कश्मीर : नैरेटिव के असर कम हुए तो दिल्ली और दिल की दूरियां भी कम हुई !
पिछले 70 वर्षों में झेलम का पानी काफी बह गया होगा लेकिन पहलीबार बहते पानी से आवाज़ कुछ अलग सी आ रही है । पिछले दिनों जब मैं कश्मीर से दिल्ली लौटा था तो मेरे एक कश्मीरी मित्र ने पूछा था कि वादी में क्या बदलाव दिखा? मैंने कहा था वही शिकारा ,वही डल ,वही लाल चौक ,वही लोग। सारी पुरानी चीजें ही थी लेकिन जो बदलाव नजर आया वह नैरेटिव में था। आम लोगों को अब सियासत से ज्यादा अपने रोजमर्रा की कहानी में ज्यादा दिलचस्पी है। लोग नयी पहल के लिए सीरियस हैं। सियासत बहुत हो चुकी है । कश्मीर में दिल्ली बनाम श्रीनगर की सियासत चर्चा से बाहर तो नहीं हुई है लेकिन लोगों को अब इन चर्चाओं में दिलचस्पी नहीं है ।
आर्टिकल 370 हटाए जाने के 22 महीने बाद जब जम्मू कश्मीर के नेता पिछले दिनों ऑल पार्टी मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी से राजधानी दिल्ली में मिले तो उन्होंने जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा दिए जाने के साथ उप राज्यपाल मनोज सिन्हा को राज्यपाल बनाये जाने की भी मांग की थी।
परसेप्शन का यह बदलाव कश्मीर जा कर आप खुद महसूस कर सकते हैं। पिछले 40 वर्षों से अलगाववाद परस्त नैरेटिव का अगर आपको अनुभव हो फिर आप कोरोना महामारी के बीच प्रशासन के इंतजाम को लेकर कश्मीर में किसी से पूछ सकते हैं कि, क्या चुनी हुई सरकार इस समय जम्मू कश्मीर में बेहतर परफॉर्म कर सकती थी ? कश्मीर में आम और ख़ास से एक ही जवाब मिलेगा यह दौर अच्छा है। प्रशासन ने जम्मू कश्मीर को बेहतर संभाला है।
याद कीजिये स्पेशल स्टेटस हटाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में 60 हज़ार से ज्यादा आवामी नुमाइंदे चुनकर आये हैं। सत्ता के विकेन्द्रीकरण की संवैधानिक व्यवस्था ने जम्मू कश्मीर में ग्रास रूट्स डेमोक्रेसी में जनभागीदारी को बढ़ाकर विकास को गली कूचे में उतार दिया है। जम्मू कश्मीर के तमाम पिछड़े इलाके में आज बिजली ,पानी और पक्की सड़के हैं । इस वर्ष केंद्र से 12,500 करोड़ रूपये का बजट त्रिस्तरीय पंचायती राज को मिला है ,पंचायती राज को अपने इलाके के विकास का खुद प्लान बनाना है और जन भागीदारी से तरक्की की गति में तेजी लानी है ।
ऑल पार्टी मीटिंग में प्रधान मंत्री मोदी से तीन घंटे की मुलाकात को मेहबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्लाह एक बेहतर शुरआत मानते हैं लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या आर्टिकल 370 कश्मीर को वापस मिलेंगे ? तो उमर अब्दुल्ला कहते है वे इतना मूर्ख नहीं है, वे जानते हैं कि उन्हें विशेष राज्य का दर्जा कभी नहीं मिलेगा। उनकी पार्टी पूर्ण राज्य चाहती है। मेहबूबा मुफ़्ती भी भरोसे बहाली की मांग से आगे नहीं बढ़ पाती हैं। ये बदलाव कश्मीर में बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी को लेकर बनी फेक नैरेटिव से बिलकुल अलग है।
अटल जी के बाद नरेंद्र मोदी ऐसे पहले नेता नेता है जिनसे कश्मीर में हालत बेहतर होने की लोगों में उम्मीद है। यही वजह है कि जम्मू कश्मीर के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों और अन्य 11 अन्य शीर्ष नेता जब प्रधानमंत्री मोदी से मिलने दिल्ली आये तो कश्मीर के नेताओं में तल्खी गायब थी। मानो दिल्ली और दिल की दूरी एक झटके में गायब हो गयी है।
