एक सियासत ऐसी भी

भारत में टोपी को लेकर कई मिथ हैं तो कई गौरवशाली परम्परा  लेकिन हिमाचली टोपी को लेकर इन दिनों कुछ गजब की सियासत चल रही है। बीजेपी वाली टोपी या कांग्रेस वाली टोपी। हालाँकि पी एम मोदी लाल और हरा दोनों रंगो की टोपी पहनते हैं। लेकिन चुनावी सरगर्मी के बीच टोपी की सियासत ने कारिगरों की मुस्कान लौटा दी है।
आज हिमाचल प्रदेश की चुनावी सरगर्मी   ने टोपी के रंगो को सियासत की कराही में भिगो दिया है। यानी लाल रंग की टोपी पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूम्मल पहनते है तो मौजूदा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह हरे रंग की टोपी पहनते हैं। कार्यकर्ता अपने नेता की पसंद का सम्मान कर रहे हैं लेकिन जनता किस रंग की टोपी पहनती है ये देखना अभी बांकी है। 
खुद प्रधानमंत्री मोदी हिमाचल दौरे  में लाल- हरा दोनों रंगों की  टोपी पहन चुके हैं ,लेकिन सियासत  तो सियासत है ,सो प्रधानमंत्री ने लाल रंग की हिमाचली टोपी अपने इस्रायल दौरे पर पहनी तो राजा वीरभद्र सिंह के लोगों को सियासत का एक मौका मिल गया । हालाँकि कारीगरों ने इसे राज्य और गरीब कलाकारों का सम्मान माना। और इस बहस ने उनके कारोबार को बढ़ा दिया 
हिमाचल के सुदूर पहाड़ी इलाके में टोपी निर्माण एक गृह उद्योग है। इलाकाई लिहाज से बुशेहरी ,किन्नौरी कुल्लुई टोपी मशहूर है। राज्य सरकार इसे गृह उद्योग मानती है लेकिन किसी को  "टोपी" पहनाने के बजाय कारीगर खुद  अपनी मिहनत और कारिगरी को बाजार  में बेचने जाते हैं।जरुरत इस बात की है जिस टोपी के रंग को लेकर इतनी सियासत हो रही है वह सियासत  इसके रंग भरने वालों की भी फिक्र करें। 

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