क्या हालिया धमाके गुजरात दंगों का बदला था ?
सन २००४ से अबतक ७० धमाकों का दर्द इस देश ने झेला है , इन धमाकों मे 4000से ज्यादा लोग मारे गए वही 6000से ज्यादा लोग जख्मी हुए । इन में सैकडो आज भी मौजूद हैं जिनके चेहरे पर आतंकवाद के जख्मों के निशान मौजूद है। ये आलग बात है कि हम या तो उन्हें देखना नही चाहते या फ़िर हमने उन्हें भुला दिया है । पिछले वर्षो मे ये धमाके मुंबई ,कोयम्बतूर ,श्रीनगर ,अहमदाबाद ,बंगलुरु ,जयपुर , वाराणसी , ह्य्द्राबाद , मलेगों कह सकते हैं कि देश का शायद ही कोई बड़ा शहर हो जहाँ आतंकवाद के खुनी पंजों के निशान न पड़े हों । हर धमाके के बाद मीडिया से पीछा छुडाने के लिए जाँच एजेन्सी बड़ी बड़ी खुलासा करती है और महीने भर में मामला रफा दफा हो जाता है । पिछले वर्षों के इन धमाके मे आज तक न ही कोई शातिर अपराधी को सामने लाया गया न ही किसी को इस साजिस में शामिल होने के कारन कोई सजा मिली । आजाद हिंदुस्तान में अपराधी , आतंकवादी सरहद के आर पार बेरोकटोक घूमते रहे ।
आजद हिंदुस्तान में आतंकवादियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि एक महीने पहले जयपुर मे सीरियल बम धमाके होते है जिसमें ६३ लोग मारे जाते हैं , अभी इसकी पड़ताल चल ही रही होती है कि बंगलुरु में एक साथ आठ धमाके को अंजाम दिया जाता है । ठीक दुसरे दिन अहमदाबाद में १७सीरियल बम धमाके होते है और ५३ लोग आतंक वाद के शिकार हो जाते हैं । दुसरे दिन सूरत कि वारी आती है जहाँ अलग अलग जगहों पर २३ बम लगाये गए होते हैं । तकनिकी गडबडी के कारन ये बम नही फटे और सैकडो लोग एक बड़े हादसे में बाल बाल बच निकले ।
इराक के बाद भारत आज दुसरे नंबर पर है जहाँ सबसे ज्यादा लोग आतंकवाद के शिकार हो रहे हैं । लेकिन जरा सरकार के नज़रिए पर गौर कीजिये । भारत सरकार का मानना है कि आतंक वाद कि मुख्य वजह देश में सांप्रदायिक विद्वेष से है । सरकार और कांग्रेस पार्टी यह बात अधिकारिक रूप से बता रही ही गुजरात दंगों के बाद धमाकों का यह शिलशिला तेज हुआ है । यह तर्क शायद इसलिए भी दिया जा रहा कि देश में आज आतंकवाद के ख़िलाफ़ सख्त कानून बनाने कि बात जोर पकड़ रही है , विपक्षी पार्टी बीजेपी ने पोता दुबारा बहाल करने कि मांग तेज की है । इसका जवाब सरकार गुजरात दंगों को सामने रख कर दे रही है । सरकार के इस तर्क को इंडियन मुजाहिद्दीन का इ मेल पुक्ता करता है । पिछले अलग अलग धमकों का श्रेय इंडियन मुजाहिद्दीन ने ली है और हर धमाको के लिए उसने अलग अलग तर्क दिए हैं । मसलन लखनव और फैजाबाद मे यह मुजाहिद्दीन इसलिए ब्लास्ट करता है कि वहां वकीलों ने आतंकवादियों के केश लड़ने से मना कर दिया था । कभी यह मुजाहिद्दीन इस धमाके को सभ्यता का संघर्ष बताता है और निजाम ऐ मुश्तफा कि वकालत करता है तो अहमदाबाद धमाके मे गुजरात दंगों का जिक्र करता है । यही इंडियन मुजाहिद्दीन अगले दिन कोलकत्ता और केरल में भी धमाके को अंजाम देने कि बात करता है लेकिन सरकार अपनी सुविधा के लिए अहमदाबाद धमाकों के इ मेल को पुख्ता सबूत मान लेती है और बांकी मेल को कचडे में फेक देती है । इसका मतलब क्या निकला जाय कि देश में आज भी सांप्रदायिक दंगे जारी है। सरकार को पता है कि मौजूदा काननों और उनके सक्षम जाँच एजेन्सी आज तक यह नही पता कर पायी है कि कभी अरबी मे तो कभी उर्दू में तो कभी इंग्लिश मेल भेजने वाले ये इंडियन मुजाहिद्दीन कौन है । अहमदाबाद और सूरत में एक साथ ४० बम अलग अलग प्लांट किया जाता है । जाहिर है इसमे १०० से ज्यादा लोग अपनी भूमिका निभाए होंगे । आतंकवादियों के मोदुल्स मे सबसे ऊपर स्थान बोम्ब्मेकेर का होता है । जो वारदात से कम से कम तीन दिन पहले इसे अंजाम देकर सीन से गायब हो जाता है । जाहिर है बिना स्थानीय सहयोग के इन धमाको को अंजाम नही दिया जा सकता है । अहमदाबाद धमाकों के तार नवी मुंबई और गाजियाबाद से जुड़ता है , जाहिर है तकनिकी सहयोग देश के अलग भागों से जुटाया जाता है ।
