सारे सेक्युलर ज्ञान राम मंदिर के लिए ही क्यों ? राम इस देश की संस्कृति हैं
5 अगस्त की तारीख नज़दीक आने के साथ बयानवीरों की चर्चा मीडिया में सबसे ज्यादा है। चर्चा इस बात की है मंदिर शिलान्यास स्थल पर 200 फ़ीट नीचे टाइम कैप्सूल रखा जाएगा ताकि भविष्य में राम और उनकी अयोध्या को लेकर कोई भ्रम न हो। मंदिर ट्रस्ट के चम्पत राय जी ने इसे सिरे से इस खबर को ख़ारिज कर दिया है। लेकिन मीडिया में छपी और टीवी पर प्रसारित इस खबर को समझने की कोशिश किसी ने नहीं की है । कुछ दिन पहले एक व्यक्तिगत चर्चा में कामेश्वर चौपाल ने मुझे भी बताया था कि अब किसी मंदिर निर्माण में उसके क्रोनोलॉजी को जरूर भूमि पूजन के समय रखनी चाहिए ताकि कभी आने वाली पीढ़ी को सबूत जुटाने में वर्षों पापड बेलना नहीं पड़े।
100 साल की अदालती लड़ाई के बाद जब केस सुप्रीम कोर्ट में सुना जा रहा था तो एक दिन जजों की पीठ ने परासरण जी से पूछा आप इतने बुजुर्ग हैं और खड़े होकर अपना पक्ष रखते हैं। इसे आप अगले दिन भी रख सकते हैं।
परासरण जी ने कहा था मीलार्ड मैं 92 वर्ष का हो चूका हूँ और मेरे जीवन का उद्देश्य अब सिर्फ राम लला विराजमान का भव्य मंदिर है। सबूत जुटाने में 100 साल से ज्यादा लगे हैं मेरे बाद अब यह इंतजार ख़तम होना चाहिए। सियासत में फसी अयोध्या और राम लला के लिए इस देश में लोगों के साथ कैसा जुड़ाव है इसे शरद पवार और ओवेसी जैसे लोग नहीं समझेंगे जो अपनी सियासत में राम को भी सेक्युलर बहस में ले आते हैं। उस राम को जिनका जीवन ही पंथनिरपेक्ष रहा है,संघर्ष से भरा उनका जीवन आज भी समाज का आदर्श है । अलम्मा इक़बाल जब राम को इमामे हिन्द कहते हैं तो राम सेक्युलर हो जाते हैं लेकिन तुलसी दास जी के राम की सेक्युलर वाली छवि नहीं रहा जाती है ? सैकड़ो साल पुराने हजारों ऐतिहासिक मंदिर पाकिस्तान में तोड़ दिए गए। इस्लामाबाद में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के पुराने कृष्ण मंदिर बनाने के लिए अदालत ने इजाजत भी दे दी लेकिन हुकूमत के लोग इसे बनने नहीं दिया। वजह इस्लामिक मुल्क में मंदिर नहीं बन सकते। 70 साल पुराना मुल्क यह भूल गया कि वह भी भारत के हजारों साल की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा है। लेकिन पाकिस्तान की तरह भारत में भी कुछ लोगों की तारीख सल्तनत और मुग़ल से शुरू होती है और वही हमें सेक्युलरिज्म समझाते हैं।
कितने नकली हैं हम लेकिन देश के आदिवासी समाज आज भी वही असली सोना है और उनके राम भी वही आदर्श दोस्त हैं। निषाद राज , केवट और शबरी के राम।
राम मंदिर शिलान्यास में जगह जगह से मिटटी और नदियों के जल लाने का अभियान शुरू हुआ तो झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में सबसे ज्यादा उत्साह था। स्थानीय कार्यकर्ताओं ने सरना आदिवासियों के गाँव से मिटटी लाने की शुरुआत की और 51 गांव से मिट्टी उठाया। इन सरना स्थलों पर उरांव, मेघा,विश्वकर्मा पाहण जैसे कई आदिवासी गांव के लोगों पुरे विधि विधान से अपने अपने गाँव की मिट्टी का कलश कार्यकर्ताओं को सौपा। अन्य गांव के लोगों की जिद थी कि हर गाँव से मिट्टी जानी चाहिए। क्योंकि राम उनके वशजों के भी सखा और मित्र हैं। भगवान राम जब वन गमन के लिए निकले थे तो जंगलों में रहने वाले वनवासी समाज का आतिथ्य स्वीकार किया था। आज जब अयोध्या में उनके राजा राम का भव्य मंदिर बन रहा है तो हर कोई आह्लादित है। कोरोना काल के संकट के बीच सामाजिक दुरी बनाते हुए भाषा,प्रान्त ,जाती विरादरी ,मज़हब से ऊपर उठकर सुदूर भारत के गाँव में अपने राम लला के प्रति यह आकर्षण ही भारत के श्रेष्ठता और उसकी सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है।
इस देश में उत्तर से लेकर दक्षिण तक सबसे ज्यादा राम और उनकी मर्यादा पर ही लिखी गयी हैं। रहीम के राम ,कबीर के राम ,रसखान के राम और गांधी के राम। . राम भारत की प्राचीन संस्कृति की वो कड़ी हैं जिसे छोड़कर भारत और भारतीय समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए आज जब मंदिर निर्माण में चंदे की बात आती है, एकाउंट की बात होती है तो राम को मानने और जानने वालों को हसी आती है। राम की सेना के लिए जब समुद्र में पुल बनाने की बात सामने आयी तो महीने के अंदर श्रमदान से सेतुसमुंद्रम का निर्माण हो गया। गिलहरी से लेकर महावली हनुमान ने अपने हिस्से के श्रमदान से रामेश्वरम में रामसेतु का निर्माण किया था. जिसके निशान आज भी मौजूद हैं। राम मंदिर निर्माण में सरकारी मदद के बजाय तीर्थ ट्रस्ट ने भारतीय समाज से सहायता लेने का निर्णय लेकर सबके राम को और मर्यादित किया है।
राम मंदिर निर्माण का संकल्प श्रम,साधन और श्रद्धा से पूरा होगा। यानी श्रम का महत्व ज्यादा होगा। 5 अगस्त को होने वाले शिलान्यास समारोह को कोरोना वायरस के कारण सीमित आयोजन में तब्दील किया गया है लेकिन माहौल बदलने के साथ लोगों की उपस्थिति बढ़ेगी। अयोध्या को सजाने सवारने का काम जोर शोर से चल रहा है राम की भव्यता का एहसास आने वाले श्रद्धालुओं को अयोध्या प्रवेश के साथ मिले इसकी तैयारी चल रही है। अनेक चुनौतियाँ के बीच आज भी महामना मदन मोहन मालवीय जी को याद किया जा सकता है। देश के धार्मिक स्थल करोडो लोगों के भावना से जुड़े होते हैं लेकिन ये लाखों लोगों के लिए रोजगार के प्रमुख साधन होते हैं. इस देश की प्राचीन परम्पराओं ने अर्थ के बाद ही धर्म और मोक्ष की चिंता की है जाहिर है राम में एकबार फिर लाखों भारतीय अपने अर्थ ,धर्म और मोक्ष को ढूंढने अयोध्या आएँगे और भव्य राम राज्य के सपनो को साकार करेंगे।
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