बुदजिलों का न तो कोई ईमान होता है न ही मुल्क: गौहर अहमद भट को सलाम !
बीजेपी के एक तेज तर्रार युवा नेता गौहर अहमद भट को गला रेत कर हत्या कर दी गयी। सोपिया ,कश्मीर के 30 साल का यह नौजवान बतनपरस्ती को अपना ईमान माना था ,मुल्क की मुख्यधारा से जुड़कर गौहर ,कश्मीर में लोकतान्त्रिक संस्थाओं को मजबूती देना चाहता था। लेकिन जिस देश में सत्ता से बेदखल होते ही पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम को कश्मीर में पॉलिटकल प्रोसेस फार्स लगता हो और उन्हें ग्रेटर आज़ादी में ही कश्मीर समस्या का समाधान दिखता हो ऐसे नेताओं के लिए गौहर भट की शहादत का क्या मायने हैं। जिस रियासत में आतंकवाद के बढ़ते खौफ से घबराकर (कश्मीर पर अपना पुश्तैनी हुकूमत मानने वाले) फ़ारूक़ अब्दुल्लाह पुरे परिवार के साथ लन्दन भाग खड़े हुए हों,उसी रियासत के सोपिया में हिज्बुल मुजेहिद्दीन के खौफ के बीच गौहर भारत की आन वान शान के लिए जूझता रहा।
कश्मीर की आज़ादी ,स्वायत्ता और मुस्लिम बहुल कश्मीर के लिए विशेष दर्जा माँगने वाले और छदम धर्मनिरपेक्षता के बीच अलगावाद को निरंतर शह देने वाले लोगों को गौहर अहमद भट की मौत से कोई सदमा नहीं लगेगा। ऐसे सैकड़ो पोलिटिकल एक्टिविस्ट कश्मीर में मारे गए हैं। लेकिन गौहर की मौत ने कश्मीर को देश की मुख्यधारा से अलग देखने वाले को करारा सन्देश दिया है कि बुदजिलों का न तो कोई ईमान होता है न ही मुल्क। देश की राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस से अफ़सोस के एक अलफ़ाज़ न आना शर्मसार करता है।
देश के और रियासत के इंसानी हकूक के पैरोकारों के लिए गौहर की मौत शायद मानवाधिकार हनन का मामला नहीं बनता है। सहिष्णुता पर शोखी बघारने वाले लोगों के लिए यह असहिष्णुता का मुद्दा हो ही नहीं सकता क्योंकि गौहर भट ने अपने कौम और मुल्क के लिए कुर्बानी दी है। कश्मीर माँगे आज़ादी वालो के लिए यह मौत जश्न जैसा है क्योकि यहाँ बुरहान वानी तैयार किये जाते हैं, गौहर भट नहीं। लेकिन आज गौहर भट की मौत ने एक सन्देश जरूर दिया है कि अगर यह मुल्क गौहर भट की मौत पर खामोश रहेगा ,मरहूम डी एस पी मोहम्मद अयूब पंडित की मौत पर चुप रहेगा फिर उसे कश्मीर को अपना अभिन्न हिस्सा कहने का कोई हक़ नहीं है।
श्रीनगर जामिया मस्जिद में इसी साल ईद के रोज डी एस पी अयूब पंडित को भीड़ ने पीट पीट कर मारा डाला था और मस्जिद के अंदर मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ खुद यह नज़ारा देख रहे थे। उन्मादी भीड़ डी एस पी अयूब के बदन से एक एक कपड़ा नोच रही थी। लात घुसे बरसा रही थी,लेकिन उसे बचाने कोई आगे नहीं आया। .क्या इन उन्मादी को भारत से और आज़ादी चाहिए ,क्या अयूब पंडित की मौत के जिम्मेदार मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ पर क़त्ल का इल्जाम नहीं लगनी चाहिए ?
1948 में कश्मीर पर पाकिस्तान का गुर्रिल्ला आक्रमण हो या पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद हर दौर में भारतीय फौज ने भारी कुर्बानी देकर कश्मीर में लोकतंत्र को मजबूत सहारा दिया है। लेकिन दिल्ली में बैठे राजनेताओ ने कभी आज़ादी ,ऑटोनोमी से अलग कश्मीर में उठ रही आवाज़ को सुनी नहीं।
पिछले 10 वर्षों में 300 से ज्यादा पंच -सरपंच कश्मीर में मारे गए लेकिन कभी किसी ने इन मौतों पर अफ़सोस तक जाहिर नहीं किया। लाखों करोड़ रूपये की पैकेज से कुछ चंद लीडरानो के घर भरेंगे ,कश्मीर में लोक्ततंत्र की मजबूती इन्ही पंच -सरपंचों से आएगी ,यह फ़ारूक़ और मेहबूबा से नहीं होगा। इन्हे अपना सियासी दूकान चलानी है। भारत के साथ जुड़ने वाले गौहर भट को शहीद मानकर उसके बलिदान से सबक लेने की जरुरत है। साबिक मंत्री चिंदमबरम और यशवंत सिन्हा कांग्रेस की यथास्थिति पर विश्वास करते हैं उनकी सोच में गौहर भट जैसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। गौहर अहमद भट को मेरा सलाम !
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