ब्लीडिंग बाय थौजेंड्स कट्स की नीति पर पाकिस्तान आज भी कायम है , ये अलग बात है कि कल तक भारत में खुनी खेल का अंजाम लश्करे तैबा , जैश ऐ मोहम्मद , हरकत उल मुजाहिद्दीन के नाम से दिया जा रहा था आज उसका नाम बदल कर इंडियन मुजाहिद्दीन हो गया है । मुंबई से लेकर मालेगओं तक हैदराबाद से लेकर गाजियाबाद तक आतंकवादियों के स्लीपिंग सेल हर जगह मौजूद है । ये सेल कभी दिल्ली में धमाके को अंजाम देता है कभी मुंबई में तो कभी पानीपत में समझौता एक्सप्रेस को अपना निशाना बनता है । राजनेताओं को पता है कि रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रहे लोग धमाके को जल्द ही भूल जाते है , अगले धमाके के वक्त सरकार कुछ और कहानी बना लेगी , नही तो पाकिस्तान के सर पर ठीकरा फोड़ कर अपनी जिम्मेबारी से मुक्त हो जायेगी । लेकिन यह बात हमें जरूर सोचनी पड़ेगी कि इंग्लॅण्ड और अमेरिका महज एक धमाके के बाद ही आतंकवाद पर पुरी तरह काबू प् सकते हैं तो भारत क्यों नही इस पर काबू प् सकता है । सियासत और सत्ता का सीधा सरकार आम आदमी से है , आतंकवादी हमलों के शिकार यही आम आदमी हो रहे है । फ़िर वोट कि राजनीती आतंकवाद को किसी मजहब से क्यों जोड़ रहीहै ? इसके शिकार हर मजहब के लोग हो रहे है तो कड़े कानून का खौफ एक समुदाय को क्यों दिखाया जा रहा है । यह जानते हुए कि इस सियासत में कुछ लोगों को जरूर फायदा हो रहा है लेकिन इस देश का बहुत नुक्सान हो रहा है । हिंदू हो या मुसलमान सिख हो या ईसाई पहले देश है तभी हमारा अस्तित्वा है ।
आजद हिंदुस्तान में आतंकवादियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि एक महीने पहले जयपुर मे सीरियल बम धमाके होते है जिसमें ६३ लोग मारे जाते हैं , अभी इसकी पड़ताल चल ही रही होती है कि बंगलुरु में एक साथ आठ धमाके को अंजाम दिया जाता है । ठीक दुसरे दिन अहमदाबाद में १७सीरियल बम धमाके होते है और ५३ लोग आतंक वाद के शिकार हो जाते हैं । दुसरे दिन सूरत कि वारी आती है जहाँ अलग अलग जगहों पर २३ बम लगाये गए होते हैं । तकनिकी गडबडी के कारन ये बम नही फटे और सैकडो लोग एक बड़े हादसे में बाल बाल बच निकले ।
इराक के बाद भारत आज दुसरे नंबर पर है जहाँ सबसे ज्यादा लोग आतंकवाद के शिकार हो रहे हैं । लेकिन जरा सरकार के नज़रिए पर गौर कीजिये । भारत सरकार का मानना है कि आतंक वाद कि मुख्य वजह देश में सांप्रदायिक विद्वेष से है । सरकार और कांग्रेस पार्टी यह बात अधिकारिक रूप से बता रही ही गुजरात दंगों के बाद धमाकों का यह शिलशिला तेज हुआ है । यह तर्क शायद इसलिए भी दिया जा रहा कि देश में आज आतंकवाद के ख़िलाफ़ सख्त कानून बनाने कि बात जोर पकड़ रही है , विपक्षी पार्टी बीजेपी ने पोता दुबारा बहाल करने कि मांग तेज की है । इसका जवाब सरकार गुजरात दंगों को सामने रख कर दे रही है । सरकार के इस तर्क को इंडियन मुजाहिद्दीन का इ मेल पुक्ता करता है । पिछले अलग अलग धमकों का श्रेय इंडियन मुजाहिद्दीन ने ली है और हर धमाको के लिए उसने अलग अलग तर्क दिए हैं । मसलन लखनव और फैजाबाद मे यह मुजाहिद्दीन इसलिए ब्लास्ट