5 अगस्त : भारतीय लोकतंत्र का सेक्युलरिज्म डे

5 अगस्त! 500 साल के संघर्ष और बलिदान के बाद अयोध्या जन्मस्थान पर राम मंदिर का शिलान्यास पी एम मोदी के हाथों संपन्न हुआ ..मानो वर्षो बाद राम वनवास के बाद अयोध्या जी लौट आये हों । 5 अगस्त भारत के सेक्युलरिज्म में जम्मू कश्मीर भी ऐतिहासिक हो गया जिसमे एक समुदाय को मिले विशेष अधिकार को हटाकर एक देश एक संविधान के संकल्प को लागू किया गया था । कुछ अंग्रेजी दा बुद्धिजीवी और अंग्रेजी अखबारों के वरिष्ठ पत्रकारों का इनदिनों हाज़मा खराब हो गया है,क्योंकि नेहरू के भारत में वेस्ट के सामने ईस्ट मुखर होने लगा है । जम्मू के दलित बाल्मीकि समाज के बेटी गुड़िया बी एस एफ के लिए सेलेक्ट हो गयी लेकिन उसे यह नौकरी इसलिए नहीं मिली क्योंकि उसके पास जम्मू कश्मीर का परमानेंट रेजिडेंट सेर्टिफिकेट नहीं  था।  दलित समुदाय के मोहन लाल बस चलाते हैं लेकिन उन्हें पद/तनख्वाह सफाई कर्मचारी की ही मिलती है। क्योंकि बाल्मीकि समाज के लोग न तो उच्च शिक्षा ले सकते है न ही सफाई के अलावे दूसरा जॉब प् सकते हैं।  कश्मीर की बेटी अगर भारत में कही शादी करे तो उसकी नागरिकता ख़त्म हो जाती है लेकिन अगर वह शादी पाकिस्तान में करे तो उसकी नागरिकता सुरक्षित है। 
यह सेक्युलर हिंदुस्तान में जम्मू कश्मीर का संविधान था। पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्लाह अक्सर कहते थे कि जम्मू कश्मीर रियासत अपने संसाधन से अपने मुलाजिम को एक महीने का तनख्वाह नहीं दे सकती। रियासत के हर छटे बड़े बजट में पैसा केंद्र  ,भारत के टैक्सपेयर का लेकिन कश्मीर में सियासत को ऑटोनोमी चाहिए ,सेल्फ रूल चाहिए ,द्वारा 35A  चाहिए क्यों भाई ,क्यंकि भारत नेहरू जी के प्रति कृतज्ञ है वह सेक्युलर है इसलिए  अपने बाल्मीकि ,गोरखा ,पाकिस्तानी रिफ्यूजी  की नारकीय जीवन की चिंता कभी नहीं करता ,उसे फर्क नहीं पड़ता कि क्यों तिब्बत सीमा पड़ खड़े लद्दाखी को बुनियादी सुविधा नहीं मिलती। धारा 370 हटाए जाने के बाद मैं एक महीने कश्मीर रहा हूँ ,जो सियासतदां  इस ग़लतफहमी में थे कि मकामी लोग सड़कों पर निकलेंगे वे  इस इंतजार में बैठे है कि सरकार इनके लूट की सम्पति को कब कब्ज़ा करेगी। लोग अपने काम में व्यस्त हैं। पंचायतों ने स्थानीय प्रशासन के जिम्मेदारी संभाल ली है. . 

आप लखनऊ या कानपुर में  किसी सवारी गाड़ी को ढूंढिए अगर आपने उसे अयोध्या कहा तो वह आपको जन्मस्थान ही कहेगा। लेकिन हमारे बुद्धूजीवी को अबतक राम जन्म स्थान के सबूत नहीं मिले हैं और उन्हें  कभी नहीं मिलेंगे क्योंकि वे सेक्युलर हैं। इनके लिए हिंदुइज्म काल्पनिक है बांकी सारे धर्म वैज्ञानिक। 
आज सुषमा जी की पहली बरषी भी है। संसद में उनके सेक्युलरिज्म पर दिए गए भाषण मेरे कानों में आज भी गूंजती है। " चूँकि हम अपने हिन्दू होने पर शर्म महसूस नहीं करते इसलिए हम साम्प्रदायिक और कम्युनल हैं। इस देश में आजकल सेक्युलर होने का सेर्टिफिकेट हिन्दू होने पर शर्मिंदगी महसूस होने पर ही मिलता है.. एक हिन्दू अच्छा हिन्दू बने ,एक मुसलमान अच्छा मुसलमान बने ,एक सिख अच्छा सिख बने और एक दूसरे के मजहब ,संस्कृति का आदर करे इससे ज्यादा सेक्युलरिज्म  क्या हो सकता है ? लेकिन जबतक आप हिन्दुओ को उनकी संस्कृति को खुले आम गाली नहीं देते तबतक आप सेक्युलर नहीं हो सकते"

 शेखर गुप्ता  ने लिखा है कि आज अंग्रेजी दा लेखकों ने सेक्युलरिज्म को  फेल कर दिया है।मैं कहता हूँ इस पीढ़ी के सम्पादकों ने सत्ता को साधने के लिए सेक्युलरिज्म का फेक नेरेटिव खड़ा किया था जिसमे सत्ता कुछ परिवारों तक सिमित थी और लेफ्ट लिबरल उनके फेक नेरेटिव को लोगों के बीच ओपिनियन खड़ा करते थे । यही लुटियन दिल्ली का इकोसिस्टम  था जिसे संघ के  वर्षों के संघर्ष ने तार तार कर दिया है। यह एक वैचारिक द्वंद्व सिर्फ  कब्जे का था जिसमे  लेफ्ट /लिबरल /सेक्युलरिस्ट अपने को  पराजित महसूस कर रहे हैं।  

