडर्स के बच्चे बड़े बड़े ऑफिसर्स और कारोबारी है। लेकिन अब कश्मीर बदल चूका है यह एहसास अब हुर्रियत लीडर्स को भी है इसलिए पहली बार मौलवी फ़ारूक़ और प्रो लोन की वर्षी पर कश्मीर में कोई प्रदर्शन नहीं है।
लेकिन इन तमाम घटनाओं के बीच जम्मू कश्मीर ने अपने पुराने डोमिसाइल कानून में बड़े बदलाव के गजट नोटिफिकेशन लाकर पिछले 74 साल के सामाजिक असमानता को ख़त्म कर दिया है। कश्मीर में मानवाधिकार की बड़ी बड़ी बाते करने वालों ने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की सैकड़ो वर्षो से कश्मीर में रहने वाले ,भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद पाकिस्तान से आये शरणार्थी ,कश्मीर से बहार बियाही गई बेटियां क्यों महज एक अस्थायी आर्टिकल 35A/370 के कारण कश्मीर में अपने नागरिक अधिकार से महरूम है। एक देश एक विधान एक निशान का संकल्प आर्टिकल 370 और 35A के खात्मे के साथ पूरा हुआ था। लेकिन डोमिसाइल कानून में संशोधन के बाद अब जम्मू कश्मीर में वर्षो से रह रहे हज़ारो पाकिस्तानी शरणार्थी ,गोरखा फौजी ,सफाई कर्मचारी ,कश्मीर से बाहर शादी करने वाली महिलाये भारत की नागरिकता और अधिकार के साथ जम्मू कश्मीर के भी मानवाधिकार प्राप्त नागरिक बन गए हैं।
भारत ने पिछले हफ्ते पूरी ताकत के साथ गिलगिट बाल्टिस्तान में होने वाले प्रांतीय चुनाव का विरोध किया है। इन वर्षो में पाकिस्तान ने पुरे अधिकृत कश्मीर का डेमोग्राफी चेंज कर दिया ,गिलगिट को पी ओ के से अलग कर दिया लेकिन जम्मू कश्मीर के मामले में पाकिस्तान यू एन का रेजोलुशन लागु करने की बात करता है। यानी इन 70 वर्षों में झेलम का पानी बहुत बह चूका लेकिन पाकिस्तान ने कश्मीर पर अपना तर्क नहीं बदला है... पिछले वर्षों में कश्मीर में हुए सियासी बदलाव से भारत ने दुनिया को बता दिया है कि इस खित्ते में अपनी सम्प्रभुता और मानवधिकार की रक्षा करना भारत का कर्तव्य है उसे अब डेफ्फेंसिव होने की जरुरत नहीं है
जम्मू कश्मीर के ग्रामीण इलाके में पंचायती राज निज़ाम और बी डी सी के अस्तित्व में आने के साथ हालात में तेजी से बदलाव सामने आये थे। प्रशासन की बैक टू  विलेज स्किम ने लोगो को सीधे हुकूमत से राबिता का मार्ग खोल दिया। शहरी इकाइयों में स्थानीय म्युनिसिपल प्रतिनिधियों ने भी इस कोरोना जैसे महामारी में स्थानीय प्रशासन का जबरदस्त साथ दिया है। जम्मू कश्मीर अकेला यु टी है जहाँ प्रशासन ने पंचायत प्रतिनिधियों की बदौलत कोरोना पेशेंट के ट्रेसिंग और आइसोलेशन कर पाए हैं। इस तरह पिछले एक साल में कश्मीर के हालात में काफी तबदीली आयी है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सिलसीला अभी ख़तम नहीं हुआ है लेकिन सुरक्षवलो की मुस्तैदी इन चुनौती को फीका कर दिया है। पिछले दिनों भारत सर्कार ने आई टी बी पी के पंद्रह कंपनियों को जम्मू कश्मीर से बाहर निकालने का फैसला लिया है। कुछ दिनों पहले ऐसी ही एक पहल में 10 कंपनी सी ए  पी ऍफ़ को भी कश्मीर से वापस बुलाने की पहल की थी। जाहिर है पिछले साल अगस्त में जिन अतिरिक्त फाॅर्स का डेप्लॉयमेंट सरहदी इलाके में हुआ था उन्हें हालत बदलने के साथ  शायद धीरे धीरे  वापस बुलाने का निर्णय लिया गया हो। जो भी हो जम्मू कश्मीर में लोकशाही आतंकवाद और अलगाववाद को पश्त कर सकती है और यह जम्मू कश्मीर के पंचायती राज निज़ाम ने करके दिखाया है। 


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