जम्मू कश्मीर स्टडी सेंटर के अरुण कुमार जी के कश्मीर नैरेटिव को लेकर संघर्ष को मैंने देखा है। जब वे बताते थे कि आर्टिकल 370 और 35A असंवैधानिक है। स्पेशल स्टेटस का दर्जा आम लोगों के फायदे के लिए बिल्कुल नहीं है। वे बताते थे कि संविधान के इस अनुच्छेद से जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार का हनन हो रहा है, तो दिल्ली में बुद्धिजीवी और मीडिया के बीच यह चर्चा होती थी कि अरुण कुमार जी एक काउंटर नैरेटिव तैयार कर रहे हैं। देश में कुछ लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि यही स्पेशल स्टेटस जम्मू कश्मीर में अलगाववाद की वजह है।
5 अगस्त 2019 के बाद स्थिति लोगों के सामने है । स्पेशल स्टेटस हटने के बाद कश्मीर जलने के बजाय इसने ज्यादा तरक्की की है। देश दो साल से कोरोना से लड़ रहा है वरना जम्मू कश्मीर अभी विदेशी -देशी इन्वेस्टमेंट का बड़ा हब बनने के लिए तैयार था।
मुझे याद है एक दौर ऐसा भी था जब माननीय सुप्रीम कोर्ट में जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35 A को लेकर जब भी PIL डाली जाती थी तो कोर्ट बिना बहस के उसे रिजेक्ट कर देती थी। मानो कोर्ट में चर्चा के साथ ही कश्मीर में स्थिति बिगड़ जाएगी।
यह उसी पुराने नैरेटिव का प्रभाव था और अब जब पीडीपी के वरिष्ठ नेता मुजफ्फर हुसैन बेग से किसी ने प्रधानमंत्री से मुलाकत के बारे में पूछा तो उनका जवाब था प्रधानमंत्री ने इस मीटिंग में हर की बात को गौर से सुना और उन्हें पूरा करने का भरोसा दिया। लेकिन उन्हें जब पूछ गया कि आर्टिकल 370 और विशेष राज्य के दर्जे पर प्रधानमंत्री का क्या रुख था ? बेग साहब ने बताया किसी ने स्पेशल स्टेटस की चर्चा नहीं कि क्योंकि यह मामला सबजूडिस है और यह कोर्ट को तय करना है कि विशेष राज्य का दर्जा संवैधानिक है या असंवैधानिक। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ में इसे सुन रहा है।
यकीन कीजिए यह प्रक्रिया अगर 30 साल पहले हुई होती तो कश्मीर में न तो खून खराबा होता न ही बेकसूरों की जान जाती और न ही पाकिस्तान हर समय फूफा बनकर ताका झांकी की हिम्मत करता। खैर, देर आयद दुरुस्त आयद ! 2004 में अटल जी की सरकार चुनाव हार गयी थी लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार ने अटल जी की कश्मीर निति को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया था। ऑल पार्टी हुर्रियत के पूर्व अध्यक्ष मौलाना अब्बास अंसारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलने आये थे। हुर्रियत लीडरों की भारत सरकार से यह तीसरी मुलाक़ात थी। मैंने उन्हें ऑफ द रिकॉर्ड पूछा था मौलाना साहब बातचीत की पहल आगे बढ़ेगी ? अब्बास अंसारी ने कहा था कि मैं कश्मीर का अपना अनुभव बताता हूँ 'कांग्रेस पार्टी में कश्मीर मसले का हल करने का गट्स नहीं है और न ही राजनीतिक इच्छाशक्ति वे हमेशा यहाँ स्टेटस को बना कर रखना चाहते हैं। यह साहस और स्टेक बीजेपी के पास ही है वह स्टेटस को तोड़ सकती है। नयी पहल कर सकती है जिसकी जरुरत कश्मीर को है। झेलम का पानी बहुत बह चूका ,कुछ तबदीली होनी चाहिए थी। वह सिर्फ वाजपेयी कर सकते थे ,क्या वे दुवारा आएंगे ?