करता है कि वहां वकीलों ने आतंकवादियों के केश लड़ने से मना कर दिया था । कभी यह मुजाहिद्दीन इस धमाके को सभ्यता का संघर्ष बताता है और निजाम ऐ मुश्तफा कि वकालत करता है तो अहमदाबाद धमाके मे गुजरात दंगों का जिक्र करता है । यही इंडियन मुजाहिद्दीन अगले दिन कोलकत्ता और केरल में भी धमाके को अंजाम देने कि बात करता है लेकिन सरकार अपनी सुविधा के लिए अहमदाबाद धमाकों के इ मेल को पुख्ता सबूत मान लेती है और बांकी मेल को कचडे में फेक देती है । इसका मतलब क्या निकला जाय कि देश में आज भी सांप्रदायिक दंगे जारी है। सरकार को पता है कि मौजूदा काननों और उनके सक्षम जाँच एजेन्सी आज तक यह नही पता कर पायी है कि कभी अरबी मे तो कभी उर्दू में तो कभी इंग्लिश मेल भेजने वाले ये इंडियन मुजाहिद्दीन कौन है । अहमदाबाद और सूरत में एक साथ ४० बम अलग अलग प्लांट किया जाता है । जाहिर है इसमे १०० से ज्यादा लोग अपनी भूमिका निभाए होंगे । आतंकवादियों के मोदुल्स मे सबसे ऊपर स्थान बोम्ब्मेकेर का होता है । जो वारदात से कम से कम तीन दिन पहले इसे अंजाम देकर सीन से गायब हो जाता है । जाहिर है बिना स्थानीय सहयोग के इन धमाको को अंजाम नही दिया जा सकता है । अहमदाबाद धमाकों के तार नवी मुंबई और गाजियाबाद से जुड़ता है , जाहिर है तकनिकी सहयोग देश के अलग भागों से जुटाया जाता है ।
ब्लीडिंग बाय थौजेंड्स कट्स की नीति पर पाकिस्तान आज भी कायम है , ये अलग बात है कि कल तक भारत में खुनी खेल का अंजाम लश्करे तैबा , जैश ऐ मोहम्मद , हरकत उल मुजाहिद्दीन के नाम से दिया जा रहा था आज उसका नाम बदल कर इंडियन मुजाहिद्दीन हो गया है । मुंबई से लेकर मालेगओं तक हैदराबाद से लेकर गाजियाबाद तक आतंकवादियों के स्लीपिंग सेल हर जगह मौजूद है । ये सेल कभी दिल्ली में धमाके को अंजाम देता है कभी मुंबई में तो कभी पानीपत में समझौता एक्सप्रेस को अपना निशाना बनता है । राजनेताओं को पता है कि रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रहे लोग धमाके को जल्द ही भूल जाते है , अगले धमाके के वक्त सरकार कुछ और कहानी बना लेगी , नही तो पाकिस्तान के सर पर ठीकरा फोड़ कर अपनी जिम्मेबारी से मुक्त हो जायेगी । लेकिन यह बात हमें जरूर सोचनी पड़ेगी कि इंग्लॅण्ड और अमेरिका महज एक धमाके के बाद ही आतंकवाद पर पुरी तरह काबू प् सकते हैं तो भारत क्यों नही इस पर काबू प् सकता है । सियासत और सत्ता का सीधा सरकार आम आदमी से है , आतंकवादी हमलों के शिकार यही आम आदमी हो रहे है । फ़िर वोट कि राजनीती आतंकवाद को किसी मजहब से क्यों जोड़ रहीहै ? इसके शिकार हर मजहब के लोग हो रहे है तो कड़े कानून का खौफ एक समुदाय को क्यों दिखाया जा रहा है । यह जानते हुए कि इस सियासत में कुछ लोगों को जरूर फायदा हो रहा है लेकिन इस देश का बहुत नुक्सान हो रहा है । हिंदू हो या मुसलमान सिख हो या ईसाई पहले देश है तभी हमारा अस्तित्वा है ।
टिप्पणियाँ
it is an excellent analysis. go ahead .
thanks
It was pity to see our Home minister blaming the state(s) for not taking preventive measures, despite centre's warning. He is a hopeless guy and has let down every countrymen with his senseless remark in front of the media.
We can't expect any better if we have a "Home Minister" who is not even worth a "Hopeless Minister".
Amit kumar
it is serious concern of our country ,but in media circle peple think about their business not for nation.
thanks