चुनावी संग्राम में कुछ दिन गुजारिये तो उत्तर प्रदेश में
लोकतंत्र के महापर्व को देखना है तो कुछ दिन गुजारिये उत्तर प्रदेश में। यकीन मानिये भारत की इस शानदार छवि को टी वी स्टूडियो से नहीं देखा जा सकता क्योंकि इस दौर में यहाँ या तो एजेंडा चलता है या फिर शोर। आज हर कोई पूछ रहा है किस दल की बढ़त है,किसकी बन रही है सरकार। सिर्फ सवाल हैं ,उत्तर किसी के पास नहीं है। क्योंकि ये उत्तर प्रदेश है यानी मिनी इंडिया। अहम् बात यह है कि करप्शन और बैमानी के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश की पुलिस और प्रशासन इलेक्शन कमिशन के निज़ाम के अंदर आते ही अदभुत क्षमता दिखा रहे है यानी निज़ाम सही हो तो तंत्र को संभलने में वक्त नहीं लगता । तीसरे चरण के चुनाव आते आते यहाँ हर दल दावा जीत का कर रहा है और पूरी ताकत लगा रखा है तो यकीन मानिये जंग के केंद्र में सिर्फ नरेंद्र मोदी है और जंग 2017 से भी आगे की है।
पिछले कुछ वर्षो से चुनावी भाषणों का एजेंडा मोदी तय कर रहे है ,टीवी के विद्वान कहते है पी एम् मर्यादा लांघ रहे है ,लेकिन यह समझने की जरूरत है कि मोदी के भाषणों पर सपा ,बसपा और कांग्रेस से इतनी तीखी प्रतिक्रिया क्यों आ रही है । अगर चुनावी सभाओं में दो दिनों तक अपना बच्चा और गोद लिया हुआ बच्चा पर बहस होती रही है तो यकीन मानिये हर दल के भाषण का एजेंडा मोदी गढ़ रहे हैं। बच्चा जहाँ का भी हो लेकिन वाराणसी के सांसद बनकर मोदी आज उत्तर प्रदेश में किसी से भी ज्यादा लोकल हैं ,यकीन नहीं होता तो उनकी रैली से घूम कर आइये । में दो महीने चलने वाला चुनाव को सड़क ,पानी ,बिजली जैसे मुद्दे से नहीं लड़ा जा सकता ,आज हर दिन मीडिया को लीड खबर चुनावी भाषणों से मिलता है यानी खबर मीडिया नहीं लोकल कार्यकर्ता बना रहे है ,पी एम् मोदी सिर्फ उसमे अपनी बाक पटुता डाल रहे है।
हर दल के जनसभाओ में पब्लिक की भारी भीड़ जुटती है ,लेकिन यह भीड़ वोट में तब्दील हो रही है या नहीं यह कोई नहीं जानता। कोई नहीं जानता कि कांग्रेस के कार्यकर्ता समाजवादी पार्टी को वोट दे रहा है या नहीं ,समाजवादी पार्टी भी नहीं जानती कि उसका वर्कर कांग्रेस को जीता रहे हैं या नहीं। यह बात मायावती भी नहीं जानती कि जिस सोशल इंजीनिरिंग की वो दुहाई दे रही है उसे उनका वोटर पसंद कर रहा है या नहीं। यह बात बीजेपी भी नहीं जानती कि पिछले 15 साल से एक बेहतर ऑप्शन ढूढ रहे मतदाताओं ने उन्हें ऑप्शन चुना है या नहीं। परिवर्तन उत्तर प्रदेश की जनता जरूर करती है लेकिन यह तय होना अभी बांकी है कि जनता के मूड को किसने बेहतर समझा है
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