मंदिर शिलान्यास के मौके पर अपने उदवोधन में  संघ प्रमुख मोहन भागवत ने राम चरित मानस के पंक्ति का उद्धरण देते  हुए कहा था कि "जिन्हे के कपट दम्भ नहीं माया ., तिन्हके ह्रदय बसहु रघुराया।" . हमारे ह्रदय में भी राम का मंदिर होना चाहिए तभी सबके लिए सबका साथ  होने का संकल्प मजबूत होता है। उन्होंने पूर्व संघ प्रमुख देवरस जी के चर्चा करते हुए कहा था कि जन्मभूमि आंदोलन में 30 साल लगेंगे तब कहीं न्याय मिलेगा। कई पीढ़ियों ने तो जिंदगी खफा दी अयोध्या से श्री राम का नाता जोड़ने के लिए। 
ठीक वैसे ही भारत की संस्कृति में हज़ारों साल से कश्मीर का अपना महत्व रहा है। लेकिन आज़ाद भारत में उस कश्मीर में जाने के लिए किसी भारतीय को परमिट लेना पड़े यह बात डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को रास नहीं आयी। जम्मू  कश्मीर का विलय राजा हरी सिंह  ने भारत के साथ की थी लेकिन विशेष राज्य का दर्जा अब्दुल्लाह परिवार के लिए क्यों ? पहले तो बगैर परमिट डॉ मुखर्जी को कश्मीर घुसने नहीं दिया गया उनके प्रोटेस्ट करने पर  उन्हें गिरफ्तार किया गया और कश्मीर में  उनकी रहस्य्मय तरीके से मौत भी हो  गयी। इस मौत ने देश को जरूर स्तब्ध कर दिया था लेकिन इस देश की सेक्युलरिज्म के लिए वह एक मामूली घटना थी। तीस साल के अभियान में राम मंदिर का संकल्प पुर हुआ तो कश्मीर का भारत में सम्पूर्ण विलय के लिए 70 लगे क्योंकि  जनमानस को देश के स्वाभिमान और सेक्युलरिज्म के बीच के अंतर को समझने में 70 साल लगे। 

राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल जी का मानना है कि राम भगवान् है या नहीं ,कृष्ण सर्वशक्तिमान ईश्वर थे या नहीं ,माता जानकी भगवती थी या नहीं यह बहस का विषय है  लेकिन ये हमारे पुरखे हैं  इसमें तो कोई बहस के गुंजाइस नहीं हो सकती । अपनी आत्महीनता के कारण अपने पुरखे अपने आराध्य को लेकर अपने सरोकार को हम  मुखर नहीं बना सके और हम पर सेक्युलरिज्म लाद दिया गया. ..  जिसमे हम अपने बच्चे को ग से गणेश पढ़ाने के बजाय ग से गधा पढ़ाने लगे। ये सब अनजाने में नहीं हुआ अंग्रेजी हुकूमत तक संस्कृत भाषा के रूप में स्थापित  थी जिसमे अपनी संस्कृति को लोग जानते थे। आजादी के बाद संस्कृत को भाषा के रूप में ख़त्म करके संस्कृति को ही हासिये पर डाल दिया गया। जाहिर है कश्मीर को हम कल्हण , शंकराचार्य, अभिनव गुप्त  और विवेकानद से जानने की कभी कोशिश नहीं की, हमने सेक्युलरिज्म में  शेखुल आलम और सुफिज्म से इसकी शुरुआत समझी  और जमात पर आकर ख़त्म कर दी। उस कश्मीर में बाल्मीकि ,बौद्ध ,पहाड़ी , कश्मीरी पंडित ,पी ओ के  रिफ्यूजी  की वेदना उनके मानवाधिकार सेक्युलरिज्म में फिट नहीं बैठता था। 
आज ओवेशी और कुछ अनपढ़ इमाम सुप्रीम कोर्ट के न्याय से ऊपर अपना न्याय सुना रहे हैं कि वहां बाबरी मस्जिद था ,रहेगा शायद उन्होंने देश के सेक्युलरिज्म को बहुत कमजोर समझा है। इसी मजहब के नाम पर देश एक विभाजन का दंश झेल चुका है। देश की  जनता अपनी आत्महीनता से आज ऊपर उठ चुकी है,वह इन धमकियों का मतलब जानती है।  तथाकथित सेक्युलरिज्म का ढोंग करने वाले किसी न किसी तरह प्रतिक्रिया बनाकर  सत्ताधारी पार्टी को ही मजबूत कर रहे हैं। देश की जनता को अब सेक्युलरिज्म सिखने के लिए न तो कोई वामपंथी ,समाजवादी चाहिए न ही अंग्रेजी दा बुद्धिजीवी। देश अपनी संस्कृति अपनी  लोकभाषा में  ही अपने धर्म के साथ दूसरे धर्मों का आदर करना जानता है। 

टिप्पणियाँ

ऐतिहासिक भूलों की ओर इंगित करते हुवे,बर्तमान को रेखांकित कर भविष्य का संकेतक प्रेरणादायी आलेख केलिय बधाई।
Vijay Kranti ने कहा…
बहुत सादगी से बहुत सही और पैनी बात कही है विनोद जी आपने। इस देश का दुर्भाग्य है कि इसका तथाकथित बुद्धिजीवी अपने आप को प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष सिद्ध करने लिए अपनी संस्कृति, अपनी राष्ट्रीय पहचान और अपने पूर्वज प्रतीक पुरुषों को गाली देता है। लेकिन शुक्र है कि वक़्त बदल गया है। कश्मीर और अयोध्या में इस नए युग की शुरुआत हो चुकी है। अब ये लोग अर्थहीन हो चुके हैं।

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