ऑल पार्टी मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी से जिस तरह कश्मीर के लीडर मिल रहे थे। खुद प्रधानमंत्री उनके साथ संवाद की कड़ी को जोड़ रहे थे क्या ऐसी ही छवि मोदी की अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया ने बनायी है ? क्या ऐसी ही छवि देश के बुद्धिजीवियों ने अपने नैरेटिव के कारण बनने दी है। एक विचारधारा के कारण सियासत को दुश्मनी करार देने की साजिश कश्मीर की नैरेटिव ने की है। बारामुला कश्मीर के पूर्व सांसद प्रो अब्दुल रशीद शाहीन ने अपनी अमेरिका दौरे का संस्मरण मुझे 2002 में सुनाया था। अटल जी की सरकार में नेशनल कांफ्रेंस के सांसद शाहीन साहब को ह्यूमन राइट्स की चर्चा के लिए अमेरिका भेजा गया था। शाहीन साहब ने बताया था कि वहां की चर्चा सुनकर उनका सर शर्म से झुक गया था। एक छोटा सा मुल्क पाकिस्तान ने कश्मीर को लेकर कितना फेक नैरेटिव दुनिया में फैला रखा था ,कितना अनर्गल आरोप प्रोपेगेंडा न होकर यकीनी बन गए थे और पूर्व हुकूमतों ने कभी इस फेक नैरेटिव के खिलाफ कुछ भी नहीं किया था । शाहीन साहब ने कहा कश्मीरी होने के वाबजूद उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर संघर्ष करना पड़ा कि वे वहां के चुने हुए नुमाइंदे है और बेहतर सच बता सकते हैं।
भारत -पाकिस्तान ,सियासत और सत्ता को लेकर यह संघर्ष रहा कि कश्मीर के किस नैरेटिव को ज्यादा तरजीह मिले और किसे सत्ता के लिए कारगर बनाया जाय । आज गौर करने वाली बात यह है कि वर्षों से चल रहे फेक नैरेटिव से फायदे में कौन रहा और किसने खोया? यह 5 अगस्त 2019 के बाद ही लोगों को समझ में आने लगी है ।
महात्मा गांधी जिस ग्राम स्वराज की बात करते थे आज उसी ग्राम स्वराज ने कश्मीर का स्वरूप बदल दिया है। देश के अन्य राज्यों के ग्राम सभा से जम्मू कश्मीर की ग्राम सभा ज्यादा मजबूत स्थिति में है। स्थानीय स्तर पर विकास के लिए खाका ग्राम सभा ने खुद खींची है। ग्रामीण विकास के तमाम फण्ड उनके अकाउंट में जा रहे हैं। 70 वर्षों बाद जम्मू कश्मीर में पीपुल्स गवर्नेंस को लोगों ने पहली बार साकार होते हुए देखा है । पहलीबार दुर्गम पहाड़ी इलाकों में बैक टू विलेज कार्यकर्म रखा जाता है और लोगों की भागीदारी से विकास की योजनाए बनती है , जन शिकायतों पर तुरंत करवाई होती है।कश्मीर के दूर दराज के दुर्गम पहाड़ी इलाकों में लोगों ने आजतक अपने मुख्यमंत्री को नहीं देखा था लेकिन तमाम सुरक्षा की चुनौती को दरकिनार करते एल जी मनोज सिन्हा पाँव पैदल एक एक इलाका पहुंचे हैं। कोरोना महामारी के बीच मनोज सिन्हा ने पंचायतों से सीधा संवाद बनाकर लोगों की सारी समस्या का निदान किया है। कोरोना के दूसरी लहर में जब ऑक्सीजन को लेकर पुरे मुल्क में किल्लत मची हुई थी जम्मू कश्मीर के बड़े अस्पतालों के पास अपना ऑक्सीजन प्लांट बनकर तैयार था। जिसे जिला प्रशासन ने पी एम केयर फण्ड से बनवाया था। आज कोरोना के खिलाफ वैक्सीनेशन में जम्मू कश्मीर किसी भी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश से आगे है।
लोकतंत्र में सत्ता का फैसला लोग ही तय करेंगे। जम्मू कश्मीर में भी परिसीमन के बाद चुनाव होने हैं और वहां चुनी हुई सरकार हुकूमत में आएगी । जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा मिलना संसद में दिया गया गृह मंत्री का आश्वासन है। लेकिन बदले नैरेटिव के बाद आने वाली नयी हुकूमत को अब जनभागीदारी वाली ग्रास रूट्स डेमोक्रेसी में काम करने की आदत डालनी होगी।
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